शाम को पेश होता था आम बजट

1999 से पहले आम बजट शाम 5 बजे से पेश होना शुरू होता था। वित्‍त मंत्री के साथ दिन भर साक्षात्‍कारों का दौर चलता था। अटकलें लगाईं जाती थीं और शाम को थके हारे वित्‍त मंत्री पत्रकारों को भी देर शाम तक बजट भाषण सुनना होता था। बजट के विश्‍लेषण, प्रतिक्रिया और उसी दिन प्रकाशन के लिए काफी मशक्‍कत भी करनी पड़ती थी। उस समय इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया का इतना बोलबाला नहीं था तो जनता के लिए बजट को विस्‍तार से समझने अखबर एक महत्‍वपूर्ण माध्‍यम हुआ करता था और अखबारों के प्रकाशन की अपनी एक निश्चित डेडलाइन होती है। तो बजट कवर करना और उसकी रिपोर्टिंग पत्रकारों के लिए एक अच्‍छी-खासी कसरत हुआ करती थी। पहली बार तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री यशवंत सिन्‍हा ने इस बारे में सोचा और इसे सुबह पेश करने की कवायद शुरू की। उन्‍होंने इसके लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से बात की। पीएम से मंजूरी मिलने के बाद उन्‍होंने लोकसभा और राज्‍यसभा के स्‍पीकर से बात की। दोनों सदन इस बात से सहमत हुए और शून्‍य काल को टाल कर सुबह आम बजट पेश करने की व्‍यवस्‍था दी। अंतत: शनिवार 27 फरवरी, 1999 को वित्‍तमंत्री यशवंत सिन्‍हा ने वित्‍त वर्ष 1999-2000 के लिए पहली बार सुबह 11 बजे आम बजट पेश किया।

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सफेद और मोटा होता था बजट दस्‍तावेज

आइए अब जानते हैं आम बजट के दूसरे बड़े बदलाव के के बारे में। पहले बजट दस्‍तावेज एक मोटी किताब के रूप में हुआ करता था। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हुआ करता था। ये दस्‍तावेज वित्‍तमंत्री के बजट भाषण के दौरान सांसदों और बजट कवर कर रहे पत्रकारों तथा अन्‍य लोगों को दिया जाता था। ऐसा दशकों तक चलता रहा। वित्‍तमंत्री के बजट भाषण के साथ ही यह मोटा और भारी दस्‍तावेज ऐसे ही बांटा जाता रहा। जल्‍दी ही इससे मुक्ति दिला दी गई और बजट में खर्च, बजट में आय, वित्‍तीय ब्‍यौरा और संबंधित अन्‍य दस्‍तावेजों को अलग से लाल, नारंगी और नीले रंगों में मार्क किया जाने लगा। इससे बजट की चीजों को पढ़ना ज्‍यादा आसान हो गया। बजट के जिस हिस्‍से के बारे में आपको जानकारी चाहिए वहां आपकी पहुंच अब पहले से ज्‍यादा आसान हो गई। यही वजह थी कि बजट दस्‍तावेज पहले से अब पहले से पतला भी हो गया।

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रेल बजट कभी अलग कभी साथ

रेल बजट शुरुआत में आम बजट के साथ ही पेश होता रहा है। लेकिन इसे अलग करने को लेकर अकसर चर्चा होती रहती थी। ईस्‍टर्न रेलवे के चेयरमैन सर विलियम एकवर्थ कमेटी की सिफारिशों के बाद रेल बजट को अलग कर दिया गया। सबसे पहले 1924 में रेल बजट को अलग से पेश किया गया। यह सिलसिला एक बार चल निकला तो रेल बजट आम बजट से अलग ही पेश करने की परंपरा ही बन गई। ऐसा 90 साल तक चलता रहा। एक बार फिर चर्चा होने लगी कि रेल बजट को अलग से पेश करने की जरूरत नहीं है। क्‍योंकि रेलवे के भारी भरकम कर्मचारियों का वेतन, पेंशन सहित तमाम खर्चे अब उसके बस की बात नहीं रही। आखिर 2017-18 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने रेल बजट को आम बजट के साथ ही पेश किया। इसके साथ ही रेल बजट आम बजट के साथ मर्ज हो गया। साथ पेश करने का उद्देश्‍य भारतीय रेलवे को और ज्‍यादा व्‍यावसायिक

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