फ्लैग: दिव्या कांड के 'हैवान' को आजीवन कारावास, मां ने कहा फैसले से संतुष्ट नहीं

हेडिग: 'फांसी से कम मुझे मंजूर नहीं'

-8 साल तक चली सुनवाई के बाद बुधवार को विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट ज्योति कुमार त्रिपाठी ने सुनाया फैसला

- मुख्य आरोपी पीयूष को दरिंदगी और हत्या का दोषी मानते हुए उम्र कैद सुनाई, अन्य दो आरोपियों को एक साल की सजा

- मुख्य आरोपी का पिता और स्कूल प्रबंधक को किया गया बरी, केस में 38 गवाहों की पेशी, 125 पेज का लंबा आर्डर आया

KANPUR: शहर के चर्चित दिव्या कांड में आठ साल की लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने मुख्य आरोपी पीयूष को दरिंदगी और हत्या का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि उसके भाई और मैनेजर को लापरवाही में एक साल की सजा सुनाई गई। जबकि मुख्य आरोपी के पिता को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। हालांकि कोर्ट के फैसले से दोनों पक्ष (पीडि़त और आरोपी) संतुष्ट नहीं है। दोनों पक्षों ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की बात कही है। दिव्या की मां का कहना है कि मेरी मासूम बेटी के साथ विद्या के मंदिर(स्कूल) के अंदर हैवानियत की गई। दोषियों को फांसी से कम की सजा मुझे मंजूर नहीं है।

दिव्या कांड को समझिए

रोशन नगर निवासी प्राइवेट कर्मी की 10 साल की बच्ची दिव्या रावतपुर स्थित ज्ञान स्थली स्कूल की छात्रा थी। यह स्कूल रावतपुर निवासी चंद्रपाल वर्मा का था। जिसका कामकाज चंद्रपाल के बेटे मुकेश और पीयूष देखते थे। दिव्या 27 अक्टूबर 2010 को स्कूल गई थी। इंटरवल के पहले तक दिव्या ठीक थी और साथी छात्राओं से बात कर रही थी। इंटरवल के बाद उसके प्राइवेट पार्ट से रक्तस्राव होने लगा। स्कूल प्रशासन को जानकारी हुई तो उन्होंने दिव्या को अस्पताल ले जाने के बजाय परिजनों को जानकारी दी। परिजन दिव्या को अस्पताल ले गए। जहां उसको मृत घोषित कर दिया। अगले दिन दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो खुलासा हुआ कि दिव्या के साथ स्कूल में कुकर्म किया गया था। रिपोर्ट आते ही परिजनों के होश उड़ गए। शहरवासी भी अवाक रह गए।

नहीं चल पाया पुिलस का खेल

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ये यह भी खुलासा हुआ कि समय से अस्पताल न ले जाने के कारण दिव्या की मौत हो गई। यह मामला मीडिया की सुर्खियों में था। कानपुराइट्स ने भी हैवानियत के आरोपियों की गिरफ्तारी और उन्हें फांसी देने की मांग करते हुए सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस ने दबाव बढ़ता देख जल्दबादी में असली आरोपियों को पकड़ने के बजाए एक निर्दोष रिक्शा चालक मुन्ना को गिरफ्तार मामले को दबाने की कोशिश की। पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर कई दिन तक यातनाएं दीं और जबरन उससे गुनाह कबूल करवा कर जेल भेज दिया। लेकिन, मीडिया के सच्चाई सामने लाने से पुलिस करतूत सामने आ गई। सामाजिक संगठनों ने पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। जिसे संज्ञान में लेकर तत्कालीन बसपा सरकार ने संबंधित पुलिस अफसरों को निलंबित कर जांच सीबीसीआईडी को ट्रांसफर कर दी थी। सीबीसीआईडी की जांच में मुन्ना को क्लीन चिट देते हुए स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा, उनके बेटे पीयूष, मुकेश और कर्मचारी सतीश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। इस मुकदमे की सुनवाई विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी की कोर्ट में हुई।

पीएम रिपोर्ट देख कांप उठी रूह

दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से कुकर्म का पता चला था। रिपोर्ट के मुताबिक दिव्या के साथ कुकर्म करने के बाद उसके प्राइवेट पार्ट पर किसी भारी वस्तु से वार किया गया था। उसको नाखून से नोचा भी गया था। मासूम के साथ इतनी दरिंदगी की बात सुनकर हर शख्स की रूह कांप गई थी।

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10 साल की बच्ची दिव्या के साथ स्कूल में हैवानियत

