देव दीपावली पर असंख्य दीयों की रोशनी से जगमग हुए गंगा के घाट

विभिन्न घाटों पर मां गंगा की हुई महाआरती, शामिल हुए वीवीआईपी

शहर के कुंड तालाब और मंदिरों में भी जलाए गए दीये

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दिवाली तो देवताओं की थी पर धरती पर इंसानों ने जिस शिद्दत से पर्व की परंपरा निभायी उसे देखकर देवता भी धरती पर आ गये हों तो आश्यर्च नहीं। सरस सलीला मां गंगा के विशाल आंचल पर लाखों जगमगाते दियों की आभा सुनहरे गोटे के समान रहे। जहां तक नजर गई जगमग दीयों की लंबी श्रृंखला झिलमिलाती दिखी। शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा पर मनाये जाने वाले पर्व देव दीपावली को उत्सवधर्मी शहर बनारस ने कुछ ऐसे ही मनाया। खास यह रहा कि इस बार की देव दीपावली का नजारा देखने के लिए यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, रेल मंत्री पियुष गोयल, फेमस एक्टर अनिल कपूर के साथ देश भर से गणमान्य भी बनारस आये थे। राजघाट पर यूपी टूरिज्म डिपार्टमेंट की ओर से लेजर शो का भव्य आयोजन हुआ।

हर आंख ने संयोया अद्भुत नजारा

देव दीपावली पर स्वर्ग की परिकल्पना को गंगा के घाट पर अपनी पूरी ताकत से दमकते दियों की स्वर्णिम आभा ने पुष्ट किया। घाटों पर उमड़ने वाली लाखों लोगों की नजर में सीमा से परे जाकर सब संजो लेने की बेताबी रही। सबकुछ एक स्वप्नलोक जैसा था जिसे लोग खुली आंखों से देख रहे थे। इधर वाणी की अलग कहानी। शब्दों ने इस खास नजारों का बखान करने से इनकार कर दिया। जो देखा है वह खुद के लिए है किसी को बताने के लिए नहीं। गंगा के घाटों पर सजे असंख्य दीपों की रोशनी की जगमगाहट ने हर किसी का मन मोह लिया। जल रहे असंख्य दीपकों की लौ ने गंगा की लहरों पर अपनी छाप दिखायी और लगा कि घाटों पर जल रहे दीप लहरों के साथ इठलाते फिर रहे हैं।

उमड़ा अपार जन सैलाब

घाटों पर लोगों के पहुंचने का सिलसिला दोपहर बाद से शुरू हुआ और सूरज अस्त होने के साथ बढ़ता ही गया। दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, मानमंदिर घाट, अस्सी घाट, मीरघाट, त्रिपुरा भैरवी घाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट, पंचगंगा घाट, संकटा घाट, भोसले घाट, मेहता घाट, ब्रह्माघाट आदि घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं थी। दो बजे से ही देव दीपावली का नजारा लेने के ख्वाहिशमंद घाटों पर पहुंच कर अपनी जगह सुनिश्चित करने लगे। चार बजते बजते दशाश्वमेध, राजेन्द्र प्रसाद, शीतला आदि घाटों की ओर जाना पुलिस ने प्रतिबंधित कर दिया।

लगा नावों का मेला

देव दीपावली पर गंगा की लहरों पर नावों का मेला लगा। शायद ही कोई नाव हो जो किनारे पर हो। हर नाव पर लोग और सबकी नजर घाटों की तरफ। छोटी से लेकर बड़ी तक हर नाव लहरों पर मचलती दिखी। बजड़ों की तो रौनक ही अलग थी। बिजली के रंग-बिरंगे झालरों व फूलों से सजे बजड़े लहरों को थामे इस घाट से उस घाट तक लोगों को देव दीपावली के अनुपम नजारा दिखाते रहे। नावों की बुकिंग पहले से ही हो गयी थी। बहुत से लोगों ने शाम को घाट पर पहुंच कर नाव बुक करने की कोशिश की पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। नावों की बुकिंग 20 हजार से लेकर छह लाख रुपये तक हुई।

मां गंगा की हुई महाआरती

दशाश्वमेध घाट पर गंगा सेवा निधि की ओर से देव दीपावली का आयोजन हुआ। 21 ब्राह्माणों 42 कन्याओं ने मां गंगा का वैदिक रीति से पूजन-अर्चन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ। रेवती साकलकर ने देवी सरस्वती की वंदना व राष्ट्रगीत से किया। अध्यक्षता 39 जीटीसी के कर्नल बृजेश सिंह सवियान ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में फेमस फिल्म एक्टर अनिल कपूर ने भी शिरकत की। देश पर जान न्योछावर कर देने वाले वीर जवानों को समर्पित कार्यक्रम में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने आयोजन में चार चांद लगाया। इसी क्रम में शीतला घाट पर गंगोत्री सेवा समिति की ओर से भी देव दीपावली महोत्सव का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट महिला एवं परिवार कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने शिरकत की। केन्द्रीय देव दीपावली समिति की ओर से देव दीपावली कार्यक्रम का आयेाजन किया गया। 21 ब्राहमणों ने मां गंगा की विशेष आरती की। मां गंगा के अष्टधातु से बनी 108 किलों की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन हुआ। तुलसीघाट पर भी गंगा आरती का आयोजन हुआ। प्रख्यात ड्रमर शिवमणि ने ताल वाद्य की कचहरी सजायी। संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो। विश्म्भर नाथ मिश्रा, प्रो। विजय नाथ मिश्र की अगुवायी में हुए कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।

देवताओं की है दीपावली

काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा प्राचीन काल से है। पहले ये परंपरा सिर्फ पंचगंगा घाट पर थी। देव दीपावली का वर्तमान स्वरूप 1989 में वजूद में आया जो आज महोत्सव का रूप ले चुका है। देव दीपावली के आयोजन के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। पहली यह कि काशी के पहले राजा दिवोदास ने अपने राज्य में देवताओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन कार्तिक मास में पंचगंगा घाट पर स्नान के महात्म्य का लाभ लेने के लिए देवता छिप कर यहां आते रहे। बाद में देवताओं ने राजा दिवोदास को मना लिया और खुशी में दीपोत्सव हुआ। दूसरी कहानी के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस पर विजय के बाद देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर जी की महाआरती की थी और नगर को दीपमालाओं से सजा कर विजय दिवस मनाया।