काशी के सिर्फ इसी तट पर गंगा में डूब जाता है बिल्वपत्र
काशी कोई शहर नहीं एक शख्सियत है। इसके तिलस्म से दुनियाभर के यायावर तो छोडि़ए खुद भगवान शिव भी बच नहीं सके। कैलाशवासी शिव का काशी प्रेम पूरी दुनिया जानती है पर उसके प्रत्यक्षं किम प्रमाणम् के पक्ष को चरितार्थ करता है काशी का मणिकर्णिका क्षेत्र का गंगा तट। इस रहस्य को जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि बाबा भोलेनाथ को बिल्वपत्र और धतूरा बेहद पसंद है। औघड़दानी शिव अपने भंग की तरंग को धार देने के लिए धतूरे का इस्तेमाल करते हैं, ये तो समझ में आता है लेकिन तीन दल वाले बिल्वपत्र के उन्हें पसंद आने की जो कथा है उसका अपना एक अलग रहस्य है। ऐसे में शिव को समर्पित होने वाला हर बिल्वपत्र उन तक पहुंचे ये किसकी दिली इच्छा नहीं होगी। विश्वास तो यही कहता है कि भक्त की ओर से चढ़ाये जाने वाला हर श्रद्धा सुमन उसके इष्ट तक पहुंचता ही है लेकिन इसे प्रमाणित कौन और कैसे करे? बाकी जगहों की तो छोडि़ए, काशी में भी एकमात्र वह स्थान आज भी है जहां चढ़ाया जाने वाला हर बिल्वपत्र खुद बाबा भोलेनाथ स्वीकार करते हैं, और वो है काशी में गंगातट पर स्थित मणिकर्णिका क्षेत्र की गंगा जलधार। यह क्षेत्र सिंधिया घाट से लेकर मणिकर्णिका घाट तक है।सम्पूर्ण भारत में यह अकेला ऐसा गंगा तट है जहां जलधार में समर्पित हर बेलपत्र गंगा में समाहित हो जाता है। बाकी स्थानों पर वह जलधार के साथ बह जाता है। काशी में भी दूसरा ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां यह चमत्कार दिखे।

काशी रहस्य : यहां गंगा में अर्पित बेलपत्र डूबकर सीधे पहुंचता है भगवान शिव के धामकाशी रहस्य : यहां गंगा में अर्पित बेलपत्र डूबकर सीधे पहुंचता है भगवान शिव के धाम

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मां पार्वती के कुंडल की मणि गिरने से हुआ चमत्कार
अब बात आती है कि आखिर ऐसा क्या है मणिकर्णिका क्षेत्र में? कहते हैं कि एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ वायुमार्ग से विचरते हुए काश के ऊपर से गुजर रहे थे। गंगा तट पर एक तरफ शवदाह और दूसरी तरफ स्नानार्थियों की भीड़ देख माता पार्वती ने शिव से पूछा, भगवन आखिर इस काशी में ऐसा क्या है जो आपको इतना प्रिय है जो आप कैलाश छोड़ कर अक्सर यहां आ जाते हैं? इस पर उन्होंने कहा कि यहां के मस्त मलंग लोग बिल्कुल मेरी तरह हैं। नंग-धडंग़ बेपरवाह। भांग छान कर मजा लेते हैं। वो बताते जा रहे थे और माता को उनकी बातों में रस आ रहा था। इसी बीच उनके कान के कुंडल की मणि निकल कर नीचे गिर गया। माता पार्वती परेशान हो उठीं। इस पर मुस्कराते भगवान शिव ने कहा परेशान मत हो प्रिये, अब ये स्थान मुझे और भी प्रिय हो गया। अब ये स्थान मणिकर्णिका कहलायेगा। गंगा तट पर यहां एक कुंड होगा जिसमें स्नान करने पर समस्त पापों का नाश होगा। इतना ही नहीं जिस किसी ने भी यहां गंगा में बिल्वपत्र अर्पित किया उसे मैं निश्चित रूप से ग्रहण करूंगा। दक्षिण भारत से आने वाले तमाम तीर्थ यात्री आज भी यहीं रूद्राभिषेक कर यहां का गंगाजल बाबा विश्वनाथ को चढ़ाते हैं।

 

काशी रहस्य : भगवान दत्तात्रेय मंदिर में होते हैं ऐसे चमत्कार

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