8 साल तक चली दिव्या कांड मामले की सुनवाई

7 संगीन धाराओं में मामला दर्ज किया था

3 पुलिस अफसरों को किया सस्पेंड, डीआईजी पर जांच

4 आरोपी बनाए गए थे मामले में, एक को रिहा किया

38 गवाह पेश किए गए मुकदमे की सुनवाई के दौरान

125 पेज का लंबा ऑर्डर सुनाया है कोर्ट ने

14 लोगों के डीएनए सैंपल लिए गए जांच के लिए

12 पेज की लिखित बहस अभियोजन पक्ष की ओर से

115 पेज की लिखित बहस बचाव पक्ष की ओर से हुई

24 नवंबर को कोर्ट में केस पर अंतिम बहस हुई

बॉक्स के साथ

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने छेड़ी थी मुहिम

पुलिस ने दिव्या कांड को दबाने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की मुहिम से पुलिस गुनाह के असली आरोपियों को बचाने ओर निर्दोष को फंसाने के खेल में कामयाब नही हो पाई थी। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने दिव्या को इंसाफ दिलाने, आरोपियों को जेल पहुंचाने और 'खेल' करने वाले पुलिस कर्मियों को सजा दिलाने के लिए लगातार मुहिम चलाई। जिसमें सभी सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने भी साथ देते हुए मामले की निष्पक्ष जांच का दबाव बनाया। सामाजिक संगठनों ने कैंडिल मार्च, धरना और प्रदर्शन किए थे। करीब एक महीने तक पुलिस और तत्कालीन सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। दिव्या की मां ने सीबीआई से जांच कराने की मांग थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने 24 अक्टूबर 2010 सीबीसीआई़डी को जांच ट्रांसफर करनी कर दी।

मीडिया कर्मियों पर झूठे मुकदमे

दिव्याकांड में पुलिस के खेल का खुलासा होने पर उनकी चौतरफा आलोचना हो रही थी। पुलिस ने किरकिरी से बचने के लिए मीडिया पर भी दबाव बनाने की कोशिश की। इसके लिए पुलिस ने कुछ मीडिया कर्मियों को रेप जैसे संगीन मुकदमे में भी फंसा दिया था, लेकिन कोर्ट में पुलिस का 'खेल' चल नहीं पाया और मीडिया कर्मी बरी हो गए।

डीआईजी पर जांच, तीन अफसर सस्पेंड

रावतपुर में जब दिव्या कांड हुआ था। उस समय कल्याणपुर थाने के इंस्पेक्टर अनिल कुमार, सीओ लक्ष्मी निवास मिश्रा और एसपी ग्रामीण लाल बहादुर थे। डीआईजी प्रेम प्रकाश थे। पुलिस के 'खेल' का खुलासा होने पर इंस्पेक्टर, सीओ और एसपी को निलंबित कर उनके खिलाफ साक्ष्य छुपाने की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। साथ ही डीआईजी प्रेम प्रकाश का ट्रांसफर कर उन पर विभागीय जांच बैठा दी गई थी। इसके बाद मामले की जांच सीबीआईडी के इंस्पेक्टर एके सिंह ने की थी।

निर्दोष मुन्ना छूटा, आरोपी सलाखों के पीछे पहुंचे

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने मुहिम के बाद जांच सीबीसीआईडी इंस्पेक्टर के पास आई गई। इंस्पेक्टर ने जांच शुरू की तो उनको पता चला कि पुलिस की कहानी में छेद ही छेद है। पुलिस ने असली गुनाहगार को बचाने के लिए निर्दोष रिक्शा चालक मुन्ना को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। सीबीसीआईडी ने निर्दोष मुन्ना के खिलाफ कोई सबूत न मिलने पर धारा 169 के तहत उसको जेल से रिहा करा दिया। मुन्ना जेल से छूटने के बाद उन्नाव चौरासी गांव चला गया और वापस नहीं आया। इसके बाद सीबीआईडी इंस्पेक्टर कड़ी से कड़ी जोड़कर स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा, उनके बेटे मुकेश, पीयूष और कर्मचारी संतोष सिंह तक पहुंच गए। उन्होंने चारों को गिरफ्तार कर जेल भेजकर उनके खिलाफ चार्जशीट लगा दी।

