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DEHRADUN : 20 वर्ष पहले 1999 में हुए कारगिल वार को उत्तराखंड कभी नहीं भूल सकता है। छोटे से राज्य के 75 वीर जांबाजों ने पाक की ओर से छेड़े गए युद्ध में पाकिस्तान के ही दांत खट्टे कर दिए थे। खास बात यह है कि स्टेट का ऐसा कोई डिस्ट्रिक्ट नहीं है, जिसने अपने वीर सपूतों को न खोया हो, यही वजह है कि उत्तराखंड के लिए यह कारगिल विजय दिवस मायने रखता है। आज समूचा राज्य अपने वीर सपूतों को नमन कर रहा है।
शहीद जवान::
देहरादून-- 28
लैंसडाउन--10
टिहरी--8
नैनीताल--5
चमोली--5
अल्मोड़ा--4
पिथौरागढ़--4
पौड़ी--3
रुद्रप्रयाग--3
बागेश्वर---2
यूएसनगर--2
उत्तरकाशी--01
महावीर चक्र विजेता
मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राकेश अधिकारी।
वीर चक्र विजेता
कश्मीर, वृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, एसके सिन्हा, शुशीमन गुरुंग, शशिभूषण घिल्डियल, रुपेश प्रधान व राजेश शाह।
सेना मैडल
मोहन सिंह, टीबी क्षेत्री, हरिबहादुर, नरपाल सिंह, बेतेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, मोहन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह, संजय।
मेन इन डिस्पैच
राम सिंह, हरिसिंह थापा, बीतेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगल सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन, अनिल कुमार।
37 जांबाजों को मिला था गैलेंट्री अवार्ड
1999 में हुए कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 वीर जवान शहीद हुए थे। इन सभी में से 37 जवानों को उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कार मिले। अब तक हुए 11 युद्धों में उत्तराखंड के डेढ़ हजार से अधिक वीर जवानों ने अपने वतन के खातिर प्राणों की बाजी लगा दी। रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि युद्ध में लड़ने की ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तैयार करने व रण फतह करने में भी उत्तराखंड के जांबाजों का कोई जवाब नहीं है।