- गोरखपुर में यंग जनरेशन को आउटडोर गेम में कम है इंटरेस्ट

- एक दर्जन से ज्यादा कैंप चलने के बाद भी खाली रह जाती हैं कई फील्ड

- वीडियो गेम्स ने ही ले ली है जगह, गोरखपुर से निकले हैं दर्जनों इंटरनेशनल अधिकारी

GORAKHPUR: बच्चा मोटा होता जा रहा है, पढ़ने में मन नहीं लगता, अकेले बाहर जाने में डरता है, कुछ भी करने से डरता है और आपका सपोर्ट चाहता है। अगर ऐसे सिंप्टम्स आपके बच्चों में भी नजर आते हैं, तो आपको अलर्ट हो जाने की जरूरत है। लगातार कम हो रही एक्टिविटी और फिजिकल इंवॉल्वमेंट आपके लाडले को एनजाइटी और बीमारियों की ओर तेजी से लेकर जा रहा है, जहां से वापस लौटना काफी मुश्किल और टेढ़ी खीर होगी। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि स्टडीज में यह बातें सामने आई हैं। बच्चे घरों में बैठकर लगातार गेम्स और टीवी में लगे हुए हैं, जिससे उनकी फिजिकल एक्टिवनेस कम होती जा रही है, नतीजे में उन्हें बीमारियों का तोहफा मिल रहा है। अगर हम अब भी नहीं चेते, तो फ्यूचर में हमारे बच्चे इसकी जद में होंगे और हमें भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

पढ़ाई का बोझ, पेरेंट्स भी चुप

मौजूदा दौर तेज रफ्तार से चल रहा है। इसमें बच्चों के पास सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक अपने लिए वक्त नहीं है। पढ़ाई का बोझ उन्हें लगातार परेशान किए हुए है। सुबह उठे तो स्कूल रवाना हो गए, दोपहर में लौटे तो खाना खाने के बाद कोचिंग की टेंशन, वापस लौटे तो थकने की वजह से घर पर ही मोबाइल में वक्त बिताया और फिर रात में पढ़ाई शुरू कर दी। पेरेंट्स भी यह सोचकर चुप हैं कि उनका लाडला थका-हारा आया है, थोड़ा बहुत रिलैक्स कर लेने दिया जाए। मगर यही बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम होती चली जा रही है और वह बीमारी की चपेट में आने लग गए हैं।