14 लोगों के डीएनए सैंपल लिए

पुलिस जब दिव्याकांड की जांच करने स्कूल पहुंची थी तो स्कूल के बाथरूम और क्लास रूम में खून फैला था। इसके अलावा पुलिस को ऊपरी मंजिल स्थित एक क्लास में भी खून के निशान मिले थे। दिव्या के कपड़े भी खून से सने थे। पोस्टमार्टम में उसके प्राइवेट पार्ट पर सीमन और बाल मिले थे। जिसके चलते सीबीआईडी ने डीएनए जांच की मांग कोर्ट से की थी। कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद 9 नवंबर को 14 लोगों का ब्लड सैंपल लिया गया था। जिसमें स्कूल प्रबंधक, उनके दो बेटे और आरोपी कर्मचारी भी शामिल था। डीएनए जांच के लिए हैदराबाद लैब में सैंपल भेजा गया था। जहां से 29 दिसंबर को रिपोर्ट आई थी।

रोज सुनवाई के आदेश के बाद फैसला

कोर्ट में दिव्याकांड की आठ साल से सुनवाई चल रही थी। इस दौरान चार्ज फ्रेम होने पर तीन बार आरोपी पक्ष हाईकोर्ट गया। इसके बाद आरोपियों पर धारा 377, 302, 304, 201, 109, 376 2एफ, 202 का चार्ज फ्रेम हुआ। बचाव पक्ष के अधिवक्ता गुलाम रब्बानी का कहना है कि वह हाईकोर्ट से प्रति दिन सुनवाई का आदेश लाए थे। जिसके बाद एक महीने से रोज सुनवाई हो रही थी। उन्होने 24 नवंबर को अंतिम बहस की थी। उन्होंने 115 पेज की लिखित बहस की, जबकि अभियोजन पक्ष ने 12 पेज की लिखित बहस दाखिल की थी। जिसके बाद फैसला आया है।

125 पेज का आर्डर, 38 गवाह पेश हुए

इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष से विशेष लोक अभियोजक नागेश कुमार दीक्षित, एडवोकेट अजय सिंह भदौरिया और संजीव सिंह सोलंकी पैरवी कर रहे थे। एडवोकेट अजय सिंह भदौरिया ने बताया कि मुकदमे में 38 गवाह पेश हुए। जिसमें दिव्या की मां, पिता, मकान मालिक का बेटे राजेश शुक्ला, मकान मालकिन विमला देवी और राजीव पालीवाल थे। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस, गवाहों के बयान और सबूत के आधार पर 125 पेज का आर्डर किया है।

बॉक्स

इंसाफ अभी बाकी है

कोर्ट का फैसला आने के बाद दिव्या फूट फूटकर रोने लगी। वह फैसले संतुष्ट नहीं है। उसका कहना है कि मेरी फूल जैसी बेटी के साथ दरिंदगी की गई थी। जिससे उसकी मौत हो गई। उसके साथ हैवानियत की गई थी। जिसे सुनकर भी रूह कांप जाएगी। मेरी बच्ची के साथ हैवानियत करने वाले को फांसी की सजा होनी चाहिए।

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फैसले के खिलाफ हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे। मेरा मुवक्किल निर्दोष है। उसको सीबीसीआईडी ने फर्जी फंसाया था। मुझे पूरा विश्वास है कि हाईकोर्ट से बाइज्जत बरी होकर आएंगे।

गुलाम रब्बानी, बचाव पक्ष के अधिवक्ता

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माननीय न्यायालयय ने अपना फैसला सुनाया है। हमें उम्मीद थी कि इस जघन्य अपराध के लिए दोषियों को फांसी की सजा मिलेगी। फैसले की कॉपी पढ़ने के बाद हम फांसी की सजा के लिए हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

अजय सिंह भदौरिया, पीडि़त पक्ष के वकील

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कब क्या हुआ

27 सितंबर 2010- दिव्या से स्कूल में दरिंदगी, खून बहने और इलाज के अभाव में मौत

29 सितंबर 2010- स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल, उनके बेटे मुकेश को हिरासत में लिया गया

6 अक्टूबर 2010- पुलिस ने केस का खुलासा कर मुन्ना को गिरफ्तार कर जेल भेजा

15 अक्टूबर 2010- स्कूल प्रबंधक के छोटे बेटे पीयूष को हिरासत में लिया गया

23 अक्टूबर 2010- प्रदेश सरकार ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी

9 नवंबर 2010- 14 लोगों का डीएनए टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लिया गया

24 दिसंबर 2010- सीबीसीआईडी ने चंद्रपाल और मुकेश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की

1 जनवरी 2011- सीबीसीआईडी जांच में मुन्ना निर्दोष निकला, जेल से रिहा किया गया

11 जनवरी 2011- आरोपियों पर एडीजे 10 कोर्ट में चार्ज फ्रेम, चार्ज फ्रेम के खिलाफ हाईकोर्ट गए

19 अप्रैल 2012- स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल को हाईकोर्ट से जमानत मिली

मई 2012- स्कूल प्रबंधक के बेटे मुकेश को जमानत मिली