सीट से ज्यादा बच्चे ढो रहे वैन-ऑटो संचालक

ठेकेदारी पर वाहन, नहीं कर रहे मानक पूरे

Meerut . जिन वाहनों में आप अपने जिगर के टुकड़े को स्कूल भेजते हैं, क्या कभी उनकी स्थिति पर आपने गौर किया है. अगर नहीं तो यह खबर आपके काम की है. जी हां, जिन वाहनों से आपके बच्चे स्कूल आते-जाते हैं वे मानकों पर खरा नहीं हैं. वाहनों में न केवल बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरा जा रहा है बल्कि इन वाहनों की खस्ता हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनमें आपके बच्चे बिल्कुल भी सेफ नहीं हैं. दैनिक जागरण आईनेक्सट ने बुधवार को शहर के कई स्कूली वाहनों का जायजा लिया. इस दौरान हकीकत चौकाने वाली निकली.

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सीट से ज्यादा बच्चे

स्कूली वाहनों में जरूरत से ज्यादा बच्चे ढोए जा रहे हैं. सबसे ज्यादा खराब स्थिति ऑटो, रिक्शा और वैन की मिली हैं. 14 सीटर वैन में संचालक 20 से 22 बच्चों को ठूंस-ठूंस कर बैठाते हैं. इस दौरान चार सीट पर छह बच्चे एक-दूसरे की गोद में एडजस्ट होते हैं. यही नहीं, वैन संचालक हर महीने एक-एक बच्चे का किराया एक हजार से 15 सौ रूपये वसूलते हैं. यही स्थिति ऑटो की भी हैं. 5-7 सीटों वाले ऑटो में भी संचालक 15 से 20 बच्चे ढो रहे हैं. इनकी स्थिति और भी खतरनाक है. जगह न होने की स्थिति में बच्चों को गेट पर लटकना भी पड़ रहा हैं. मोटी कमाई करने के लालच में वाहन चालक बच्चों की जिंदगी से पूरी तरह खिलवाड़ कर रहे हैं.

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नहीं हैं सेफ्टी उपकरण

स्कूली वाहन न तो मानक पूरे कर रहे हैं न ही इनमें सुरक्षा के इंतजाम हैं. बसों में न तो फायर एक्सटिंग्यूशर हैं न ही फ‌र्स्ट एड बॉक्स की व्यवस्था है. इसके अलावा खस्ताहाल ऑटो में शीशे तक टूटे हैं. इसके अलावा ड्राइवरों की यूनिफार्म भी गायब मिली.

इस आधार पर होती है चेकिंग

- स्कूली वाहन का निर्धारित रंग पीला होना चाहिए. नीले रंग की पट्टी पर स्कूल का नाम हो व वाहन का आरटीओ में कॉमर्शियल में रजिस्ट्रेशन होना चाहिए.

- फ‌र्स्ट एड बॉक्स और फायर एक्सटिंग्यूशर होना चाहिए.

- वाहन पर स्कूल का नाम, प्राइवेट हैं तो ऑन स्कूल ड्यूटी, फोन नंबर लिखा होना चाहिए.

- ड्राइवर का नाम, आई कार्ड नंबर व फोन नंबर जरूर लिखा होना चाहिए.

- सीट के हिसाब से ही बच्चे होने चाहिए.

- स्कूली बस हैं तो स्कूल परमिट होना चाहिए.

प्रतिभा , अभिभावक

यह भी हैं नियम

- सीट लिमिट से अधिक बच्चे स्कूली वाहन में नहीं होने चाहिए.

- स्कूल वाहन में हॉरिजेंटल ग्रिल (जालियां) लगे होनी चाहिए

- बसों के दरवाजे को अंदर से बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए .

- बस में सीट के नीचे बैग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए.

- बसों में टीचर व महिला अटेंडर जरुर होने चाहिए,

यह है ड्राइवर के नियम

- प्रत्येक बस चालक को कम से कम 5 साल का भारी वाहन चलाने का अनुभव हो.

- किसी भी ड्राइवर को रखने से पहले उसका वैरिफिकेशन जरूरी है.

- ड्राइवर या कंडक्टर का कोई रिकार्ड में कोई चालान नहीं होना चाहिए और न ही उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज हो.

- ड्राइवर या कंडक्टर के लिए यूनिफार्म निर्धारित हैं. स्कूली बसों में जीपीएस, फोन की सुविधा भी होनी चाहिए.

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इनका है कहना

स्कूलों के साथ कांट्रेक्ट है. सभी मानकों को पूरा किया जाता है. ड्राइवर्स का वेरिफिकेशन किया जाता है. किसी भी बस को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं मिली है.

इजहार, वाहन ठेकेदार

किसी बस में कभी कोई शिकायत नहीं मिली हैं. कांट्रेक्ट पर बसें चलती हैं. ड्राइवर्स का वैरिफिकेशन कराया जाता है. करीब 40 से 50 बसें चलती हैं सभी का रिकार्ड मेनटेन रहता है.

प्रेम सिंह, वाहन ठेकेदार

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स्कूल ट्रांसपोर्ट या कांट्रेक्ट ट्रांसपोर्ट की जिम्मेदारी ही स्कूलों की होती है. प्राइवेट ऑटो या वैन की स्कूल की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है.

राहुल केसरवानी, सहोदय सचिव

ऑटो-वैन प्राइवेट व्हीकल के रूप में पैरेंट्स खुद लगवाते हैं. स्कूल ट्रांसपोर्ट में सभी मानक पूरे होते हैं. सीबीएसई की गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखा जाता है. प्राइवेट व्हीकल की रिस्पांसिबिलिटी पेरेंट्स की होती है.

सतीश शर्मा, सहोदय सदस्य

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स्कूलों का ट्रांसपोर्ट खर्च बहुत ज्यादा होता है. स्कूल फीस और अन्य खर्च बहुत ज्यादा होते हैं. प्राइवेट व्हीकल का खर्च कम होता है इसलिए मजबूरी में इन्हें लगाना पड़ता है.

जसविंदर, अिभभावक

स्कूल ट्रांसपोर्ट सभी रूट पर नहीं जाते हैं. गलियों के अंदर बस आती नहीं हैं. मेन रोड पर ही बच्चे को उतार देती हैं. जबकि प्राइवेट व्हीकल घर पर ही बच्चों को छोड़ते हैं.

सतनाम, अिभभावक

स्कूल ट्रांसपोर्ट तीन गुना से अधिक फीस वसूलते हैं. हमारे पास विकल्प नहीं होता है. बच्चे को पढ़ाना है तो किसी तरह मैनेज करना पड़ता है.

Posted By: Lekhchand Singh