अपहर्ताओं से मुक्त होकर लौटे आशीष के परिवारवालों ने बताई पूरी कहानी

सुरियावां पुलिस से कहानी सुन परिवारवालों में भी समाया भय

स्कूल जाते समय रास्ते में किडनैप हुआ आशीष द्विवेदी बुधवार को स्कूल नहीं गया। अपहर्ताओं से मुक्त होने के बाद उसे लेकर के लिए पहुंचे परिवार के सदस्य भी सुरियावां में सक्रिय बच्चों के अपहर्ता गैंग की कहानी पुलिस की जुबानी सुनकर दंग रह गए। परिवार के सदस्यों ने तमाम सवालों से बचाने के लिए आशीष को घर से हटा दिया है। परिवार के लोग फिलहाल सदमे में हैं। इसी के चलते बड़ा भाई शिवाकांत भी स्कूल नहीं गया।

फतेहपुर के निवासी, कालिंदीपुरम में निवास

आशीष के पिता संतोष द्विवेदी मूलरूप से फतेहपुर के रहने वाले हैं। वह रेलवे इम्प्लाई हैं। करीब सात साल पहले उन्होंने कालिंदीपुरम में मकान लिया और परिवार के साथ यहीं रहने लगे। उनके दोनों बेटे आशीष और शिवाकांत एक ही स्कूल के छात्र हैं। सोमवार को वह दिल्ली गए थे। उन्हें इसकी सूचना दिल्ली से लौटते समय रास्ते में मिली थी। बुधवार को उन्होंने आई नेक्स्ट को बताया कि आशीष के साथ हुई घटना की जानकारी उन्हें दोपहर में 12 बजे के करीब हुई जब सुरियांवां में स्थित ढाबे से कॉल आई। इसके बाद उन्होंने बड़े बेटे शशिकांत और पड़ोसी विजय को स्पॉट पर भेजा।

काली रंग की स्कार्पियो से थे

संतोष द्विवेदी के अनुसार आमतौर पर आशीष और शशिकांत साथ ही स्कूल जाते हैं लेकिन अक्सर मिलने वाली डांट के चलते आशीष मंगलवार की सुबह जल्दी अकेले ही निकल गया था। घर लौटे आशीष ने उन्हें बताया कि झलवा स्थित हनुमान मंदिर के पास एक ब्लैक कलर की स्कार्पियो से उतरे दो लड़कों ने उसे रोका और कुछ पूछने लगे। बातों में उलझाने के दौरान ही एक ने रुमाल को नाक पर रखा। इसके बाद वह बेहोश हो गया। होश आया तो गाड़ी में था। इसमें अधेड़ उम्र के दो और चार युवक सवार थे। उसे हिलते-डुलते देखकर वे एलर्ट हो गए थे। वह सिर्फ इतना सुन पाया कि होश में आने पर नंबर लेकर परिवारवालों से फिरौती के रूप में बीस लाख की मांग की जाय। आशीष ने इसी दौरान मौका पाकर अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया। इसके बाद उसे फिर से रुमाल सुंघा दिया गया और वह अचेत हो गया।

पब्लिक ने की मदद

उन्होंने बताया कि सुरियांवां क्रासिंग के पास पहुंचने तक आशीष एक बार फिर होश में आ गया। उसे स्कार्पियो में पीछे रखा गया था। इस बार उसने कोई हरकत करने के स्थान पर दिमाग लगाया और लॉक को खोलकर गाड़ी से कूद गया और शोर मचाने लगा। बदली परिस्थितियों में स्कार्पियो सवारों के पास भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। आशीष से पूरी कहानी सुनने के बाद स्थानीय लोगों ने उसे समीप स्थित एक ढाबे पर पहुंचाया। ढाबा संचालक ने आशीष के ही फोन से सुरियावां पुलिस और उसके परिवार वालों को सूचना दी।

सुरियावां है अपहृत बच्चों को रखने का गढ़

आशीष को लेने पहुंचे शशिकांत और विजय कुमार को सुरियावां पुलिस ने जो कहानी सुनाई वह बेहद चौंकाने और दहला देने वाली थी। बताया गया कि यहां दो दर्जन से अधिक बच्चों के शव मिल चुके हैं। उन्हें अपहृत करके यहां लाया गया था। उन्होंने आशीष की बहादुरी की तारीफ की और कहा कि किस्मत ने उसे बचा लिया। आशीष के लौटने से संतोष का परिवार राहत की सांस ले रहा है लेकिन डर जस का तस बना हुआ है। उनका कहना है कि मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है और न ही मैं 20 लाख दे सकता था। ईश्वर ने मेरी मदद की है।