- जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर के शोध में खुलासा

- पेट दर्द के साथ स्टूल में प्रॉब्लम जैसे शुरुआती लक्षण, 30 साल की उम्र में ही पैंक्रियाज के डिस्ट्रक्शन का खतरा

KANPUR:

बदलती लाइफस्टाइल, स्ट्रैस और इनवायरमेंट की वजह से डायबिटीज का खतरा बढ़ता जा रहा है। यंगस्टर्स में भी डायबिटीज अब कामन बात हो गई है, लेकिन जीएसवीएम मेडिकल कालेज में मेडिसिन डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर के रिसर्च में यंगस्टर्स में एक नई तरह की डायबिटीज का पता लगाया है। जिसमें इंसुलिन के साथ ग्लूकागॉन हार्मोन का भी इंबैलेंस होता है। जिससे खाने के बाद आम डायबिटीज पेशेंट्स से ज्यादा तेजी से शुगर का लेवल बढ़ता है। फाइब्रो कैल्सिफिक पैंक्रियाटिक डायबिटीज वाले कई पेशेंट्स कानपुर में भी मिले हैं। खास बात यह है कि डॉक्टर्स इस तरह की डायबिटीज की वजहों को अभी भी तलाश रहे हैं।

क्या है फाइब्रो कैल्सिफिक पैंक्रियाटिक डायबिटीज

डायबिटीज कई तरह की होती है। फाइब्रो कैल्सिफिक पैंक्रियाटिक डायबिटीज भी उनमें से एक है। यह 20 से 30 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा होती है। जिसकी शुरुआत में लोगों को पेट में दर्द और पतला स्टूल पास होता है। धीरे धीरे पैंक्रियाज का स्लो डिस्ट्रक्शन होने लगता है। साथ ही इंसुलिन के साथ ग्लूकागॉन हार्मोन की भी कमी होने लगती है।

ग्लूकागॉन हार्मोन इंबैलेंस

ग्लूकागॉन हार्मोन पैंक्रियाज के एल्फा सेल्स से निकलता है। यह इंसुलिन को ब्लड शुगर के लेवल को मेनटेन करने में मदद करता है। साथ ही फैटी एसिड को भी कंट्रोल करता है। शोधकर्ता डॉ। शिवेंद्र वर्मा ने बताया कि स्क्रीनिंग के बाद जिन केसेस की स्टडी की गई। उनमें इंसुलिन के साथ ग्लूकागॉन हार्मोन की भी कमी पाई गई। कई केसेस में यह पाया गया कि ग्लूकागॉन हार्मोन पैंक्रियाज में न बनकर आंतों में बन रहा है। इस वजह से हार्मोन में एक तरह का इंबैलेंस बन गया। इसका एक बड़ा नुकसान खाने के बाद शुगर लेवल का खतरनाक ढंग से बढ़ना भी है।

कैसे हुआ रिसर्च -

1- डायबिटीज के 250 पेशेंट्स की स्क्रीनिंग की गई

2- इनमें से 10 पेशेंट के शुगर लेवल और उसके कम ज्यादा होने के पैटर्न को ऑब्जर्व किया

3- 3 घंटे के प्रोसीजर में उन्हें मुंह से और नसों से ग्लूकोज देकर हार्मोन के लेवल को मानीटर किया गया

4-खास तौर से ग्लूकागॉन और इनक्रेटिन हार्मोन के वैरीएशंस को स्टडी किया

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'इस तरह की डायबिटीज की वजहों को लेकर अभी भी काफी काम किया जाना है। यह यंगस्टर्स में ज्यादा सामने आई है। जेनेटिक और मैलन्यूट्रिशन इसकी कुछ वजहें हो सकती है। इस पेपर को इंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया की कांफ्रेंस में भी प्रेजेंट करेंगे.'

- डॉ। शिवेंद्र वर्मा, इंडोक्राइनोलॉजिस्ट, एसोसिएट प्रोफेसर, इंस्टीटयूट ऑफ मेडिसिन, जीएसवीएम मेडिकल कालेज