'अछूत की शिकायत'' कविता के सौ साल पर विमर्श

- वरिष्ठ आलोचक खगेन्द्र ठाकुर ने भी जाहिर की शंका

-जगजीवन राम शोध अध्य्यन संस्थान में फोल्डर जारी

PATNA: हीरा डोम की कविता, अछूत की शिकायत, के सौ साल हो गए। इस कविता का फोल्डर जगजीवन राम शोध अध्ययन संस्थान की ओर से जारी किया गया। आयोजन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि ये शंका जाहिर होती रही है कि कहीं महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ही ये कविता तो नहीं लिख दी। उन्होंने कहा कि हीरा डोम कौन थे ये आज तक ऐतिहासिक व प्रमाणिक नहीं है। आज जो समाज का भौतिक वातावरण बन रहा है वह सभी जातियों को तोड़नेवाला है, लेकिन राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए जाति-प्रथा को बनाए रखते हैं। जाति पर आधारित पुराने श्रम विभाजन को नया श्रम विभाजन की स्वार्थपूर्ण राजनीति ने रोक रखा है। कहा कि हमारा सामाजिक ढ़ांचा पूंजीवादी है। ये ढ़ांचा कैसे बदला जाए, ये सवाल हमारे सामने है।

ऐसी हिम्मत कोई नहीं कर सकता

चर्चित कवि अरूण कमल ने हीरा डोम की कविता पर कहा कि कविता में ईश्वर, वर्णाश्रम व्यवस्था एवं अंग्रेज सरकार की जैसी भ‌र्त्सना की गई है वैसी भ‌र्त्सना आज कोई भी लेखक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। विभिन्न जातियों की जैसी धज्जी उड़कार हीरा डोम ने रख दी वैसी आज कोई नेता भी नहीं कर सकता। हीरा डोम की तुलना भारत के दार्शनिक विरासत की नास्तिकवादी परंपरा से किया जा सकता है। कहा कि ये कविता हमें नैतिक बल प्रदान करती है। मेहनत की रोटी कमाने पर बल देने वाली यह कविता पूंजीवादी शोषण पर आधारित व्यवस्था की भ‌र्त्सना करती है।

हीरा डोम की पीड़ा समझनी होगी

चर्चित कवि आलोक धन्वा ने कहा कि आज प्रतिगामी और प्रतिक्रियावादी शक्तियां हावी होने की कोशिश कर रही है। स्वाधीनता संग्राम में जितनी तरह की धाराएं थीं उसे आज एकताबद्ध करने की जरूरत है। जब भी कोई बड़ा आदर्श सामने होता है उसमें कई समस्याएं, बुराइयां पीछे छूट जाती हैं। हमें हीरा डोम की पीड़ा को समझना है। साथ ही आज के संकट के चरित्र को परिभाषित करना है।

नवजागरण का संकेतक

आलोचक प्रेम कुमार मणि ने कहा कि हीरा डोम की कविता तब लिखी गई थी जब अंबेडकर का प्रादुर्भाव नहीं हो पाया था। यह कविता हिन्दी क्षेत्र में नवजागरण का संकेतक है। हमें देखना होगा कि कितने अंतर्विरोध के बीच से आए हैं हमारे समाज में सिर्फ आर्थिक प्रश्न नहीं है। कई किस्म के दर्द हैं।

समाज के वर्तमान सरोकार पर सवाल

युवा लेखक मुसाफिर बैठा ने कहा कि हीरा डोम की कविता स्वतंत्रता पूर्व समाज में जो शिकायत करते हैं वह आज भी प्रासंगिक दिखता है। इसका मतलब यह है कि समाज के सरोकार पर बड़ा सवाल है। कहा कि भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार आज तक किसी दलित को क्यों नहीं मिला? समारोह के शुरुआत में संस्थान के डायरेक्टर श्रीकांत ने इस आयोजन के महत्व के विषय में बतलाया। समारोह में कथाकार शेखर, गालिब खान, कंचनबाला, सत्यानारायण यादव, अरूण, रामायुग प्रसाद, अर्थशास्त्री गंगाधर खान, सत्येन्द्र सिन्हा और अरूण श्रीवास्तव आदि मौजूद थे।

Posted By: Inextlive