- शिविरों में नहीं हैं आग बुझाने के मुकम्मल इंतजाम

- शिविरों में खाने की जांच करने वाला कोई नहीं

- भारी पड़ सकता है डॉक्टर्स की गैरमौजूदगी में दवाएं देना

<- शिविरों में नहीं हैं आग बुझाने के मुकम्मल इंतजाम

- शिविरों में खाने की जांच करने वाला कोई नहीं

- भारी पड़ सकता है डॉक्टर्स की गैरमौजूदगी में दवाएं देना

MeerutMeerut: घर में सिलेंडर फटने से एक पूरा परिवार खत्म हो गया। इस घटना को अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। प्रशासन कांवड़ यात्रा को सकुशल निबटाने पर लगा है, लेकिन सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे रहा। अगर देखा जाए तो एक छोटी सी लापरवाही बडे़ हादसे का सबब बन सकती है।

सिलेंडर और कैंप

दौराला से शुरू होते कांवड़ शिविरों पर नजर दौड़ाए तो शिविरों में शिवभक्त आराम करते, भंड़ारे में खाना खाते, नाचते गाते मिल जाएंगे, लेकिन शिविरों में खतरा भी कम नहीं है। एक हादसा कई जिंदगी बर्बाद कर सकता है। टैंट लगाकर बनाए गए शिविरों में जहां कांवडि़ए आराम कर रहे हैं, वहीं हलवाई खाना भी बना रहे हैं। एक शिविर में कम से कम क्0 सिलेंडर रखे हुए हैं। अगर हादसा हुआ तो बहुत बड़ी क्षति पहुंच सकती है।

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खाना कितना शुद्ध

शिविरों में मिलने वाला खाना कितना शुद्ध है, इस बारे में जांच करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांवडि़ए जो खाना खा रहे हैं उसकी जांच कौन करे, कैसे हो। बागपत में कल ही शिविर में गंदा खाना खाने से कांवडि़ए बीमार हो गए थे।

दवाएं हैं, डॉक्टर्स नहीं

वैसे तो शिविरों में नि:शुल्क दवाएं भी मिलती है। यहां पर दर्द निवारक दवाएं मिलती हैं, लेकिन डॉक्टर्स की अनुपस्थिति में। आम सेवक ही दवाएं बांट रहे हैं, उनकी मरहम पटटी कर रहे हैं। इस पर स्वास्थ्य विभाग ने कभी ध्यान नहीं दिया।

बॉक्स

सुरक्षा का बड़ा सवाल

संवेदनशील कांवड़ यात्रा की सुरक्षा पर सवाल हमेशा होता है। अपराधी कांवडि़यों के भेष में घूम रहे हैं और पुलिस उनसे पूछताछ में कतराती है।

हमनें इस पर बेहद सतर्कता बरती है, तभी अपने शिविर से कोसो दूर पर हलवाई बैठाया है।

-बबलू, सेवादार

हम जानते हैं कि सिलेंडर से कितना बड़ा हादसा हो सकता है। तभी हमनें शिविर से दूर व्यवस्था की है।

-अनिल कुमार, सेवादार