गंगा में छोड़े जाएंगे रांची जू के 30 घडि़याल
-ओरमांझी स्थित बिरसा जू में पल रहे क्राकोडाइल के बच्चे सात महीने के हुए
-डेढ़ साल की उम्र होने पर साहिबगंज की गंगा नदी में छोड़े जाएंगे -बिरसा जू इतनी बड़ी संख्या में क्रोकोडाइल की ब्रीडिंग करने वाला देश का पहला जू बना 1100 पशु-पक्षी हैं ओरमांझी स्थित बिरसा जू में 46 रेपटाइल्स में स्नेक्स, घडि़याल व लिजर्ड शामिल 686 प्रकार के बर्ड्स हैं बिरसा जू में 365 मैमल्स हैं रांची के चिडि़याघर में RANCHI: रांची के ओरमांझी स्थित बिरसा जू में पल रहे फ्0 घडि़याल अगले कुछ महीने में साहिबगंज स्थित गंगा नदी में छोड़े जाएंगे। इसके साथ ही यह बिरसा जू देश का पहला जू बन जाएगा, जो इतनी बड़ी संख्या में क्रोकोडाइल की ब्रीडिंग कराने में सफल रहा।जू के डॉ अजय कुमार ने बताया कि हमारा मकसद सक्सेसफुल ब्रीडिंग करा कर उसे नेचुरल हैबिट में छोड़ना है, न कि एनीमल्स और बर्ड्स को एक जगह रखकर सिर्फ एंटरटेनमेंट करना। ये एनिमल्स सफलता पूर्वक प्रजनन करें। इनकी संख्या बढ़े। इन्हें नेचुरल हैबिट में छोड़ा जाए। इस कड़ी में भगवान बिरसा बॉयोलॉजिकल पार्क काम कर रहा है।
तीन से बढ़कर हुए फ्0बिरसा जू में सालों से तीन घडि़याल थे। एक फीमेल और दो मेल। लेकिन इनकी हैचिंग नहीं हो पाती थी। इसी साल जून महीने में इनके अंडे की हैचिंग कराई गई, जिसके बाद फ्0 बच्चे पैदा हुए। सात महीने बाद भी घडि़याल के सभी बच्चे स्वस्थ हैं। ऐसे में इनके बड़े होने का इंतजार है। इसके बाद इन्हें नेचुरल हैबिट में छोड़ा जाएगा, ताकि ये प्रजनन करें और इनकी संख्या बढ़े। भगवान बिरसा बॉयोलॉजिकल पार्क ने सीमित संसाधनों की बदौलत ऐसी उपलब्धि हासिल कर ली है, जिसकी कल्पना खुद जू के लोगों ने भी नहीं की थी।
वर्जन जू में क्रोकोडायल की सक्सेसफुल हैचिंग हुई है। इनके फ्0 बच्चे पैदा हुए हैं। जिनकी अच्छे से देखभाल की जा रही है। अब इनके बड़े होने का इंतजार है। डेढ़ साल की उम्र हो जाने के बाद इन्हें साहिबगंज की गंगा नदी में छोड़ा जाएगा। उस प्रोग्राम में देशभर के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स भी शामिल होंगे। इसको लेकर एक प्रेजेंटेशन पिछले दिनों देहरादून में दिया गया है। एके पात्रो, डायरेक्टर, भगवान बिरसा बायोलॉजिकल पार्क, ओरमांझी, रांची लाखों के मुटा प्रजनन केंद्र में घटे घडि़यालराजधानी रांची से फ्भ् किलोमीटर दूर ओरमांझी के पास मगरमच्छ के संरक्षण और प्रजनन के लिए साल क्98भ् में मुटा प्रजनन केन्द्र की स्थापना की गई थी। इसके लिए लाखों रुपए खर्च हुए थे। लेकिन इस प्रजनन केन्द्र में मगरमच्छ की संख्या बढ़ने की बजाए घटती ही चली गई।