डाॅ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिषाचार्य और वास्तुविद)। Karwa Chauth 2021 Vrat Katha : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए व्रत रख कर पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं। इसके बाद 16 ऋंगार कर रात के समय गणेश जी, भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करती हैं। करवा चौथ व्रत के दिन पति की लम्बी आयु की कामना के लिए महिलाएं भजन, पूजन, प्रार्थना के अलावा विभिन्न तरह की कथाएं भी सुनती हैं। इसके बाद चांद के दर्शन और अर्घ देने के बाद अपना व्रत खोलती हैं। कहते हैं करवा चाैथ व्रत में कथा और व्रत की महिमा सुनना जरूरी होता है। क्षेत्रीय स्तर पर करवा चाैथ की कई कथाएं प्रचलित हैं।

करवा चौथ की कथा- 1

प्राचीन काल में करवा नाम की एक धोबिन थी। करवा अत्याधिक बहादुर और पतिव्रता स्त्री थी। कहा जाता है कि पति-पत्नी दोनों नदी के किनारे कपड़े धोने जाते थे। एक दिन करवा का पति कपड़े धो रहा था तभी मगरमच्छ उसका पैर पकड़ कर खींचने लगा। वह करवा-करवा कहकर चिल्लाने लगा। यह सुनकर करवा दौड़कर आती हैं और मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध देती है। यमराज से प्रार्थना करने लगती है कि उसके पति को दीर्घ आयु प्रदान करें और मृत्यु के बंधन से मुक्ति प्रदान करें। यमराज कहते हैं कि उसकी आयु अब पूर्ण हो चुकी हैं लेकिन उसके सतित्व एवम साधना से यमराज प्रसन्न होते हैं और यमराज ने कहा जो महिला सच्चे मन से पति के दीर्घायु के लिए उपवास करेगी और पति की लम्बी आयु के लिए कामना करेगी तो उसका पति लंबी आयु को प्राप्त होगा। यदि किसी के पति में अल्पायु योग है और वह महिला करवाचौथ का व्रत करती है तो उसके पति का अल्पायु योग नष्ट हो जायेगा। तभी से महिलायें करवाचौथ का व्रत मनोयोग से करती है। करवाचौथ व्रत से पति दीर्घायु को प्राप्त होता है इसके अतिरिक्त पति-पत्नि के बीच अनुराग एवं प्रेम प्रगाढ़ होता है।

करवा चौथ की कथा- 2

एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। साहूकार के सभी बेटे अपनी बहन करवा से बहुत प्यार करते थे। हमेशा उसे खाना खिलाने के बाद ही खाते थे। शादी के बाद एक बार जब उनकी बहन मायके आई तो कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के व्रत वाले दिन शाम को जब भाई खाना खाने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन करवा से भी खाना खाने को कहा। इस पर करवा ने कहा कि आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाएगी। इस पर उसके भाई परेशान हो गए कि उनकी बहन कैसे इतनी देर तक भूखी रहेगी। इस पर सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और उसने दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट रख दी। यह देखने में एकदम चांद जैसा दिख रहा था। इस पर उनकी बहन करवा को लगाकि यह चांद और वह उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। इस दाैरान जैसी ही करवा पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु की खबर उसे मिलती है। इस पर वह बेहद दुखी हो जाती है। इसके बाद उसकी भाभी उसे पूरी बात बताती है कि आखिर यह सब कैसे हुआ। उसका व्रत गलत तरीके से टूटने की वजह से भगवान नाराज हो गए हैं। इस पर करवा संकल्प लेती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी बल्कि अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के समीप बैठी रहती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' हालांकि हर सुहागिन मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन तैयार हो जाती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसका पति जीवित हो जाता है।

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