- रजीडेंट्स के प्रति केजीएमयू संवेदनहीन, लिया जा रहा है 36 घंटे तक काम

- एमसीआई के नियमों को ताक पर रखकर कराया जा रहा काम

LUCKNOW :

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई)) के सख्त निर्देशों के बाद भी केजीएमयू रेजीडेंट डॉक्टर्स से लगातार 36 घंटे तक काम लिया जा रहा है। जबकि एमसीआई का नियम है कि रेजीडेंट डॉक्टर्स से इमरजेंसी में एक बार में 8 घंटे से अधिक काम न लिया जाए। वहीं हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाना चाहिए। रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के अनुसार लगातार काम के बोझ के तले दबे रेजीडेंट डिप्रेशन में जा रहे हैं। इसी के चलते ऑर्थोपेडिक विभाग के डॉ। विवेक कुमार ने सुसाइड करने का प्रयास किया।

रेजीडेंट के पिता ने लगाए गंभीर आरोप

आर्थोपेडिक विभाग जेआर1 डॉ। विवेक कुमार ने सोमवार को अपने हाथ की नसें काट ली थी। रेजीडेंट और उनके परिजनों ने भले ही केजीएमयू को लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई, लेकिन वह केजीएमयू प्रशासन से बहुत नाराज हैं। रेजीडेंट एसोसिएशन का कहना है कि डॉ। विवेक की हालत के लिए केजीएमयू प्रशासन दोषी है। विवेक के फादर डिप्टी सीएमओ डॉ। केडी प्रसाद ने बताया कि संसाधनों और स्टाफ की कमी का बोझ जूनियर डॉक्टर्स को ही झेलना पड़ता है। कई बार हालात ऐसे होते हैं कि बिना खाए पिए ही लगातार काम करना पड़ता है जिसके कारण रेजीडेंट डॉक्टर डिप्रेशन में जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी एक साल भी नहीं हुआ था कि काम के दबाव की वजह से बेटा डिप्रेशन में चला गया। पिछले कई माह से साइकियाट्री डिपार्टमेंट से दवाएं ले रहा था। ऑर्थोपेडिक विभाग की फैकल्टी को इसकी पूरी जानकारी थी, लेकिन काम के दबाव से उसे मुक्ति नहीं मिल रही थी।

खबर छपने के बाद जागे वीसी

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट में खबर छपने के बाद आखिकार केजीएमयू वीसी प्रो। एमएलबी भट्ट को अपने रेजीडेंट को देखने की याद आई, जबकि एक दिन पहले ही उनके सभी अधिकारियों को मालूम था कि उनके रेजीडेंट ने सुसाइड करने की कोशिश की है। इसके बाद सिर्फ चीफ प्रॉक्टर और ट्रॉमा के सीएमएस डॉ। यूबी मिश्रा ही रेजीडेंट से मिलने पहुंचे। वीसी मंगलवार दोपहर ट्रॉमा सेंटर पहुंचे और रेजीडेंट से बातचीत की, किन यह सब होने के बावजूद वीसी को रेजीडेंट्स की समस्याएं नहीं दिखी।

नहीं होती कोई सुनवाई

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में इमरजेंसी में काम कर रहे रेजीडेंट डॉक्टर काम के बोझ तले दबे हैं। आरडीए का आरोप है कि 90 फीसद इमरजेसी में काम कर रहे रेजीडेंट डॉक्टर किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं। जिसका सबसे मेन कारण है 24 से 36 घंटे तक लगातार काम लिया जाना। कई बार रेजीडेंट डॉक्टर्स से आवाज उठाई लेकिन सीनियर फैकल्टी और केजीएमयू प्रशासन ने उनकी मांगों को ताक पर रखा।

टायलेट जाने का समय नहीं

केजीएमयू में इमरजेंसी वाले मरीजों को हैंडल कर रहे एक रेजीडेंट डॉक्टर ने बताया कि कई बार 24 घंटे तक टायलेट जाने का भी समय नहीं मिलता। जो भी आता है जेआर1 को ही चार बातें सुना कर जाता है।

कागजों तक सीमित रोस्टर की धज्जियां

एमसीआई के नियमों के तहत ट्रॉमा सेंटर में रेजीडेंट डॉक्टर्स की ड्यूटी रोस्टर के अनुसार लगाई जानी चाहिए। कागज पर यह रोस्टर बनाया भी जाता है, लेकिन वह सिर्फ कागज तक ही सीमित होता है। आरोप है कि ड्यूटी में आने का तो समय है लेकिन जाने का नहीं है। पूर्व वीसी ने आदेश जारी कर 12 घंटे से अधिक ड्यूटी न लिए जाने के आदेश दिए थे। लेकिन कुछ माह में ही इसे कैंसिल करे रेजीडेंट्स को मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है।

बाएं की बताए दाएं की सर्जरी

रेजीडेंट के प्रेशर और नींद न पूरी होने के कारण ही अक्सर इलाज में गलती होती है। कुछ वर्ष पहले हड्डी के ही एक रेजीडेंट ने नींद में बाएं पैर की हड्डी टूटी होने के बावजूद दाएं में ड्रिल मशीन चला दी थी। ऐसी घटनाएं अक्सर होती हैं। खबर पर बात करने के लिए न तो वीसी प्रो। एमएलबी भट्ट ने फोन उठाया और न ही केजीएमयू के प्रवक्ता प्रो। नर सिंह वर्मा ने। सभी मामले से अपना पल्ला झाड़ते दिखे।

पहले से ही विभागों को निर्देश हैं कि लगातार काम न लिया जाए। सुसाइड का प्रयास करने वाले रेजीडेंट्स से बातचीत की गई थी। उसकी हालत में सुधार है।

- प्रो। एसएन शंखवार, सीएमएस, केजीएमयू