जिंदगी में तेजी से एक बड़ा बदलाव आया
कानपुर। पीके अयंगर का पूरा नाम पद्मनाभन कृष्णगोपाल अयंगर था। रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड इन्वाॅयरमेंट वेबसाइट के मुताबिक पीके अयंगर ने अपने शानदार अकादमिक करियर के बाद इन्होंने 1952 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेनल रिसर्च (टीआईएफआर) ज्वाॅइन कर लिया था। इसके बाद इनकी जिंदगी में तेजी से एक बड़ा बदलाव आया।

पीके अयंगर कनाडा का रुख कर गए
पीके अयंगर को कनाडा में 1956-1958 के दौरान चाक रिवर की प्रयोगशालाओं में नियुक्त किया गया था। पीके अयंगर ने प्रोफेसर ब्रोकहाउस के साथ काम किया था जो उस समय न्यूट्रॉन स्कैटरिंग पर काम कर रहे एकमात्र शोधकर्ता थे। इस दौरान उन्होंने ब्रोकहाउस संग मिलकर न्यूट्रॉन स्कैटरिंग पर लगभग उत्कृष्ट शोध पत्र तैयार किए थे।

परमाणु प्रयोगों में विशेष भूमिका निभाई
केएससी डाॅट केरला डाॅट जीओवी डाॅट इन के मुताबिक पद्मनाभ कृष्णगोपाल अयंगर एसटीईसी के पूर्व अध्यक्ष थे। इसके अलावा अयंगर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के पूर्व प्रमुख और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष के पर भी रहे थे। परमाणु प्रयोगों में एक विशेष भूमिका निभाई थी। इसका उदाहरण भी पेश किया था।

अयंगर ने इसे  बेहद गोपनीय रखा था
भारतीय सेना ने भारत में पहला परमाणु परीक्षण 1974 में  सैन्य बेस राजस्थान पोखरण टेस्ट रेंज में किया था।डॉ. राजा रमन्ना प्रोजेक्ट को लीड कर रहे थे लेकिन परीक्षण के लिए परमाणु हथियार अयंगर ने ही तैयार किया था। जब तक भारतीय सेना ने इस परमाणु का सफलतापूवर्क परीक्षण नहीं कर लिया था तब तक अयंगर ने इसे  बेहद गोपनीय रखा था।

नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया
परमाणु परीक्षण की उपलब्धि के बाद भौतिक विज्ञानी पीके अयंगर का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया था। हर वक्त कुछ नया करने की चाहत रखने वाले डाॅक्टर पीके अयंगर को कई बड़े पुरस्कार भी मिले थे। भौतिकी विज्ञान की दुनिया में जीवन के आखिरी पड़ाव तक नायक बने रहे पीके अयंगर ने 21 दिसम्बर 2011 दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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