रेस जीतने के लिए जूते नहीं जुनून चाहिए
रेस शुरू होने से पहले मोहम्मद अनस ने एकबारगी अपने जूतों पर नजर डाली थी। उसे लगा रेस पूरी होने से पहले जूते फटकर अलग हो जाएंगे। सिर से पिता का साया पहले ही उठ चुका था। यह मौका वह गंवाना नहीं चाहता था। उसने दिल मजबूत किया मानो अंदर के सारे हौसले को समेट रहा हो। अपने पिता को याद किया और दौड़ लगानी शुरू की तेज और तेज। नेशनल गेम्स में अच्छा प्रदर्शन उसकी तकदीर बदल सकता था। आखिर हुआ भी यही। उस पर भारतीय नौसेना की नजर पड़ी।

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दोहरी खुशी जीत ही नहीं कमाई भी  
अनस का परिवार यह जानकर खुशी से झूम उठा कि पहली बार जिंदगी में उसे सैलरी मिलेगी। नौसेना ने इस प्रतिभावान खिलाड़ी को निश्चित आमदनी के अलावा अपना हुनर निखारने का मौका दिया। इंटर स्टेट सर्विस चैंपियनशिप में सिल्वर जीतकर उसने भरोसे को सही साबित किया। इंडियन ग्रांड प्रिक्स व फेडरेशन कप में उसने 400 मीटर की दौड़ 46 सेकेंड में पूरी की। कोच को भरोसा हो गया था कि यह लड़का अभी और तेज दौड़ सकता है।

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राज्य से अंतरराष्ट्रीय खेल मंच तक
मोहम्मद अनस ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह ओलंपिक में दौड़ेगा। पोलैंड में चैंपियनशिप में अनस ने दौड़ 45.40 सेकेंड में पूरी की। अनस मिल्खा सिंह व केएम बानू के बाद 400 मीटर दौड़ के लिए क्वालिफाई करने वाला तीसरा भारतीय एथलीट बन गया था। इतना ही उसने नया नेशनल रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया था।

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पिता की याद और कामयाबी का सफर चल पड़ा है
अनस को अपना बचपन याद आ रहा था। जब सिर से पिता का साया उठा तो वह 10वीं में पढ़ रहा था। स्कूल की दौड़ में अव्वल आने पर अब्बू हमेशा खुश होते। उनका सपना था कि वह एथलीट बनेगा। उनके जाने के बाद भी दौड़ जारी रही। हालांकि जिंदगी की दौड़ उस पर भारी पड़ रही थी। अब अनस केरल के अपने गांव में रहने वालों के लिए रोल मॉडल है। लोग अपने बच्चों को अनस जैसा बनता देखना चाहते हैं। रियो ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में अनस अपने प्रदर्शन से सेमीफाइनल में जगह नहीं बना सके। बहरहाल 4x100 मीटर रिले रेस में उम्मीदें बाकी हैं।

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