दरअसल बागपत ज़िले के खेकड़ा गांव की दो युवतियों ने हाल ही में एक-दूसरे से शादी करने के बाद गुड़गांव ज़िला अदालत से सुरक्षा की गुहार लगाई थी।

सवीता और वीना नाम की इन युवतियों ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्हें उनके परिवार वालों से ख़तरा है क्योंकि वे उनकी शादी के ख़िलाफ़ थे, जिसकी वजह से उन्हें अपना गांव छोड़ कर भागना पड़ा। गुरुवार को गुड़गांव की एक अदालत ने स्थानीय पुलिस को आदेश दिया कि वो सवीता और वीना को सुरक्षा प्रदान करे।

आदेश देते हुए गुड़गांव ज़िला अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायधीश विमल कुमार ने 2010 में दिए गए पंजाब और हरियाणा अदालत के उस फ़ैसले का उदाहरण दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि ज़िला और सत्र न्यायधीशों को ये सुनिश्चित करना होगा कि घर से भागे हुए दम्पति को हर तरह का सहयोग दिया जाए। ये फ़ैसला खाप पंचायत के फ़रमानों को निरस्त करने के मक़सद से सुनाया गया था।

नई बहस

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध बनाए जाने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान था। लेकिन 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस क़ानून को बदलने का आदेश दिया था और कहा था कि दो मर्द या औरत अगर अपनी सहमति से बंद कमरे के भीतर यौन संबंध बनाते हैं तो ये अपराध नहीं है।

हालांकि जहां तक समलैंगिकों के बीच शादी की बात है, तो भारतीय क़ानून न तो इसे वैध मानता है, न ही अवैध। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या गुड़गांव अदालत के आदेश का मतलब ये है कि सवीता और वीना की शादी को क़ानूनी वैधता मिल गई है?

हालांकि सवीता और वीना की वकील वंदना अग्रवाल का कहना है कि कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा कोर्ट के फ़ैसले का उदाहरण ज़रूर दिया है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उनकी शादी को क़ानूनी वैधता दी जा चुकी है।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “अदालत ने उन्हें एक नागरिक होने के नाते सुरक्षा प्रदान करने का फ़ैसला किया है क्योंकि उन्हें लगता है कि सवीता और वीना की जान को ख़तरा है। हालांकि उनकी शादी के बारे में याचिका में ज़िक्र किया गया है, लेकिन कोर्ट ने उस मुद्दे पर कोई ख़ास टिप्पणी नहीं की है.”

जहां वंदना अग्रवाल ने इस मुद्दे पर बड़ा ही सोचा समझा जवाब दिया, तो दूसरी ओर वरिष्ठ वकील रंजन लखनपाल का कहना है, “हालांकि भारतीय क़ानून में समलैंगिक शादी पर चुप्पी साधी हुई है, लेकिन अगर ज़िला अदालत ने 2010 में हुए उस फ़ैसले को उदाहरण के तौर पर रखते हुए उन्हें पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया है, तो इसका मतलब ये ही हुआ कि अदालत ने उन्हें एक दम्पति के रुप में मान्यता दी है। अगर दूसरे ऐनक से देखा भी जाए, तो चाहे कोई क़ैदी हो या समलैंगिक, धारा 21 के तहत सभी को जीने का अधिकार है। तो ऐसे में कोर्ट को उनके हक़ में फ़ैसला सुनाना ही था.”

राजन लखनपाल का कहना था कि समलैंगिक अधिकारों में शादी का अधिकार जुड़ने की ये केवल एक शुरुआत है और इसका उदाहरण दे कर भविष्य में कई समलैंगिक प्रेमी शादी रचाएंगें।

सवीता और वीना 15 साल से एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे को पसंद करने लगे। गत 22 जुलाई को दोनों ने एक सार्वजनिक नोटरी के सामने एफिडेविट पर हस्ताक्षर कर परिणय सूत्र में बंध गए। अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि उनकी शादी वैध है और वो एक दूसरे के साथ रहना चाहते हैं।

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