भारत के सबसे सफल मार्स ऑर्बिटर मिशन MOM ने आज 1 साल पूरा कर लिया। 24 सितंबर 2014 को पृथ्‍वी की कक्षा को छोड़कर लाल ग्रह में गए इस मंगलयान ने इसरो के वैज्ञानिकों को ऐसी खुशी दी जिसकी कई सालों से प्रतीक्षा की जा रही थी। भारत के लिए यह मिशन इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इसरो की यह पहली कोशिश थी और उसमें भी सफलता मिल गई। तो आइए इस अवसर पर मंगलयान से जुड़ी कुछ बातें जानें....


(1) पहली एशियन कंट्री :-अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का नया इतिहास लिखा गया है। जैसी उम्मीद थी वही हुआ। मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित तो हुआ साथ ही इसने वहां से फोटो भेजना भी शुरु कर दिया। वैसे इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने इस सबसे बड़े अभियान में काफी मेहनत की थी। शायद इसी का नतीजा है कि भारत पहला एशियाई देश बना जिसने लाल ग्रह पर मंगलयान को उतारा।(2)  पहली कोशिश सफलजैसा कि कहा जाता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ठीक इसी तरह इसरो ने भी काम किया लेकिन उनकी मेहनत इतनी रंग लाई कि पहली कोशिश में ही मंगलयान सफलतापूर्वक लाल ग्रह पर पहुंच गया। वैसे मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण दुनिया के कई देशों को हैरान कर गया। क्योंकि अमेरिका, रूस जैसे बड़े-बड़े देश भी पहली बार असफल हुए थे।


(3) 454 करोड़ रुपये की लागत
मॉर्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) भारत का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था। इसरो ने 5 नवंबर 2013 को इसे लॉन्च किया था। जोकि 24 सितंबर 2014 को लाल ग्रह की कक्षा में पहुंचा। इस मिशन में तकरबीन 454 करोड़ रुपये खर्च हुए। जोकि भारत में अगर हर व्यक्ित बस राइड करे तो उससे मिलने वाली आमदनी से भी कम है।


(4) 7 रुपये में एक किमी
मंगलयान जब सफलतापूर्वक लाल ग्रह पर पहुंचा, तो पीएम नरेंद्र मोदी खुद इसरो पहुंचकर इसके साक्षी बने। वहां पर उन्होंने बताया कि इस मिशन में प्रति किमी सिर्फ 7 रुपये का खर्च आया। जबकि अहमदाबाद में एक ऑटो रिक्शा में बैठकर 1 किमी चलने पर 10 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।(5) कितने समय में पहुंचामंगलयान के इस ऑर्बिटल पीरियड की बात करें, तो इसमें 72 घंटे 51 मिनट और 51 सेकेंड का समय लगा।(6) चौथी स्पेस एजेंसीमंगलयान की सफलता के बाद इसरो मंगल ग्रह पर पहुंचने वाली दुनिया की चौथी स्पेस एजेंसी बन गई। इससे पहले सोवियत स्पेस प्रोग्राम, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी का नाम आता है।(7) GSLV नहीं PSLVइसरो ने जब मार्स ऑर्बिटर मिशन की तैयारी की, तो सभी वैज्ञानिकों ने इसे GSLV स्पेसक्रॉफ्ट से भेजने पर सहमति जताई। लेकिन 2010 में इसके स्पेसक्रॉफ्ट के दो बार विफल हो जाने से वैज्ञानिकों के दिमाग में कुछ संदेह भी था। ऐसे में फिर GSLV को किनारे करते हुए PSLV पर भरोसा किया गया। और फिर PSLV - C25 के जरिए मंगलयान भेजा गया।inextlive from Spark-Bites Desk

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari