संघ की पसंद को मिली प्राथमिकता

पिछड़ों को साधने की कवायद तेज

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LUCKNOW: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व हिंदू परिषद राम मंदिरपिछड़ा वोट बैंक मिशन 2017 भारतीय जनता पार्टी के नये प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्या इन सियासी समीकरणों में फिट बैठते हैं। शायद यही वजह है कि तमाम बड़े चेहरों के बावजूद अचानक केन्द्रीय नेतृत्व ने उनकी ताजपोशी कर दी। यह फैसला भले ही आम लोगों को हैरान करने वाला हो लेकिन सियासी लोगों की मानें तो भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा दांव खेला है। मौर्या का पुराना आपराधिक इतिहास भी शायद इसी सियासी नफा-नुकसान की कसौटी पर नकारा गया।

मनोज सिन्हा ने कर दिया था मना

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती के लिए तमाम चेहरे सुर्खियां बनते रहे। राजधानी के महापौर डॉ। दिनेश शर्मा से इसकी शुरुआत हुई जो केन्द्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा पर जाकर टिक गयी। बीच में स्वतंत्र देव सिंह, धर्मपाल सिंह रामशंकर कठेरिया, योगी आदित्यनाथ दावेदारों में गिने जाने लगे लेकिन पार्टी जल्दबाजी में नहीं दिखी। एक समय ऐसा भी आया कि डॉ। लक्ष्मीकांत बाजपेई को ही प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बरकरार रखने की चर्चा भी उठी लेकिन एमएलसी चुनाव में हुई फजीहत ने इस पर पानी फेर दिया। मनोज सिन्हा के नाम पर पार्टी में सहमति भी बनी लेकिन वे राजी नहीं हुए। इसके बाद ही तय हो गया कि पार्टी किसी नये चेहरे की ताजपोशी करेगी। इसके साथ ही पिछड़ी जाति के किसी नेता को वरीयता दी जाएगी।

चुनौतियां भी कम नहीं

इलाहाबाद के फूलपुर से सांसद केशव मौर्या को सबसे पहले पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी का सामना करना पड़ेगा। साथी सांसदों को भी साथ लेकर चलना उनकी मजबूरी होगी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ। लक्ष्मीकांत बाजपेई की तरह उन्हें सक्रिय और मुखर भी होना पड़ेगा तभी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार कर पायेगी। लोकसभा चुनाव में मिली भारी जीत को केन्द्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव में भी दोहराना चाहेगा। पिछड़ा वोट बैंक को भी भाजपा के पक्ष में एकजुट करना होगा। इन तमाम चुनौतियों से वे किस तरह पार पाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।