400 रुपए के लिए लेडी बस ही बंद कर दी 


Patna: एक तरफ महिलाओं की सिक्योरिटी के लिए पूरा देश आंदोलन कर रहा है। वहीं महिलाओं को सिक्योर ट्रैवल दिलाने के नाम पर बिहार काफी पीछे है। महिलाओं के लिए चलने वाली स्पेशल पिंक बस भी बंद कर दी गई है। वो भी महज चार सौ रुपए के लिए। बस को बंद करने के पीछे दलील काफी अच्छा है. 

दोनों ने झाड़ा अपना पल्ला
इडेन ने कहा कि बीएसआरटीसी सब्सिडी नहीं छोड़ रही थी, तो बीएसआरटीसी के एडमिनिस्ट्रेटर का मानना है कि कमर्शियल यूज में यह बस फेल हो चुकी थी। इसलिए बंद कर दिया गया। महिलाओं की सिक्योरिटी के सवाल पर बीएसआरटीसी और इडेन दोनों अपना पल्ला झाड़ रहा है। ताम-झाम और एक के बाद एक अच्छे बयानों के बीच इस बस सर्विस की शुरुआत की गई थी। उस समय इडेन और डिपार्टमेंट दोनों की ओर से ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर ने कहा था कि उनका मकसद अधिक से अधिक पैसा कमाना नहीं, बल्कि लोगों को सिक्योरिटी और बेहतर सुविधा मुहैया कराना है। लेकिन डेली चार सौ रुपए सब्सिडी के हिसाब से महीने के 12000 रुपए भी गवर्नमेंट और इडेन वाले नहीं उठा पाए। नतीजा महिलाओं की पिंक बसें बंद हो गईं.
साल भर भी नहीं किया इंतजार 
महिलाओं के लिए सात रूटों पर पहली बार 15 मई 2011 को पिंक बस की शुरुआत की गई थी। जो 15 दिसंबर 2011 के बाद से ही बंद कर दी गई। चौंकाने वाली बात है कि पीपीपी मोड पर शुरू हुई इस बस सर्विस को महज 8 महीने में ही घाटा लगना शुरू हो गया। इस घाटे को एडमिनिस्ट्रेटर ने भी प्रॉपर नहीं देखा क्योंकि इनकी शर्त के मुताबिक बस चलेगी तो सब्सिडी देनी ही होगी। घाटा बर्दाश्त नहीं करने के कारण इडेन ने महिलाओं की बसों का कलर चेंज कर जनरल बना दिया.

क्यों नहीं आई लेडी पैसेंजर्स 
* महिला स्पेशल बसों का प्रचार नहीं किया गया.
* बसों की टाइमिंग को कहीं भी लगाया नहीं गया.
* रूटों पर कितनी बार और कब चलेगी इसकी जानकारी नहीं दी गई.
* कॉलेज गेट के स्टॉपेज का यूज नहीं किया.
* महिला बसों के लिए अलग से स्टॉपेज की व्यवस्था नहीं की गई 
* जनरल टाइमिंग में ही बसों को चलाया गया. 
* लेडी के निकलने और मार्केटिंग के प्रॉपर तरीके पर ध्यान नहीं दिया गया.
* मार्केट के आसपास स्टॉपेज नहीं बनाए गए और न ही वहां तक पहुंचाया गया.

जेनरल बस में होती प्रॉब्लम
* बीच रोड पर बस रोक कर चढ़ाया जाता है.
* महिलाओं को बस के आगे वाली सीट पर ही बिठाया जाता है.
* खड़े रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं.
* पुरुषों के साथ ही खड़ा होकर करना होता है सफर.
* चढऩे और उतरने के लिए एक ही गेट होने से आती है परेशानी.
* परेशानी आने पर कंडक्टर नहीं करता मदद.
* बसों पर नंबर नहीं होने से कंप्लेन करने में परेशानी.


सात रूटों पर चलती थीं पिंक बसें
* गांधी मैदान टू खगौल
* गांधी मैदान टू दानापुर
* गांधी मैदान टू दानापुर वाया कुर्जी दीघा
* गांधी मैदान टू गायघाट
* गांधी मैदान टू मीठापुर, एनएमसीएच वाया राजेंद्रनगर
* गांधी मैदान टू कुर्जी, आशियाना, बेली रोड, राजाबाजार
* गांधी मैदान टू कुर्जी, पाटलिपुत्रा, बोरिंग रोड, हड़ताली चौक, बेली रोड, जंक्शन फिर गांधी मैदान

सुबह के टाइम लेडी बस में सफर करती थी। उसके बाद पैसेंजर नहीं मिल पाता था। इससे बसें लगातार घाटे में चल रही थीं। इसलिए बंद कर दी गईं। अगर डिपार्टमेंट सब्सिडी दे तो फिर से बसें दौड़ सकती हैं। मैं कुछ अधिक इसमें नहीं कर सकता हूं.
उदय सिंह कुमावत 
एडमिनिस्ट्रेटर, बीएसआरटीसी. 

