कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (22 नवम्बर 2018) को स्नानादि के अनन्तर उपवास का संकल्प लेकर देवों को तोयाक्षतादि से और पितरों को तिलतोयादि से तृप्त करके कपिला गौ का 'गोमूत्र', कृष्ण गौ का 'गोमय', श्वेत गौ का 'दूध', पीली गौ का 'दही' और कबरी गाय का 'घी' लेकर वस्त्र से छान करके एकत्र करें।

उसमें थोड़ा कुशोदक (डाभ का पानी) भी मिला दे और रात्रि के समय उक्त 'पंचगव्य' ग्रहण करें तो उससे तत्काल ही सब पाप- ताप और रोग- दोष दूर हो जाते हैं। अद्भुत प्रकार से बल, पौरुष और आरोग्य की वृद्धि होती है।

देवीपुराण के अनुसार, उसी चतुर्दशी को जौ के चूर्ण की चौकोर रोटी बनाकर गौरी की आराधना करें और उक्त रोटी का नैवेद्य अर्पण करें। इसके बाद स्वयं उसका एक बार भोजन करें तो सुख-सम्पत्ति और सुन्दरता प्राप्त होती है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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