पैरलाईज्ड शरीर, फिर भी किया काम
केरल के तिरुवनंतपुरम में रहने वाले 59 वर्षीय सशी कहानी भी दशरथ मांझी जैसी ही है। 18 साल पहले सशी एक नारियल के पेड़ से गिर गए थे। हाथ पैर टूट गए। बाद में ठीक हुआ तो पता चला कि दायां हाथ और बायां पैर पैरालाईज्ड हो चुका था। सशी के सामने अब कुछ ऑप्शन नहीं बचा था, काफी समय तक वो बिस्तर पर भी पड़े रहते थे। घर में एक ही कमाना वाला था, वो भी बेराजगार हो गया। ऐसे में घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। काफी समय बाद पंचायत ने एक तीन पहिया रिक्शा देने की बात कही। जिससे कुछ कमाने का जुगाड़ हो जाए। लेकिन रिक्शा तब चलता जब सड़क बनी होती, गांव की पगडंडी में रिक्शा चल पाना नामुमकिन था।

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और गांव वालों को मिल गई सड़क

पंचायत और सरकार मिलकर सड़क बना देगी, सशी को पता था कि यह असंभव है। बस फिर क्या सशी खुद ही लग गए खुदाई करने। सशी का एक पैर और हाथ काम नहीं कर रहा था। फिर भी रोजाना कम से कम 6 घंटे तक उन्होंने पहाड़ खोदा। और आज हालात ये है कि वहां 200 मीटर लंबी कच्ची सड़क बनकर तैयार है। और कम से कम इतनी चौड़ी की एक छोटी गाड़ी तो आ जा सकती ही है। अब सशी कहते हैं कि पंचायत मुझे गाड़ी दे या न दे लेकिन कम से कम गांव वालों को सड़क तो मिल जाएगी।

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