अगर इडेन बस सर्विस को सब्सिडी मिल जाती है तो फिर से महिलाओं के लिए स्पेशल बस चलाई जा सकती है। लेकिन सिर्फ प्राइवेट बस ऑपरेटर के सहारे छोड़ दिया जाए तो हमलोगों की हालत खराब हो जाएगी. 
कुणाल, ऑपरेशन इन चार्ज, इडेन बस सर्विस.

दोनों ने झाड़ा अपना पल्ला
इडेन ने कहा कि बीएसआरटीसी सब्सिडी नहीं छोड़ रही थी, तो बीएसआरटीसी के एडमिनिस्ट्रेटर का मानना है कि कमर्शियल यूज में यह बस फेल हो चुकी थी। इसलिए बंद कर दिया गया। महिलाओं की सिक्योरिटी के सवाल पर बीएसआरटीसी और इडेन दोनों अपना पल्ला झाड़ रहा है। ताम-झाम और एक के बाद एक अच्छे बयानों के बीच इस बस सर्विस की शुरुआत की गई थी। उस समय इडेन और डिपार्टमेंट दोनों की ओर से ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर ने कहा था कि उनका मकसद अधिक से अधिक पैसा कमाना नहीं, बल्कि लोगों को सिक्योरिटी और बेहतर सुविधा मुहैया कराना है। लेकिन डेली चार सौ रुपए सब्सिडी के हिसाब से महीने के 12000 रुपए भी गवर्नमेंट और इडेन वाले नहीं उठा पाए। नतीजा महिलाओं की पिंक बसें बंद हो गईं।

साल भर भी नहीं किया इंतजार 
महिलाओं के लिए सात रूटों पर पहली बार 15 मई 2011 को पिंक बस की शुरुआत की गई थी। जो 15 दिसंबर 2011 के बाद से ही बंद कर दी गई। चौंकाने वाली बात है कि पीपीपी मोड पर शुरू हुई इस बस सर्विस को महज 8 महीने में ही घाटा लगना शुरू हो गया। इस घाटे को एडमिनिस्ट्रेटर ने भी प्रॉपर नहीं देखा क्योंकि इनकी शर्त के मुताबिक बस चलेगी तो सब्सिडी देनी ही होगी। घाटा बर्दाश्त नहीं करने के कारण इडेन ने महिलाओं की बसों का कलर चेंज कर जनरल बना दिया।

क्यों नहीं आई लेडी पैसेंजर्स 
* महिला स्पेशल बसों का प्रचार नहीं किया गया।
* बसों की टाइमिंग को कहीं भी लगाया नहीं गया।
* रूटों पर कितनी बार और कब चलेगी इसकी जानकारी नहीं दी गई।
* कॉलेज गेट के स्टॉपेज का यूज नहीं किया।
* महिला बसों के लिए अलग से स्टॉपेज की व्यवस्था नहीं की गई 
* जनरल टाइमिंग में ही बसों को चलाया गया. 
* लेडी के निकलने और मार्केटिंग के प्रॉपर तरीके पर ध्यान नहीं दिया गया।
* मार्केट के आसपास स्टॉपेज नहीं बनाए गए और न ही वहां तक पहुंचाया गया।

जेनरल बस में होती प्रॉब्लम
* बीच रोड पर बस रोक कर चढ़ाया जाता है।
* महिलाओं को बस के आगे वाली सीट पर ही बिठाया जाता है।
* खड़े रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं।
* पुरुषों के साथ ही खड़ा होकर करना होता है सफर।
* चढऩे और उतरने के लिए एक ही गेट होने से आती है परेशानी।
* परेशानी आने पर कंडक्टर नहीं करता मदद।
* बसों पर नंबर नहीं होने से कंप्लेन करने में परेशानी।

सात रूटों पर चलती थीं पिंक बसें
* गांधी मैदान टू खगौल
* गांधी मैदान टू दानापुर
* गांधी मैदान टू दानापुर वाया कुर्जी दीघा
* गांधी मैदान टू गायघाट
* गांधी मैदान टू मीठापुर, एनएमसीएच वाया राजेंद्रनगर
* गांधी मैदान टू कुर्जी, आशियाना, बेली रोड, राजाबाजार
* गांधी मैदान टू कुर्जी, पाटलिपुत्रा, बोरिंग रोड, हड़ताली चौक, बेली रोड, जंक्शन फिर गांधी मैदान

सुबह के टाइम लेडी बस में सफर करती थी। उसके बाद पैसेंजर नहीं मिल पाता था। इससे बसें लगातार घाटे में चल रही थीं। इसलिए बंद कर दी गईं। अगर डिपार्टमेंट सब्सिडी दे तो फिर से बसें दौड़ सकती हैं। मैं कुछ अधिक इसमें नहीं कर सकता हूं।
उदय सिंह कुमावत 
एडमिनिस्ट्रेटर, बीएसआरटीसी. 

अगर इडेन बस सर्विस को सब्सिडी मिल जाती है तो फिर से महिलाओं के लिए स्पेशल बस चलाई जा सकती है। लेकिन सिर्फ प्राइवेट बस ऑपरेटर के सहारे छोड़ दिया जाए तो हमलोगों की हालत खराब हो जाएगी. 
कुणाल, ऑपरेशन इन चार्ज, इडेन बस सर्विस.