शोध गंगा और एंटी प्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर से पकड़ में आई नकल

80- 90 प्रतिशत प्लेगरिज्म यानि नकल मिल रही छात्रों की रिसर्च में

4 महीने बाद दोबारा थीसिस जमा करने का दिया गया समय

20 प्रतिशत तक ही प्लेगरिज्म मान्य होती है रिसर्च पेपर में

यूनिवर्सिटी ने प्लेगरिज्म की जांच के लिए शुरू किया साफ्टवेयर

850 स्टूडेंट्स के रिचर्स की जांच सॉफ्टवेयर से की गई प्रदेश में

450 करीब स्टूडेंट्स के रिसर्च में प्लेगरिज्म यानि नकल के मानक दिखे

52 फीसदी छात्राें की रिसर्च में पाई गई चोरी की थीसिस

50 स्टूडेंट्स हैं मेरठ के, जिनकी रिसर्च में मिली प्लेगरिज्म

214 छात्र अभी तक वाइवा की प्रक्रिया से किए गए बाहर

2019-20 में पीजी की रिसर्च को बेहतर बनाने के लिए ऑनलाइन रिसर्च

Meerut। यूजीसी की रिसर्च की गुणवत्ता सुधारने की कवायद सफल साबित हो रही है। दरअसल, शोध गंगा और एंटी प्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर से अब रिसर्च पेपर में कॉपी यानि नकल करने की पोल खुल रही है। अब एकेटीयू से जुडे़ संबंधित स्टूडेंट्स के रिसर्च पेपर में प्लेगरिज्म यानि नकल का खेल सामने आ रहा है। हालत यह है कि सॉफ्टवेयर के माध्यम से प्रदेश के 850 छात्रों के रिसर्च पेपर की जांच की गई। जिनमें से करीब 450 करीब स्टूडेंट्स के रिसर्च में कॉपी-पेस्ट मिली। वहीं 50 स्टूडेंट्स मेरठ के ऐसे हैं, जिनके रिसर्च पेपर में भी नकल मिली। अब यूनिवर्सिटी ने रिसर्च पेपर में कॉपी पेस्ट को रोकने के लिए कॉलेजों को नोटिस जारी कर दिया है।

पकड़ में आया कॉपी पेस्ट

शोध गंगा और एंटी प्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर के माध्यम से जांच के बाद रिसर्च पेपर में गोलमाल का खुलासा हुआ। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने 214 छात्रों को वाइवा की प्रक्रिया से बाहर कर दिया है। यही नहीं ऐसे स्टूडेंट्स को रिसर्च पेपर में सुधार के निर्देश दिए गए हैं। वहीं, दूसरी बार रिसर्च में प्लेगरिज्म मानक से ज्यादा मिलती है तो शोधार्थी को चार महीने के बाद फिर कंटेंट सुधार कर आवेदन करने का निर्देश दिया गया है। इस बार भी अगर प्लेगरिज्म मानकों से ज्यादा मिलती है तो रिसर्च पेपर को बाहर कर दिया जाएगा।

80 से 90 फीसदी कॉपी पेस्ट

यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक पीजी लेवल पर रिसर्च में कॉपी पेस्ट का सहारा धड़ल्ले से लिया जा रहा है। नए सेशन में एंटी प्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर से सख्ती करने के बाद ही ये सच सामने आया है। हालात ये है कि हैं कि कई स्टूडेंट्स की पीजी रिसर्च में प्लेगरिज्म यानि नकल 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक मिल रही है। यूजीसी के नियमों के अनुसार दोबारा से सुधार कर चार महीनों बाद थीसिस अपने स्तर से बनाकर जमा करने का समय भी दिया है। इसके साथ ही ये कहा गया है कि अगर इन चार महीनों में रिसर्च जमा नहीं की या फिर दोबारा से सेम कंडीशन मिलती है तो संबंधित रिसर्च को कैंसिल कर दिया जाएगा।

20 प्रतिशत है मान्य

दरअसल, यूजीसी किसी भी रिसर्च में 20 प्रतिशत तक ही प्लेगरिज्म को मान्य करता है। यूनिवर्सिटी ने पिछले साल ही प्लेगरिज्म की जांच के लिए नया सॉफ्टवेयर शुरु किया था। जिनमें टर्नटिन आदि शामिल हैं। इस महीने के पहले व दूसरे हफ्ते में यूनिवर्सिटी द्वारा एमटेक, एमआर्क, एमफार्मा अंतिम वर्ष के स्टूडेंट के डिजर्टेशन लघु रिसर्च जमा कराए गए। इनमें ही ये परिणाम निकलकर आए है।

कॉलेजों की लापरवाही, पड़ रही भारी

दरअसल, स्टूडेंट्स के रिसर्च में कॉलेजों की जिम्मेदारी है। रिसर्च में हो रही गलती के लिए सर्वाधिक जिम्मेदारी संबंधित कॉलेज की हैं। एक तो वे स्टूडेंट की पढ़ाई में ध्यान नहीं देते हैं, दूसरे बिना चेकिंग के रिसर्च पर हस्ताक्षर कर देते हैं। कई कॉलेजों के पास प्लेगरिज्म चेक करने की व्यवस्था भी नहीं है। इससे पहले भी यूनिवर्सिटी द्वारा इसके लिए कॉलेजों को निर्देश दिए गए, लेकिन व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ।

ऑनलाइन रिसर्च करेंगे स्टूडेंट्स

प्लेगरिज्म की बढ़ती मात्रा को देखते हुए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस सत्र 2019-20 से अंतिम रूप से पीजी पास होने वाले रिसर्च को बेहतर बनाने के लिए ऑनलाइन रिसर्च करने का निर्णय भ्ीा लिया गया गया है। एंटी प्लेगरिज्म सॉफ्टवेयर (रिपोजिटरी) के सर्वर पर शोध अपलोड कर देने से इनकी नकल करने की संभावना कम रहेगी।

रिसर्च की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई बार नियम आए है, इसके बावजूद भी कुछ स्टूडेंट्स के रिसर्च ऐसे आ रहे है, जो बहुत ही गलत है, ये कॉलेजों व स्टूडेंट्स दोनों की जिम्मेदार है।

आदेश गहलौत, रजिस्ट्रार, बीआईटी कॉलेज

रिसर्च की गुणवत्ता को सुधारने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे है। प्लेगरिज्म पर सख्ती की है। इस बार कई रिसर्च में नकल पाई गई है। जो गलत है, रिसर्च बेहतर बनाने के लिए ऑनलाइन सबमिट का नियम है, इससे काफी हद तक सुधार आ सकता है।

एसके सिंह, रजिस्ट्रार, एमआईईटी कॉलेज

Posted By: Inextlive