क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ : झारखंड गठन के 18 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अब तक राज्य के 2000 प्रोफेसर्स अपने प्रोमोशन की बाट जोह रहे हैं. और जब प्रमोशन की फाइल ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी तो आचार संहिता की पेंच में फंस गई. अब प्रोफसर्स को समझ नहीं आ रहा कि क्या विकल्प तलाशे जाएं. वर्ष 1980 से 1996 तक नियुक्त हुए प्रोफेसरों को अब तक प्रमोशन नहीं मिला है. इस कारण इन प्रोफेसरों में मायूसी है. इनके अलावा कई असिस्टेंट प्रोफेसर ऐसे हैं, जो नियुक्ति के 15 वर्ष बीतने के बाद भी अब तक प्रोफसर नहीं बन पाए हैं. राज्य की आठ यूनिवर्सिटीज में कुल पांच हजार प्रोफेसर कार्यरत हैं, लेकिन कुल तीन हजार प्रोफेसरों को अब तक प्रमोशन के लाभ से वंचित रहना पड़ा है. जिस प्रणाली के माध्यम से 1998 एवं 2000 में कुछ प्रोफेसरों को प्रमोशन मिला, लेकिन उस प्रणाली के कारण बहुत सारे प्रोफेसर आज भी प्रमोशन से वंचित हैं.

आंदोलन के मूड में प्रोफेसर

विश्वविद्यालय शिक्षक कर्मचारी संघ के बैनर तले प्रमोशन संबंधित मांगों को लेकर राज्य के आठ विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर आंदोलन की रणनीति तैयार करेंगे. संघ के अध्यक्ष डॉ हरिओम पांडेय ने बताया कि विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसरों को लंबे समय से सरकार द्वारा प्रमोशन का लाभ नहीं दिया जाना विश्वविद्यालय शिक्षकों का अपमान करने के समान है. ऐसे में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उग्र आंदोलन की तैयारी में हैं.

500 बिना प्रमोशन के हुए रिटायर

दूसरी ओर, 500 प्रोफेसर ऐसे हैं, जो हाई कोर्ट में प्रमोशन की लड़ाई लड़ते हुए रिटायर हो गए. वहीं, वर्ष 2008 में नियुक्त हुए 747 असिस्टेंट प्रोफेसरों को भी अब तक प्रमोशन का लाभ नहीं मिला है. 2008 में जेपीएससी के माध्यम से नियुक्त इन असिस्टेंट प्रोफेसरों पर सीबीआई जांच चल रही है, इसलिए इनका प्रमोशन भी सरकार ने फिलहाल रोक दिया है.

जेपीएससी ने लौटा दी थी प्रमोशन फाइल

यूनिवर्सिटीज के प्रोफेसरों के प्रमोशन से संबंधित फाइल जेपीएससी के तात्कालिक अध्यक्ष के विद्यासागर ने विभाग को लौटा दी थी. आयोग ने विभाग से पुनर्विचार कर फाइल आयोग में फिर से भेजने की पहल की बात कही थी. तब से लेकर अब तक प्रोफेसरों के प्रमोशन से संबंधित फाइल आयोग को विभाग द्वारा नहीं दी

Posted By: Prabhat Gopal Jha