संथारा मामले में जैन क्यों सड़कों पर? जानें 'संथारा' की 10 बातें
* जैन धर्म के लोगों का मानना है कि संथारा को आत्महत्या की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। आत्महत्या हीनभावना से ग्रसित होकर की जाती है जबकि संथाराधर्म से प्रेरित होकर अपनाया जाता है।
* संथारा प्रथा जैन समाज की हजारों साल पुरानी प्रथा है। इसके तहत जैन समाज में शरीर त्यागने का कार्य किया जाता है।
* जैन समाज इस विधि से शरीर त्यागने को काफी पवित्र मानता है। जीवन के अंतिम समय में तप-विशेष की आराधना करना माना जाता है।
* संथारा इंसान तब करता है जब उसे लगता है कि अब वह अपनी मौत के करीब पहुंच रहा है। उसे लगता है कि वह अपना जीवन लगभग जी चुका है और अब उसे गॉड के करीब जाना है।
* संथारा के तहत शरीर त्यागने में 1 दिन से लेकर कई महीने लग जाते हैं। सबसे खास बात तो यह है कि संथारा व्यक्ति अपनी इच्छा से धारण करता है।
* संथारा धारण करना काफी साहसिक काम माना जाता है। इसमें मरने पर रोना धोना नहीं होता है।
* संथारा धैर्यपूर्वक अंतिम समय तक जीवन को ससम्मान जीने की कला भी कहा जाता है। संथारा लेने के बाद अन्न जल का एक बूंद शरीर में नहीं जाता है।
* जैन समाज में संथारा से स्वर्ग और मोक्ष का द्वार खुलना माना जाता है। जिससे यहां पर संथारा को एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
* संथारा हमेशा खुशी से लिया जाता है। इसे लेने के बाद इंसान अपना जीवन धन्य समझता है।
* जैन समाज मानता है कि संथारा से राष्ट्र के विकास में स्वस्थ वातावरण मिल सकेगा। इतना ही नहीं संथारा को जैन धर्म में एक वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधि के रूप में देखा जाता है।