चुनाव परिणाम के बाद की दिल्ली पर नज़र डालते कुछ सूत्र कुछ नज़ारे और कुछ कटाक्ष भी...


1.अमित शाह के घर में आज शादी है. और दफ्तर में...2.जीते का कोट 10 लाख का होता है, हारे का दर्ज़ी को भी नहीं पता.3.पांडव काल से दिल्ली ने बड़े-बड़े लाक्षागृहों को बनते और तबाह होते देखा है.4.दिल्ली सात बार जमींदोज़ होकर आठवीं बार पांवों पर खड़ी हुई है.5.दिल्ली में उन बुतों की कमी नहीं, जो कबूतरों के काम आते हैं.6.सर-आंखों पर बिठाने और निगाहों से उतारने में कई बार दस महीने से भी कम का वक़्त लगता है.7.ज़िंदा क़ौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती, संत राम मनोहर लोहिया कह गए हैं.8.पहली बार ऐसी जमातों को जनता ने ख़ारिज किया है, जो लंबे समय से सियासत में हैं.19.भरोसा कई बार डरावना हो सकता है, जब बहुत अंधा होने लगे- नेता का जनता पर, जनता का नेता पर.


20.क्या ये चुनाव टीवी पर बहसों, सोशल मीडिया और विज्ञापनों की बदौलत जीता गया?21.क्या किसी वोटर ने अपने घर, बच्चों, अपने बिजली के मीटर की तरफ़ देखा ग़लाज़त की ज़िंदगी से बाहर आने के लिए वोट दिया ?22.अहंकार, अभद्रता, नफ़रत और हिंसा की करंसी बहुत बार काम नहीं करती.23.घूस तो कोई भी शौक़ से नहीं देता, न चुनावी चंदा, न वोट.

24.अपने खाते में आने वाले पंद्रह लाख किसी को बुरे न लगते.25.दिल्ली से नसीब बनता है, या नसीब से दिल्ली, बता दिया.

Posted By: Satyendra Kumar Singh