यह गेम्स हैं खास पसंद

- पबजी

- टेंपल रन

- सबवे सर्फर

- कैंडी क्रश

- बबल शूटर

- टैक्सी

- टी-20 क्रिकेट

- रेसिंग

यह भी डिमांड में

- टिक-टॉक

- फेस एप

- वीडियो एडिटर

रीजनल स्टेडियम में इन गेम्स की है फैसिलिटी

- एथलेटिक्स

- जिम्नास्टिक

- नेट बॉल

- टेबल टेनिस

- बास्केटबॉल

- अर्चरी

- ताइक्वांडो

- स्वीमिंग

- फुटबॉल

- हैंडबॉल

- वेट लिफ्टिंग

- शूटिंग

- हॉकी

- क्रिकेट

- रेसलिंग

- स्क्वैश

- बॉक्सिंग

- जूडो

- कबड्डी

कोट्स

बच्चे आउट डोर गेम में पार्टिसिपेट करते हैं, तो यह दिन में होते। ऐसे में वह बाहर जाकर सोशल एटमॉस्फियर एक्वायर करते हैं, जिससे सोशल एक्सपीरियंस गेन करते हैं। वहीं जब वह बच्चों के साथ रहते हैं, तो टीम में काम करते हैं, टीम को समझते हैं। उनके अंदर लीडरशिप स्किल डेवलप होती है। वहीं जो बच्चे इससे दूर रहते हैं, उनपर एडवर्स इफेक्ट पड़ता है। फिजिकल एक्टिविटी ब्रेन के डेवलपमेंट के लिए बहुत जरूरी है, इससे ब्रेन का मेटाबोलिक फंक्शन बेहतर होगा। जिससे ह्यूमन बींग का ओवरऑल डेवलपमेंट बेहतर होगा। वहीं जो बाहर नहीं जाते हैं, उनमें प्रॉब्लम आती है। वह इंडिपेंडेंट नहीं होते हैं और पेरेंट पर डिपेंड हो जाते हैं। उन्हें कोई भी काम करने में हिचकिचाहट महसूस होती है। कोई काम दिया जाए, तो उसको करने से कतराते हैं। एनजाइटी और प्रॉब्लम के साथ सिचुएशन से भागने की कोशिश में लग जाते हैं। काम मिलते ही पहले ही यह तय कर लेते हैं कि वह यह काम नहीं कर पाएंगे। इसमें फिजिकल एक्टिविटी लाइफ का सबसे क्रूशल एलिमेंट है और हर हाल में इसे करने की जरूरत है।

डॉ। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

ज्यादातर बीमारी, कम से कम फिजिकल एक्सरसाइज करने से होते हैं। लॉन्ग टर्म में उसका लंबा प्रभाव मोटापा, डिप्रेशन, नींद न आना, ब्लड प्रेशर, शुगर, गठिया की बीमारी, युरिक एसिड के तौर पर नजर आता है। तत्कालिक तौर पर आंख कमजोर, पढ़ाई से मन खत्म, हमेशा उदास और भारीपन, पारिवारिक भाईचारा खत्म होना, सामाज और सामाजिक क्रिया कलापों से दूर होने जैसे सिम्प्टम नजर आने लगते हैं। जब कंडीशन थोड़ी और क्रिटिकल हो जाती है तो क्राइम को जन्म देना, एडवांस स्थित में सुसाइड अटेंप्ट तक मामला पहुंच जाता है।

डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फिजिशियन

फिजिकल एक्टिविटी में बच्चों का इनवॉल्वमेंट कम होता जा रहा है। बिजी लाइफ में टाइम कम मिल रहा है, जिससे मुश्किलें बढ़ रही हैं। स्कूल के ज्यादातर बच्चे बीमारी का शिकार हो रहे हैं।

- हसीब रहमान, प्रोफेशनल, छोटेकाजीपुर

बच्चों को हमने ही बीमार बना दिया है। अगर वह बाहर नहीं जा रहा है, इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। अगर हम बच्चों को मोबाइल और टेलीविजन से दूर रखें और टाइम टू टाइम ही इसे देखने के लिए दें तो ऐसी प्रॉब्लम नहीं आएगी।

- बच्चूलाल, सीनियर जर्नलिस्ट, हड़हवा फाटक

बच्चों को स्कूल के बर्डन से दूर रखा जाए और शाम में उन्हें घर के बाहर खेलने के लिए जरूर भेजा जाए। इसके लिए पेरेंट्स ही टाइम टेबल सेट करें, जिससे उन्हें फ्यूचर में किसी तरह की प्रॉब्लम न फेस करनी पड़े।

- डॉ। राजेश गुप्ता, शिक्षक, जुबिली इंटर कॉलेज

बच्चों को जब समझओ कि बाहर खेलो तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर आना-कानी करते हैं। वहीं जब उन्हें मोबाइल दे दो तो फौरन ही इसे लेकर बैठ जाते हैं। मेरे जानने वाले काफी लोगों के बच्चों को कम उम्र में ही चश्मा लग गया है। घर में बच्चों को मैं ऐसा नहीं करने देता हूं।

- लतीफ खान, प्रोफेशनल

फिजिकल एक्टिविटी में बच्चों की पार्टिसिपेशन कुछ बढ़ी है। कबड्डी और जिम्नास्टिक के लिए अब छोटे बच्चे काफी आ रहे हैं। लोगों का इंटरेस्ट बढ़ रहा है। फिजिकल एक्टिविटी फायदेमंद है, लोगों को अब समझ में आ रहा है, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को स्टेडियम में भेजना शुरू कर दिया है।

- अरुणेंद्र पांडेय, रीजनल स्पो‌र्ट्स ऑफिसर