बुजुर्ग नहीं, 119 साल के 'जवान' कहें

- सरकार की अनदेखी से आहत हैं धर्मपाल, कोई प्रोत्साहन नहीं

- मैराथन की भीड़ में गुम रहा बुजुर्ग धावक, सम्मान की तलाश

Meerut। पाइन डिवीजन की ओर आयोजित मिनी मैराथन की चमक-धमक से जहां मेजर कुलवंत सिंह स्टेडियम गुलजार था, वहीं 100 से अधिक रेस में जवानों को पछाड़ चुका 119 साल का एक धावक अलग-थलग अपने मैले से थैले में सैकड़ों सर्टिफिकेट लिए गुमनामी से बैठा था। उम्र के इस पड़ाव में यह बुजुर्ग धावक मैराथन में कोई पदक नहीं बल्कि सम्मान की तलाश में पहुंचा था।

उम्र का दूसरा शतक

मैराथन में हजारों धावकों के बीच एक ऐसी शख्शियत भी दौड़ी। जिसकी कद काठी, चुस्ती-स्फूर्ति और फिटनेस को देखकर उसकी असल उम्र आंकना मुश्किल पड जाए। यहां हम बात कर रहे हैं 119 वर्षीय धावक धर्मपाल गुर्जर की।

100 से अधिक रेस

अब तक 100 से भी अधिक रेस में हिस्सा ले चुके धर्मपाल देश ही नहीं बल्कि विदेश में भारत का परचम लहरा चुके हैं। मवाना के गांव गूढ़ा में धर्मपाल गूर्जर पुत्र दलजीत का जन्म सन् 6 अक्टूबर 1897 में हुआ। शुरुआत से धर्मपाल को दौड़ने का शौक था। गांव के कच्चे -पक्के रास्ते पर दौड़ते हुए इस धावक ने शहर कस्बों के रनिंग कॉंप्टीशन से शुरुआत कर देश विदेश में भारत को सम्मान दिलाया।

सम्मान न मिलने का मलाल

मैराथन में पहुंचे धर्मपाल ने बताया कि यहां आने का उनका मकसद कुछ और नहीं, बल्कि सम्मान की तलाश है। उन्होंने बताया कि दौड़ते-दौड़ते जिंदगी का दूसरा शतक भी शुरू हो गया। लेकिन वाजिब सम्मान न मिला। बुजुर्ग धावक ने बताया कि समूचे देश से लेकर मलेशिया तक में देश का नाम कमाया, लेकिन देश ने कभी नहीं समझा। आर्थिक मदद और पेंशन तो दूर कभी किसी मंच पर उनकों स्थान तक नहीं दिया गया।

Posted By: Inextlive