पटना (उज्ज्वल कुमार) | माउंटेनमैन दशरथ मांझी ने पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाया था तो लौंगी भुइयां ने पहाड़ के पानी को गांव तक लाने के लिए जंगल को चीर कर अकेले अपने बूते 3 किमी लंबा कैनाल बना दिया. आज भी इनकी मुहिम खत्म नहीं हुई है. आज उनकी उम्र करीब 65 साल हो चुकी है. पिछले तीन दशक से वे नहर की खुदाई में लगे हैं. आज बंगेठा के जंगल से नहर खोद कर बारिश का पानी अपने गांव के तालाब तक पहुंचा चुके हैं. इसी जंगल में बारिश का पानी रोकने के लिए लौंगी अकेले आठ बांध भी बना चुके हैं और आठ बांध और बनाने का लक्ष्य रखा है. पढ़ें दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ये स्पेशल रिपोर्ट।
फैमिली, गांव के लोग कहते थे पागल
जब लौंगी भुइयां ने 1990-91 में नहर की खुदाई का काम शुरू किया था, तब उम्र करीब 30 साल होगी. उस समय गांव के लोगों ने पागल करार दे दिया. परिवार को लगा कि भूत-प्रेत का साया है. उन्हें ओझा-गुनी के पास ले जाया गया. लेकिन उनकी झाड़-फूंक का भी फर्क नहीं पड़ा. रोज सुबह आठ बजे तक निकल जाना और शाम में चार-पांच बजे तक लौटना डेली रुटीन बन गया था. खीझ कर घर के लोगों ने खाना-पानी तक बंद कर दिया. ऐसे में वे हफ्ते में कई-कई दिनों तक गांव वालों के यहां खाना खाते थे. इसके बाद वे नहर की खुदाई में जुट जाते.
रेनवाटर हार्वेस्टिंग की पेश की मिसाल
कोठिलवा गांव, बिहार के गया की बांके बाजार तहसील में स्थित है. यह गया से करीब 80 किमी दूर है. गांव की टोटल पॉपुलेशन 733 है और कुल 110 घर हैं. लौंगी भुइयां ने भले कभी स्कूल नहीं देखा. कोई स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई नहीं की. लेकिन ज्योग्राफिकल कंडीशन की समझ है. तभी तो जंगलों में पानी को रोकने के लिए आठ डैम बना डाले. आठ और बनाने की प्लानिंग है. आज इनके बनाए नहर से गांव के दो तालाबों में साल भर बारिश का पानी जमा रहता है. मॉनसून के दिनों में पास के ही छोटे से बांध में पानी जमा हो गया था. अब गांव के लोगों ने इसका नाम लौंगी बांध रख दिया है. इसी बांध से निकलती हुई नहर लौंगी ने खोदी है.
पलायन रोकने की हसरत भी पूरी
लौंगी भुइयां से जब दैनिक जागरण आईनेक्स्ट, पटना की टीम मिलने पहुंची, तब वे अपने मिशन पर निकलने की ही तैयारी में थे. साथ चलते-चलते लौंगी भुइयां अपनी लोकल लैंग्वेज मगही में कहते हैं- च्च्का कहियो, सब के सब कमाये लाग बाहर चल जा हई. हमरा लगलो कि हम काहे न गांव तक पानी ला दिअई कि सब अपन-अपन खेत में काम करके हींअई पेट पाले और बाहर न जाये वो आगे कहते हैं- अब गांव के तालाब में सालों भर पानी रहने से पशुपालन को बल मिला है. सालों भर खेती के लिए पानी मिलने लगी है. लेकिन अभी और काम किया जाना बाकी है.
पहाडि़यों के बीच घिरा है गांव
लौंगी भुइयां जिस गांव में रहते हैं, वहां शाम के बाद जाने की कोई सोच भी नहीं सकता. पहाड़ की शांति अंधेरे में खौफ बढ़ा देती है. कोई पब्िलक ट्रांंसपोर्ट नहीं है. ईंट भठ्ठा तक आने-जाने वाले ट्रैक्टर लोगों के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का काम करते हैं. 2005 से पहले यह पूरा इलाका नक्सली और माओवादियों का गढ़ था. माओवादी दिन में जन अदालत लगाकर सुनवाई करते थे. इसीलिए यह गांव पक्की सड़कों से नहीं जुड़ सका है. इसका साइड इफेक्ट यह भी है कि दुर्गम पहाडिय़ों के बीच बसे इन गांवों के लोगों के पास आजीविका का कोई ठोस साधन नहीं है. इस कारण इस इलाके में अफीम की खेती करते है.
सरकारी पेंच में फंसा काम
लौंगी भुइयां ने जो नहर खोदी है, सरकार उसकी उड़ाही तक नहीं करवा पा रही है. बांकेबाजाार के बीडीओ अतुल प्रसाद बताते हैं कि मामला वन विभाग और जल संसाधन विभाग के बीच फंसा है. विभाग के जेई ने उन्हें बताया कि सरकार की ओर से नहर की सफाई करने के लिए कहा गया था. लेकिन लौंगी भुइयां ने जो नहर खोदी है, वह वन विभाग की जमीन है. वन विभाग की जमीन पर काम करने का कोई गाइडलाइन उन्हें नहीं मिला है. ऐसे में बिना एनओसी मिले वन विभाग की जमीन पर काम नहीं कर सकते.
आनंद महिंद्रा भी कर चुके हैं तारीफ
लौंगी भुइयां पहली बार सितंबर 2020 में मीडिया की सुर्खियों में आए. देश के जाने-माने इंडस्ट्रियलिस्ट और महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा की नजर जब मीडिया की इन सुर्खियों पर पड़ी तो उन्होंने भी इनके जज्बे को सलाम किया. जब उन्हें पता चला कि लौंगी भुइयां एक ट्रैक्टर चाहते हैं ताकि इनकी मुहिम को और बल मिल सके, तब उन्होंने उदारता दिखायी. ट्वीट करके कंपनी के लोगों को इन्हें ट्रैक्टर मुहैया करवाया. फिर बिहार के एक्स सीएम जीतन राम मांझी भी उनके घर पहुंचे और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया.
लौंगी की वाइफ रामरती देवी बताती हैं कि सच में हमें लगता था कि मेरे पति पर भूत का साया है. हम इन्हें ओझा के पास भी लेकर गए. लेकिन इसके बाद नहर की खुदाई का भूत इन पर से नहीं उतर सका. हमें लगता था कि वो पागल हैं. कई बार तो हमने उनको खाना भी नहीं दिया. बताइये, घर में खाने का संकट है और ये अकेले ही बंगेठा के जंगल में नहर खोदते रहे. इससे हम लोगों का पेट थोड़े भर जाता. चार-चार बेटों का लालन-पालन मुश्किल हो जाता था. इसकी इन्हें बिल्कुल भी चिंता नहीं होती थी. अब लगता है कि सच में, इन्होंने परिवार ही नहीं, पूरे गांव के लिए बड़ा काम किया है. परिवार को अमर बना दिया.
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