रॉकेट:
रॉकेट का आविष्कार नहीं होता तो मानव आज अंतरिक्ष में नहीं जा पाता और न ही घातक किस्म की मिसाइलें बना सकता था। इस तकनीकि का अविष्कार भी भारत में हुआ है। इसे टीपू सुल्तान ने अपने शासन में एक ऐसा प्रयोग किया। जो उन्हें इतिहास में मजबूत स्थान देता है। टीपू ने सन् 1792 में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया था जिसके चलते अंग्रेज सेना में घबराहट फैल गई थी।

national technology day: 10 बेजोड़ तकनीक जो भारत ने दुनिया को दी

एरोप्लेन:
एरोप्लेन यानी कि विमान का अविष्कार भी भारत द्वारा किया गया है। भले ही आज आधुनिक विमानों का जनक राईट ब्रोदर्स को ही माना जाता है लेकिन भारत ने हजारों साल पहले ही इनका अविष्कार कर लिया था। महर्षि भरद्वाज द्वारा लिखे एक ग्रन्थ “विमान शाश्त्र” जो कि संस्कृत में है। इसमें गोधा, परोक्ष, पुष्पक जैसे विमानो के साथ ही हवाई युद्ध के जरूरी नियम भी बताए गए है।

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कार्बन पिगमेंट:
कार्बन पिगमेंट यानी कि रंग जिसे स्याही के रूप में भी पहचाना जाता है। आज स्याही का इस्तेमाल सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में हैं। इसका अविष्कार भारत ने ही किया था। ईसा से करीब 4 सौ पहले भारतीयों ने इसको खोज लिया था। यह हड्डियों, तार, पिच जैसे कई दूसरों पदार्थों को जलाने से बनती है। प्राचीन काल में दक्षिण भारत में स्याही और नुकीले पेन से लिखा जाता था। 

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आयरन एवं मरकरी कोरर:
लोहा और पारा कंवर का अविष्कार भी भारत में हुआ है। प्राचीन भारत में लोहे के शानदार उपयोग के बारे में उल्लेख है। 1899 में बंगाली भौतिक विज्ञानी सर जगदीश चंद्र बोस ने रॉयल सोसाइटी, लंदन में"लोहे-पारा-लौह के तार वाला टेलीफोन डिटेक्टर" के विकास की घोषणा की। इसके पेपर भी पेश किए थे। जिससे साफ है कि भारतीय हजार साल पहले से भारतीय इसका उपयोग करते आ रहे थे।

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माइक्रोवेव कम्युनिकेशन:
माइक्रोवेव कम्युनिकेशन यानी कि माइक्रोवेव संचार का तकनीकि अविष्कार भी भारत में हुआ था। जगदीश चंद्र बोस ने माइक्रोवेव ट्रांसमिशन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1895 में कोलकाता में किया था। वह पहले वैज्ञानिक थे जिसने रेडियो तरंगे डिटेक्ट करने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल क्या था और इस पद्धति में कई माइक्रोवेव कंपोनेंट्स की खोज की थी। इसके दो साल बाद मार्कोनी ने लंदन में इस खोज का प्रदर्शन किया था।

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शैम्पू:
शैम्पू का इस्तेमाल आज पूरी दुनिया में आज बड़े स्तर पर हो रहा है। हालांकि शैम्पू चम्पू शब्द का अपभ्रन्श है। संस्कृतक के शब्द चम्पू का मतलब मसाज करना होता है। सिर में तेल लगाकर मालिश की परम्परा बंगाल में 17वीं सदी में शुरू हुई थी। हालांकि प्राचीन काल में यह जड़ी-बूटियों से तैयार होती थी। हालांकि समय के साथ इसमें काफी बदलाव हुआ और आज यह चम्पू से शैम्पू बन गया।

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बटन:

बटन का इस्तेमाल भी लगभग पूरी दुनिया में हो रहा है। इसका पहला सबूत मोहनजोदड़ो की खुदाई के समय मिला था। खुदाई में बटन पाए गए थे सिन्धु नदी के पास आज से 2500 से 3000 साल पहले यह यह सभ्यता अपने अस्तित्व में थी। कई प्रमाण मिल चुके हैं कि शंख से बना सजावटी बटन-सिंधु घाटी सभ्यता में 2000 ईसा पूर्व के द्वारा सजावटी प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते थे।

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प्लास्टिक सर्जरी:

आजकल प्लास्टिक सर्जरी बहुत उपयोग की जाती है। फिल्मी दुनिया में तो इसका बहुत ज्यादा उपयोग होता है। बतादें कि प्लास्टिक सर्जरी भी भारत की देन हैं। ईसा से करीब 2 हजार साल पहले भारत में ही प्लास्टिक सर्जरी की गई थी। भारत में सर्जरी करने का श्रेय भारतीय चिकित्साशास्त्र के रचयिता सुश्रुत को जाता है। सुश्रुत ने जिस तरह के सर्जिकल औजार तैयार किए थे। आज भी उसी डिजाइन के औजार आधुनिक मेडिकल साइंस में भी इस्तेमाल किए जाते हैं।

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कटारैक्ट सर्जरी:
कटारैक्ट सर्जरी यानी कि भारतीय मोतियाबिन्द का ऑपरेशन में भी भारत के तकनीकि अविषकारों में एक है। भारतीय चिकित्साशास्त्र के रचयिता सुश्रुत ने ईसा से 6 सौ साल पहले मोतियाबिन्द की शल्यचिकित्सा को अंजाम दिया था। जिस औजार से इसका ऑपरेशन किया था उसे जबामुखी कहते थे। बाद में इस कला का विस्तार चीन तक हुआ। दस्तावेजों के मुताबिक ग्रीस के चिकित्सक इस विधि को सीखने के लिए भारत तक आए थे।
 
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चरखा:
चरखा जिसे अंग्रेजी में स्िपनिंग व्हील के नाम से भी पुकारते हैं। इसका भी अविष्कार भारत में हुआ था। आज से करीब 5000 साल पहले महाभारत और रामायण में भी पहियों का वर्णन मिलता है। उस दौर में रथों के जो पहिए होते थे वह भी बिल्कल चरखे यानी कि चक्र की तरह गोल-गोल होत थे। इन्हीं रथों पर बड़े-बड़े युद्ध भी लड़े गए।

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