गुजरात में धर्म बदलना चाहते हैं 94.4% हिंदू
878 लोगों को मिली मंजूरी
आपको बताते चलें कि राज्य में धर्म परिवर्तन निषेध कानून (गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट) लागू है। ये इस बात की सहमति देता है कि अगर जिला प्रशासन मंजूरी दे, तो संबंधित व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तित कर सकता है। फिलहाल राज्य सरकार ने अभी आधे से ज्यादा आवेदनों को पास नहीं किया है। इसमें से सिर्फ 878 लोगों को ही धर्म परिवर्तन की मंजूरी मिली है।
क्या है वजह
जिन 1838 लोगों ने आवेदन किया है उसमें 1,735 हिंदुओं को छोड़ दिया जाए तो 57 मुस्लिम, 42 क्रिश्चियन और 4 पारसियों ने भी धर्म बदलने के लिए परमीशन मांगी है। हालांकि सिख और बौद्ध धर्म के किसी भी अनुयायी ने धर्म बदलने के लिए फॉर्म नहीं भरा। एक्सपर्ट का कहना है कि इसके पीछे शादी एक कारण है। कुछ आवेदक इसलिए धर्म बदलना चाहते हैं, ताकि वे अपने जीवनसाथी का धर्म अपना सकें। राज्य में जितनी हिंदू आबादी है, सरकार को उसकी तुलना में कहीं ज्यादा आवेदन मिले हैं। ज्यादातर सूरत, राजकोट, पोरबंदर, अहमदाबाद, जामनगर और जूनागढ़ से आवेदन आए हैं। बता दें, दो साल पहले जूनागढ़ में ऐसा मामला सामने आया था, जहां करीब एक लाख दलित लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
दलितों में है असंतोष की भावना
इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के पूर्व नेशनल फेलो घनश्याम शाह ने कहा, 'सवाल ये है कि हिंदुओं में वो कौन हैं, जो धर्म बदलना चाहते हैं? मेरा मानना है कि दलितों में असंतोष की भावना है, जिसकी वजह से वे धर्म परिवर्तन कराना चाहते हैं। जनसंख्या के आंकड़ों से साफ है कि खुद को हिंदू कहने वाले कुछ लोग वास्तव में धर्म परिवर्तन के बाद बौद्ध धर्म के नए अनुयायी थे।'
क्या कहती है विहिप
विश्व हिंदू परिषद के महासचिव रणछोड़ भारवाड़ ने बताया, 'धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया देश विरोधी काम है। ऐसे लोगों को देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वे लोगों को भड़का कर या दबाव में लाकर उनका धर्म बदलवा देते हैं। जूनागढ़ में बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने हिंदुओं के साथ ऐसा किया था।'