13 सालों का एन श्रीनिवासन का सफ़रनामा
वर्ष 2001 में उन्होंने एक क्रिकेट प्रशासक के बतौर अपने सफ़र की शुरुआत की.उन्होंने तमिलनाडु के वैल्लोर ज़िला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीते.इसके बाद तत्कालीन तमिलनाडु क्रिकेट संघ(टीएनसीए) के अध्यक्ष एसी मुथैया ने उन्हें राज्य क्रिकेट संघ का उपाध्यक्ष बना दिया.दरअसल श्रीनिवासन को क्रिकेट में मुथैया ही लेकर आए थे. 90 के दशक में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में उनकी तूती बोलती थी. श्रीनिवासन और वह दोनों मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे. दोनों के बीच ख़ासी दोस्ती बताई जाती है.वर्ष 2002 में टीएनसीए में मुथैया ने अध्यक्ष के बतौर अधिकतम आठ का कार्यकाल पूरा होने पर श्रीनिवासन ने यह कार्यभार संभाला.बेशक तब टीएनसीए के चप्पे-चप्पे पर मुथैया की पकड़ थी और श्रीनिवासन की पहचान मुथैया के आदमी के तौर पर थी.सधे तरीक़े से ज़मीन तैयार की
श्रीनिवासन ने धीरे-धीरे तमिलनाडु क्रिकेट संघ (टीएनसीए) की इकाइयों पर अपना प्रभाव बना लिया.धीरे-धीरे टीएनसीए पर मुथैया की पकड़ ढीली पड़ चुकी थी.
आईपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी को शशांक मनोहर के ही कार्यकाल में जब हटाया गया तो उसके लिए असली भूमिका श्रीनिवासन ने ही बांधी थी.वर्ष 2011 में अध्यक्षवर्ष 2011 में श्रीनिवासन बीसीसीआई के अध्यक्ष बने. लेकिन माना गया कि अब तक शरद पवार खेमे से उनकी अनबन हो चुकी थी.बतौर बीसीसीआई अध्यक्ष उनका कार्यकाल मिलाजुला रहा. जहां एक तरफ़ उन्होंने बोर्ड की वित्तीय स्थिति को और मजबूत किया, वहीं दूसरी तरफ़ क्रिकेटरों की सुविधाएं बढाने के लिए उल्लेखनीय काम किया.