-बीएयू में खरीफ रिसर्च काउंसिल की 36वीं बैठक

-बीएयू के वैज्ञानिक व कई जिलों से आए एक्सप‌र्ट्स ने दिए सुझाव

RANCHI: बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ। जॉर्ज जॉन ने साइंटिस्ट से झारखंड की परिस्थिति और मौसम के अनुरूप रिसर्च करने का आह्वान किया है। इससे राज्य में फसलों के उत्पादन में वृद्धि होगी। साथ ही किसान भी खुशहाल रहेंगे। बीएयू के खरीफ रिसर्च काउंसिल की फ्म्वीं बैठक को संबोधित करते हुए उन्हाेंने कहा कि प्रकृति के साथ मेलजोल से खेती को कैसे बढ़ाया जाए, इस विषय पर एक वर्कशाप होगा। मौके पर काफी संख्या में बीएयू के साइंटिस्ट और कई जिलों से आए एक्सपर्ट भी मौजूद थे।

हर तकनीक पर प्रैक्टिस जरूरी

बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, सबौर, भागलपुर के वीसी डॉ। एके सिंह ने बताया कि रिसर्च में क्या जरूरत है, इसे विषयवार चिन्हित करने की जरूरत है। उन्होंने नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट और क्लाइमेट चेंज के पहलुओं को ध्यान में रखते हुए रिसर्च प्लानिंग को नई दिशा देने को जरूरी बताया। कहा कि जो भी टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की जाती है, उसे पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज में जरूर शामिल किया जाना चाहिए।

पशुपालन में रोजगार के अवसर

वेटनरी साइंटिस्ट और हार्वेट, जर्मनी के पूर्व टेक्निकल डायरेक्टर डॉ। एसएन सिंह ने कहा कि ग्रामीण भारत की सूरत बदलने के लिए पशुपालन के क्षेत्र में ब्रीडिंग, केयर और हेल्थ पर ध्यान दिया जाएगा। साथ ही बताया कि पशुओं में होने वाली खुरहा-चपका बीमारी के कारण हर साल व‌र्ल्ड में ब्ब्,000 करोड़ का नुकसान हो रहा है। भारत के अलावा पूरे एशिया में पशुपालन लोगों को रोजगार दे सकता है। उन्होंने कहा कि ज्ञान दौलत है, लेकिन आप इसका उपयोग कैसे करते हैं, यह अहम है। उनके अलावा बीएयू के कई अन्य वरीय अधिकारियों ने भी अपने विचार रखे।

दलहन-तिलहन की कई किस्में आई

पिछले साल की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए बीएयू के रिसर्च डायरेक्टर डा। डीके सिंह द्रोण ने बताया कि चावल का म्, तीसी का क् व मुर्गी का क् प्रभेद केन्द्र सरकार द्वारा जारी किया गया। जबकि मडुआ, सोयाबीन, मूंगफली और चना के भ् प्रभेद जल्द ही जारी किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मांस और दूध उत्पादन में अभी हम काफी पीछे हैं। 9 जुलाई को पशु चिकित्सा व वानिकी संकाय की शोध उपलब्धियों पर चर्चा होगी।