कुंभ में मोक्ष तलाश रहे हैं सैकड़ों विदेशी

योग और मेडिटेशन ने पहुंचा दिया परदेस

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PRAYAGRAJ: जब हमारे देश के युवा विदेशी कल्चर के दीवाने हुए जा रहे हैं, तब बड़ी संख्या में विदेशी कुंभ मेले में मोक्ष की तलाश कर रहे हैं। योग और अध्यात्म की राह में वह ऐसे खोए हैं कि उन्हें अपने कल्चर का ध्यान भी नहीं रहा। रेत पर बसे तंबुओं के शहर में उनका समय ध्यान, स्नान और ज्ञान अर्जन में बीत रहा है। वह कहते हैं कि धरती में अगर स्वर्ग है तो प्रयागराज की पावन धरती पर। दर्जन भर से अधिक देशों से सैकड़ों की संख्या में आए लोग जगद्गुरु साई मां के आश्रम में जीवन की सार्थकता से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं।

कोई डॉक्टर तो कोई बिजनेसमैन
सेक्टर-14 के जगद्गुरु साई मां के कैंप में आए तीन सौ से अधिक विदेशी जीवन के सत्य की खोज में जुटे हैं। इनमें कोई डॉक्टर है तो कोई बिजनेसमैन। किसी ने इंजीनियरिंग की डिग्री ली है तो कुछ मनोविज्ञान में पारंगत हैं। उन्होंने कभी कुंभ की आभा देखी और यहां मेडिटेशन और ईश्वर की साधना में दिन बिता रहे हैं। साथ ही पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और अध्यात्म की सीख दे रहे हैं।

कई देशों से आए हैं श्रद्धालु
एक ही तंबू के नीचे पूरी दुनिया समाई हुई है। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, फ्रांस, कनाडा, इटली, कोलंबिया, बेल्जियम आदि देशों से आए अनुयायी दो माह का कठिन व्रत करने आए हैं। यह सभी दिन निकलने से पहले कड़ाके की ठंड में गंगा स्नान करते हैं और फिर ईश्वर की साधना में लीन हो जाते हैं। बाकी समय इनका माता के प्रवचन सुनने में बीतता है। एक कल्पवासी जितने व्रतों का पालन करता है, उतनी की तन्मयता से यह अपने नियम धर्म का पालन करते हैं।

बस यही है रियल लाइफ
कनाडा के रहने वाले फ्रैंक का यह चौथा कुंभ है। वह 64 वर्ष के हैं और जगदगुरु साई मां से उनका दिल से जुड़ाव है। वह कहते हैं करोड़ों लोग कुंभ की पावन धरती पर आते हैं। अपना सब कुछ त्याग कर मोक्ष की कामना में लीन हैं। यही रियल लाइफ है। बाकी सब मिथ्या है। वह कहते हैं कि लाइफ में पैसा सब कमा लेते हैं लेकिन सुकून और शांति तो बस योग साधना से ही मिलती है।

स्वर्ग सी धरती, यहां देवताओं का वास
अमेरिका के कैलिफोर्निया से आए एलेन कभी महज एक योग टीचर थे। धीरे-धीरे उन्हें इंडियन कल्चर से लगाव हो गया। अपनापन इस हद तक पहुंचा कि वह अपना देश छोड़ तीसरी बार कुंभ में आए हैं। वह कहते हैं कि योग एक्सरसाइज नहीं है। यह ईश्वर से जुड़ने का अहम माध्यम है, यह उन्होंने इंडिया आकर ही सीखा। उनकी मानें तो कुंभ की धरती दुनिया का स्वर्ग है और यहां साक्षात देवताओं का वास है।

खुद को रोक नहीं पाया यह शेफ
कनाडा के ही रहने वाली विक्टर पेशे से शेफ हैं। खाना बनाना उनका पेशा नहीं बल्कि शौक है। सब कुछ होते हुए भी वह शांति की तलाश में कुंभ की धरती पर चली आई हैं। उन्हें लगता है कि जीवन की तलाश यहां आकर पूरी हो चुकी है। जीवन के जिस सत्य की वह खोज कर रही थीं वह प्रयागराज की धरती पर स्वत: स्फूर्त होता है। यह उनका पहला कुंभ है। आगे भी वह आएंगी। प्रयाग की रेती उमड़ता जनसमूह उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है।

साथ रहिए और जीवन में प्यार बांटिए
जीवन की साइकोलॉजी है कि मनुष्य हमेशा कुछ न कुछ खोजता है। सुख में अकेलापन और अकेलेपन में सबका साथ। उसकी यही जिज्ञासा उसे सत्य और अध्यात्म की राह पर ले जाती है। जीवन में मोक्ष का द्वार अगर कहीं है तो कुंभ की पावन धरती पर है। पेशे से साइकोलॉजिस्ट त्यागानंद का तीसरा कुंभ है और अब वह जगदगुरु साई मां के मैनेजर भी हैं। वह कहते हैं कि एक साथ रहिए और आपस में प्यार बांटिए। यही जीवन का सार है। कुंभ इसका सबसे भव्य उदाहरण साबित होता है।

लाली से बन गई ललिता श्रीदास
यूनाइटेड स्टेटस के कोलैराडो सिटी की रहने वाली लाली अब ललिता श्रीदास बन गई हैं। उनका चौथा कुंभ है और वह वैष्णो स्वामी अखाड़ा से जुड़ी हुई हैं। कुंभ में वह साई मां के कैंप में श्रद्धालुओं को साइकोलॉजिकल ट्रामा से बाहर निकालने का काम करती हैं। वह कहती हैं कि निराश और परेशान लोगों को शांति और सुकून की तलाश है। वह जीवन के उतार-चढ़ाव से बाहर निकलकर मोक्ष पाना चाहते हैं। यही कारण है कि करोड़ों लोग संगम किनारे आकर बस गए हैं। साई मां के साथ कई देशों का भ्रमण कर चुकी हैं और बताती हैं कि जिसने जीवन की सच्चाई को जान ली, उसने मोक्ष पा लिया।