वो जमाना गुजर गया जब बेटियां घर के दायरे तक सीमित रहती थीं। अब बेटियां हर फिल्ड में कामयाबी के शिखर को छू रही हैं। बेटियां अपने पैरेंट्स को फील करा रही हैं कि वो बेटों से कम नहीं हैं। वो 21वीं सदी की बेटियां हैं।

बेटियां हमारी शान हैं

बेटियां हमारी शान हैं और उनपर हमें गर्व है। यह कहना है इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव और उनकी पत्‍‌नी आकांक्षा यादव का। दोनों ही जन साहित्य और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में चर्चित नाम हैं और उनकी इस परम्परा को बेटियां भी बढ़ा रही हैं। इनकी अक्षिता और अपूर्वा नामक दो बेटियां हैं, एक साढ़े सात साल की तो दूसरी चार साल की। ग‌र्ल्स हाई स्कूल, इलाहाबाद में क्लास 2 की स्टूडेंट अक्षिता जहां नन्ही ब्लॉगर के रूप में पॉपुलर है, वहीं इतनी कम उम्र में राष्ट्रीय एवं अ‌र्न्तराष्ट्रीय अवा‌र्ड्स पाने का रिकार्ड उसके नाम है। अपने ब्लॉग पाखी की दुनिया लिए उसे वर्ष 2011 में दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल ब्लॉगर्स कांफ्रेंस में बेस्ट नन्ही ब्लॉगर खि़ताब से सम्मानित किया गया। मात्र साढ़े चार साल की उम्र में नेशनल चाइल्ड अवार्ड (2011) पाकर वह इण्डिया की सबसे कम उम्र की विजेता भी बनी। यादव दंपती की दूसरी बेटी अपूर्वा भी अपनी सिस्टर के साथ क्रिएटिविटी सीख रही हैं। रक्षाबंधन के दिन दोनों बहनें एक-दूसरे को राखी बांधकर सेलिब्रेट करती हैं और उनकी इस पहल को देखते हुए अन्य लोगों ने भी इसे अपनाया है। यादव दम्पति को जहां अपनी बेटियों पर नाज है, वहीं सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से ये दूसरों को भी इस ओर अवेयर कर रहे हैं। इनका मानना है कि बेटियां किसी से कमतर नहीं, बशर्ते आप उनकी भावनाओं और इच्छाओं को समझते हुए उन्हें प्रोत्साहित करें।

बेटियों में ही बसी है दुनिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट के डबल एजी एडवोकेट सतीश चतुर्वेदी भी दो बेटियों के पिता हैं। दोनों ही बेटियां एकता व शिवानी फिलहाल पढ़ाई कर रही हैं। सतीश और उनकी पत्‍‌नी नीलम चतुर्वेदी को कभी भी ये नहीं लगा कि उनकी सिर्फ दो बेटियां हैं। सतीश और उनकी पत्‍‌नी कहती है कि आज के समय में बेटियां किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं है.उनकी पूरी दुनिया अपनी दोनों बेटियों में ही बसती है। उन्हें कभी भी बेटों की कमी नहीं खली। सतीश चतुर्वेदी ने कहा कि आज के समय में बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं रह गया है। लोगों को इस बात पर फोकस करना चाहिए कि बच्चों को बेहतर एजूकेशन और समय के हिसाब से उनको पूरी आजादी दी जाए। जिससे वे अपने कैरियर समेत दूसरे सभी फैसले पूरी दृढ़ता से ले सकें।

बेटियां किसी से कम नहीं

सिटी के फेमस स्कूल एमपीवीएम की प्रिंसिपल सुष्मिता कानूनगो के पति प्रसनजीत कानूनगो की भी सिर्फ एक बेटी है। उनकी बेटी फिलहाल चेन्नई के एक इंस्टीट्यूट से बीटेक कर रही है। वो कहती हैं कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं। उनकी फैमिली में कभी भी बेटियां को बेटों से कम नहीं समझा जाता है। उनका कहना है कि उनको और उनके पति को कभी इस बात का मलाल नहीं रहा कि उनके बेटा नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बेटी के पैदा होने के बाद ही उन्हें लगा कि उनकी फैमिली पूरी हो गई। उनकी और उनके पति की हमेशा ये कोशिश रही है कि अपनी बेटी को अच्छी से अच्छी परवरिस और एजूकेशन दें, जिससे वो आगे चलकर सेल्फ डिपेंड हो सके। सुष्मिता कानूनगो का मानना है कि जो लोग ये सोचते हैं कि बेटा होना जरूरी है, उन्हें अपनी सोच बदलनी चाहिए। बेटियां भगवान का सबसे बड़ा आश्ीर्वाद हैं।

Posted By: Inextlive