ALLAHABAD: मेडिटेशन जरूरी है. इसके लिए यह कतई जरूरी नहीं है कि किस वक्त किया जाय. इससे आपकी लाइफ बेहतर हो सकती है. मेडिटेशन का महत्व बताने के लिए तरीका बिल्कुल लेटेस्ट इस्तेमाल किया गया है. जी हां हम बात कर रहे हैं उस थ्री डी मूवी की जो ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के कैंप में दिखाई जा रही है. मेडिटेशन जैसे सब्जेक्ट के लिए थ्री डी मूवी क्यों? का जवाब है सबकुछ रियल फील कराने के लिए.

भूत प्रेत के दर्शन भी करें  राजस्थान बेस्ड प्रजापति ब्रह्म कुमारी ईश्वरी विश्वविद्यालय का शिविर कुंभ एरिया के सेक्टर नौ में स्थापित है। शिविर को भव्य और इंप्रेसिव रूप देने के लिए तमाम एक्सपेरीमेट किए गए हैं। शिविर में एंट्री करते ही आपको भूत-प्रेत के दर्शन होंगे। ये कोई आम भूत-प्रेत नहीं बल्कि भगवान भोले शंकर की बारात में शामिल बाराती हैं। यही इस शिविर की थीम है। इस शिविर का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को राजयोग की शिक्षा देना है. 

चश्मा लगाकर देखते हैं फिल्म

संस्था से जुड़ी मनोरमा जी ने बताया कि मेडिटेशन सिखाने के लिए पहली बार हमने थ्रीडी एनिमेशन मूवी बनवाई है। पूरी मूवी एनीमेशन पर बेस्ड है। इसमें मेडिटेशन के फायदे बताए गए हैं। मूवी का कांसेप्ट आत्मा का परमात्मा से कम्युनिकेशन है। एक बार जब कोई अपने अंतरआत्मा की आवाज सुनने लगता है तो उसे परमात्मा से मिलने का माध्यम मिल जाता है। श्रद्धालुओं व आस्था से जुड़े लोगों को बड़ी आसानी से थ्री डी मूवी उनके अंतरआत्मा से कम्युनिकेट कराती है। यह मूवी सिर्फ 20 मिनट की है। कैंप में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को यह सुविधा फ्री में प्रोवाइड कराई जा रही है. 

आंखे खोल कर होता है मिलन 

मेडिटेशन यानी ध्यान योग को लेकर मान्यता है कि आंखें बंद करके ही इसे किया जा सकता है। इस कैंप में ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेडिटेशन पर बेस्ड मूवी को देखने के लिए आपको अपनी आंखें खुली रखनी पड़ती है। मूवी का स्प्रिचुअल कांसेप्ट आपको अपनी डिवाइन से जोड़ता है। मूवी देखने के बाद यह फीलिंग डेवलप होती है कि मेडिटेशन मार्निंग वॉक से लेकर सोने से पहले तक कभी भी किया जा सकता है। इसके लिए किसी स्पेशिफिक टाइम की जरूरत नहीं है और न ही फिक्स टाइम लूज कर जाने पर इसे दूसरे दिन के लिए टाला जाना चाहिए। यह उसी तरह का कांसेप्ट है जैसे कि हम अपना कोई भी काम करते हुए भी अपने पैरेंट्स या अन्य किसी को याद करते हैं। उनके बारे में सोचते है। उनकी यादों को फील करते हैं। ठीक उसी तरह इस फिल्म के थ्रू यह बताने और सिखाने की कोशिश की गई है कि हम अपनी रुटीन लाइफ में बिजी रह कर भी मेडिटेशन कर सकते हैं। ऐसा करके हमबड़ी आसानी से अध्यात्म को जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। ये कहना भी गलत न होगा कि इस हाईटेक युग में अध्यात्म को आत्मसात करने में साइंस का भी रोल इंपॉर्टेंट हो चला है. 

यह सुविधा फ्री ऑफ कास्ट प्रोवाइड की जा रही है। शो शाम को छह से रात नौ बजे तक चलता है। हम चाहते हैं कि लोगों में स्प्रिचुअल फीलिंग डेवलप हो और वे इसके महत्व को जानें। यह प्रयास इसी लक्ष्य को पाने के लिए है।

कमलेश शर्मा, मीडिया प्रभारी

बह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय


Posted By: Inextlive