खुद ताला खोलने की सुबह से ही सताने लगती है टेंशन
देहरादून।
लैच-की-चिल्ड्रंस को एकाकीपन डरा रहा है। ये ऐसे बच्चे हैं जिनके माता और पिता दोनों जॉब करते हैं। ऐसे में ये बच्चे घर आकर ताला खोलने से लेकर खाना गर्म करने तक सभी काम खुद ही करते हैं। मां को फोन पर बता देते हैं कि वे घर पहुंच गए हैं। सब काम अकेले करने वाले ये बच्चे आगे चलकर अकेलेपन के ही शिकार हो रहे हैं। ऐसे में पैरेंट्स साइकोलॉजिस्ट की राय ले रहे हैं।
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वेस्टर्न से आई टर्म
दरअसल ऐसे बच्चों को लैच-की-चिल्ड्रन कहने की यह टर्म वेस्ट से आई। वेस्टर्न कंट्रीज में यह शब्द सबसे पहले बोला गया। लैच-की-चिल्ड्रन न सिर्फ अकेले खाना खाते हैं, बल्कि टीवी देखते-देखते होमवर्क भी अकेले ही करते हैं। शाम को इनके पैरेंट्स घर पहुंचते हैं।
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सौ बच्चों पर किया सर्वे
साइकोलॉजिस्ट डा। श्रवि अमर अत्री की ओर से ऐसे सौ बच्चों पर सर्वे किया गया तो पता चला कि ऐसे बच्चे 25 परसेंट इमोशनली वीक थे। जबकि ये बच्चे काफी इंडीपेंडेंट भी हो सकते थे। इमोशनली वीक होने के कारण वह छोटी-छोटी बातों पर रोने लगते हैं। हर समय खुद को अकेला महसूस करते हैं।
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40 मिनट सबसे कीमती
सर्वे के दौरान कुछ बच्चों ने बताया मां का घर पर न होना खलता है। ऐसे में कई बार जरूरी बातें रह जाती हैं। स्कूल से आने के बाद के 40 मिनट बच्चे के सबसे कीमती होते हैं। इसमें बच्चा स्कूल की हर बात मां को बता सकता है। टेस्ट के नंबर, क्लासमेट्स से झगड़ा आदि। लेकिन शाम तक उसे सोचने का बहुत समय मिल जाता है। ऐसे में वह कहानियां भी गढ़ सकता है। छुपा भी सकता है।
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मां को करते हैं मिस
स्टडी में यह बात सामने आई कि ऐसे अधिकांश बच्चे मां को मिस करते हैं। दिन में अचानक पिता घर आ जाएं तो उतनी खुशी नहीं होती, जितनी कि मां के घर आने पर होती है। कई एक्स्ट्रीम केसेस में ऐसे बच्चे पेट दर्द की शिकायत या बार-बार बीमारी का बहाना बनाकर अपनी मां को अपने पास रखने की कोशिश करते हैं।
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इन बातों का रखें ध्यान
-मां के नौकरीपेशा होने पर दादी-नानी या रिश्तेदार को बच्चों के साथ रखने की कोशिश करें।
-यदि संभव न हो तो भरोसेमंद आया को ही पुलिस के वेरीफिकेशन के बाद रखें।
-बच्चे का स्कूल, आपका ऑफिस और घर पास-पास हो, ताकि आप बीच में घर जा सकें।
-घर आने पर बच्चे से खूब बात करें, स्कूल की बात पूछें।
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केस वन
शुभ्रा दो बजे स्कूल से घर पहुंचती है। बस से। उसकी चाबी उसके पास होती है। वह माइक्रोवव में खाना गर्म करती है। खाती है टीवी देखती है। घर के लैंडलाइन से मां से बात करती है। अचानक शुभ्रा का चुप हो जाना मां को बेहद खला तो साइकोलॉजिस्ट से बात की। तब पता चला कि शुभ्रा एकाकीपन की शिकार हो गई है।
केस 2
जतिन सुबह पैरेंट्स को बाय करके घर से स्कूल निकलता है तो उसे अंदर से ये टेंशन भी हो जाती है कि दिन में घर खाली मिलेगा। जतिन ने कई बार मां को बोला कि जब वह घर आए तो उसको घर खुला मिले। मां घर पर मिले। बावजूद इसके मां ऑफिस होती हैं। ऐसे में जतिन को तनाव होने लगा। साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि वह एकाकीपन की ओर जा रहा है।
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बच्चों को पैरेंट्स बेहद अटेंशन दें। उनसे खूब बाते करें, ताकि बच्चों में शेयरिंग की आदत डेवलप हो सके। मां की भूमिका इस ओर बेहद अहम हो जाती है।
डा। श्रवि अमर अत्री, साइकोलॉजिस्ट