तीरंदाजी में विशेषज्ञ
गुरु तेग बहादुर बचपन से ही काफी बहादुर थे। उन्होंने देश में मुगलों के खिलाफ युद्ध में काफी बहादुरी दिखाई। जिसकी वजह से उन्हें तेग बहादुर के नाम से जाना गया। गुरु तेग बहादुर तीरंदाजी में विशेषज्ञ होने के साथ ही तलवार, घुड़सवारी आदि में भी काफी निपुण थे।  
शहीदी पर्व: जब कश्‍मीरी पंड‍ितों के मसीहा बने गुरु तेग बहादुर,14 साल की उम्र में क‍िया था मुगलों से युद्ध
युद्ध में चरम साहस

जिस उम्र में बच्चे कहानी और खेल में व्यस्त रहते थे, उस उम्र यानी कि 14 साल की उम्र में गुरु तेग बहादुर ने मुगलों के खिलाफ युद्ध में चरम साहस दिखाया। इन्होंने कश्मीरी पंडितों और सिखों को उस समय बचाया जब उनका इस्लाम में मजबूरन रूपांतरण किया जा रहा था।

शहीदी पर्व: जब कश्‍मीरी पंड‍ितों के मसीहा बने गुरु तेग बहादुर,14 साल की उम्र में क‍िया था मुगलों से युद्ध

लोगों को जागरुक किया

गुरु तेग बहादुर ने ही पजांब में सिखों के पवित्र स्थानों में से एक आनंदपुर साहिब की स्थापना की थी। इसके अलावा यह वर्तमान में पंजाब का चौथा सबसे बड़ा शहर कहे जाने वाले पटियाला के भी संस्थापक थे। इन्होंने देश के एक बड़े हिस्से में यात्रा कर लोगों को जागरुक किया।

शहीदी पर्व: जब कश्‍मीरी पंड‍ितों के मसीहा बने गुरु तेग बहादुर,14 साल की उम्र में क‍िया था मुगलों से युद्ध

115 स्मारकों को लिखा
इन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में 115 स्मारकों को लिखा है। गुरु तेग बहादुर मुख्य रूप से मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांत की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। इसके लिए इन्होंने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। इन्होंने अपने की परिवार की अपेक्षा समाज को ज्यादा समय दिया।

शहीदी पर्व: जब कश्‍मीरी पंड‍ितों के मसीहा बने गुरु तेग बहादुर,14 साल की उम्र में क‍िया था मुगलों से युद्ध

शहीदी पर्व के रूप में
गुरु तेग बहादुर द्वारा इस्लाम के मिशन हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने में आड़े आने की वजह से मुगल काफी परेशान थे, जिससे औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली में 1675 में उनकी हत्या कर दी गई थी। ऐसे में उनकी हत्या वाले दिन को शहीदी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
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