88 फीसदी घटे शोधार्थी

मेरठ में पीएचडी के शोधार्थियों की संख्या में आई कमी

88 फीसदी गिरावट आई पीएचडी करने वाले छात्रों की संख्या में

689 शोधार्थियों की संख्या थी साल 2014 में

- 88 शोधार्थी ही रह गए गए साल 2018 में

-15 फीसदी से ज्यादा शोध-पत्र में कॉपी-पेस्ट पर उसे किया जाएगा निरस्त

- यूजीसी के सख्त नियमों ने फर्जी शोध पर कसी लगाम

- अब नहीं चलता कॉपी-पेस्ट, लगातार बदलते नियम है कारण

Meerut। यूजीसी ने फर्जी और खराब गुणवत्ता के शोध पर लगाम कसी है, जिसका असर भी दिखने लगा है। हालत यह है कि बीते पांच साल में तकरीबन 88 फीसदी शोधार्थियों की कमी आई है। मसलन, साल 2014 से 2018 तक संख्या घटकर करीब 12 फीसदी पर आ गई है। दरअसल, 2014 में शोधार्थियों की संख्या 689 थी, जो 2018 में घटकर महज 88 तक ही रह गई।

ऐसे गिरे आंकड़े

वर्ष पीएचडी संख्या

2014- 689

2015- 484

2016 193

2017- 120

2018 88

अब नहीं चलता कॉपी-पेस्ट

विशेषज्ञों की मानें तो पहले पीएचडी में शोधार्थी कॉपी पेस्ट करके अपना शोध पत्र तैयार कर लेते थे। यही नहीं, गोलमाल करके छात्र शोध प्रस्तुत कर उसे पास भी करा लेते थे, लेकिन जब यूजीसी ने साहित्य चोरी से जुड़ा नियम बनाया है तो उससे भी बदलाव दिख रहा है। नये नियमों के मुताबिक अगर शोध- पत्र में 15 फीसदी से ज्यादा कॉपी-पेस्ट है तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाएगा। यही कारण है एक ओर से इससे गुणवत्ता में सुधार हो रहा है, साथ ही शोधार्थियों की संख्या में भी गिरावट हो रही है।

ये भी आया था रुल

गौरतलब है कि साल 2016 में यूजीसी ने पीएचडी के लिए प्रवेश परीक्षा के बाद इंटरव्यू अनिवार्य कर दिया था। इसके बिना पीएचडी में पंजीकरण नहीं होता है। यूजीसी की ओर से जारी गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक पीएचडी या एमफिल करने के लिए एक और संशोधन यूजीसी रेगुलेशन 2016 में किया गया है। किसी भी विश्वविद्यालय में पीएचडी या एमफिल पंजीकरण के लिए प्रवेश परीक्षा के 70 प्रतिशत और मौखिक परीक्षा या इंटरव्यू के 30 प्रतिशत अंक जोड़े जाएंगे। इसके बाद ही पंजीकरण के लिए मेरिट जारी की जाएगी। गर छात्र इन दोनों को पूरा नहीं करेगा तो उसका पंजीकरण मान्य नहीं होगा। इसके बाद भी पीएचडी के शोधार्थियों की संख्या में कमी आई थी।

क्या कहते है टीचर्स

बेहतर रिसर्च हो अच्छे शिक्षक बनकर आएं, यूजीसी का यहीं प्रयास है, एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए यूजीसी काफी बेहतर नियम बना रही है, जिसका परिणाम है कि बेहतर रिसर्च भी सामने आ रही हैं।

डॉ। प्रशांत कुमार, प्रेस प्रवक्ता, सीसीएसयू

पीएचडी के शोधार्थियों की संख्या अब कम हुई है, जिसका कारण है कि अब कट-पेस्ट नहीं चलता है, जिससे काफी हद तक फर्जी डिग्री पर लगाम लगी है, जोकि बेहतर है।

प्रो। जयमाला, डायरेक्टर, सर छोटूराम यूनिवर्सिटी

क्या कहते है स्टूडेंट्स

अब पीएचडी के शोधार्थियों की संख्या कम हुई है, यूजीसी नियमों को सख्त करती जा रही है, शोध के विषयों को भी कई प्रक्रियाओं के बाद पास किया जाता है।

हंस

कॉपी पेस्ट नहीं चलेगा, जबसे ऐसा नियम आया है। तभी से पीएचडी की भीड़ छंट गई है, अब सिर्फ वहीं कर रहे हैं, जो वास्तव में कुछ पढ़ रहे हैं।

प्रशांत

यूजीसी के बदलते नियमों से साफ हो रहा है कि अब फर्जी पीएचडी नहीं हो सकती। केवल आपकी नॉलेज व बेहतर रिसर्च ही आपको डिग्री दिलाएगी।

पायल

पहले अक्सर सोर्स के जरिए कॉपी पेस्ट करके रिसर्च जमा कर दी जाती थी। जिसका परिणाम था कि ऐसे शिक्षक आते थे जिनको नॉलेज की कमी थी। अब ऐसा नहीं हो रहा है।

रविंद्र

Posted By: Inextlive