भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें सिंगापुर के एक पार्क में छिपी हुई हैं। इस देश में ही उन्होंने रास बिहारी बोस से आजाद हिंद फौज की कमान संभाली व ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था।

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के सीनियर न्यूज एडिटर उमंग मिश्र उन्हीं यादों को खोजते हुए सिंगापुर के उस पार्क में जा पहुंचे। आइए नेताजी की 121वीं जयंती पर उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई की उन भूली बिसरी यादों को ताजा करते हैं-
सिंगापुर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कर्मभूमि रहा है। आजाद हिंद फौज के गौरवशाली इतिहास का प्रमुख अध्याय सिंगापुर की धरती पर लिखा गया था। ऐसा इतिहास की किताब में पढ़ा था। सिंगापुर यात्रा के दौरान ये ठान रखा था कि उस जगह पर जाना है जहां नेता जी की निशानियां हों। सिंगापुर के लोगों से पूछने पर पता नहीं चल पाया कि नेता जी से जुड़ा कोई स्थान कहां पर है। गूगल के जरिए पता चला कि कनॉट ड्राइव इलाके में कोई एसप्लांडे पार्क है वहां इंडियन नेशनल आर्मी का एक स्मारक है।। एसप्लांडे पार्क के बारे में पता किया तो मालूम हुआ वो जानी मानी जगह थी लेकिन वहां आईएनए का कोई स्मारक है इसकी जानकारी लोगों को नहीं थी।। ट्रैवेल की साइट्स भी नेता जी के स्मारक के बारे में कुछ नहीं बता रही थीं। तय किया कि एसप्लांडे पार्क जा कर तलाश किया जाए स्मारक।


आकृति पर लिखा था कि इस स्थान पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायक सुभाष चंद्र बोस ने इंडियन नेश्नल आर्मी के शहीद अज्ञात सैनिकों की याद में जुलाई 1945 में एक स्मारक स्थापित किया था। आकृति पर लिखा था नेताद्वारा स्थापित स्मारक पर उर्दू के तीन शब्द उकेरे गए थे इत्तेफाक(यूनिटी), इतमाद(फेथ) और कुर्बानी(सैक्रिफाइस)। नेताजी द्वारा स्मारक स्थापित करने के दो महीने बाद सिंगापुर पर अंग्रेजों को फिर से कब्जा हो गया और उन्होंने स्मारक को ढहा दिया। वर्तमान आकृति उसी जगह पर बाद में फिर से नए रूप में स्थापित की गई है। अगस्त 1945 में नेता जी की मृत्यु विमान दुर्घटना में बताई जाती है। इसका अर्थ ये हुआ कि अगर प्लेन क्रैश में नेता जी की मृत्यु की बात सही है तो अपनी मृत्यु के मात्र एक महीने पहले उन्होंने सिंगापुर में उस जगह स्मारक स्थापित किया था जहां मैं खड़ा था। मन में भावनाओं का ज्वार उठ रहा था जिसे व्यक्त करना संभव नहीं। मन एक बार फिर नेता जी के प्रति कृतज्ञता से भर उठा। मैंने आकृति को बार बार नमन किया। तभी पानी बरसने लगा लेकिन मेरा वहां से हटने का मन ही नहीं कर रहा था। उस स्मारक के पास मैं अकेला ही था, बाकी स्मारकों को देखने आए सिंगापुर के लोग मुझे आश्यर्य से देख रहे थे।
बारिश तेज होती गई। आखिर में एक बुजुर्ग सिंगापुरी महिला छाता लेकर मेरे पास आईं और अपने छाते के नीचे आने का प्रस्ताव दिया। नजदीक के शेड के नीचे आकर मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि मैं अभी थोड़ी देर और रुकूंगा। वो चली गईं और मैं एक घंटे तक शेड के नीचे खड़ा नेताजी की याद में स्थापित उस निशानी को निहारता रहा और सोचता रहा कि भारतीयों के लिए तीर्थ से कम नहीं ये जगह फिर इसे क्या इतना गुमनाम सा और उपेक्षित होना चाहिए ? क्या उस स्मारक को पानी में भीगना चाहिए?क्या वहां कोई छोटा सा मेमोरियल नहीं होना चाहिए जहां नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फोटो और आजाद हिंद फौज से जुड़ी अन्य फोटोग्राफ हों? वहां मुझे एक घंटे कोई दूसरा भारतीय नहीं दिखा जबकि वहां से पास में ही सिंगापुर का मशहूर मरलॉयन है जहां अक्सर कोई न कोई भारतीय दिख जाएगा। सिंगापुर जाने पर हर कोई मरीना बे जरूर जाता है। मरीना बे से एक किलोमीटर दूर भी नहीं है ये जगह। क्या हर भारतीय पर्यटक यहां आता है? घंटे भर इन्हीं प्रश्नों से जूझता रहा। जब पानी रूक गया तो फिर से स्मारक के पास गया, उसे सैल्यूट किया और ये प्रण किया कि जीवन में जब भी सिंगापुर पहुंचना होगा इस स्थान पर शीश नवाने जरूर आउंगा।


प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद भी चूक नहीं सुधरी

नवम्बर 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिंगापुर यात्रा पर गए थे। उस दौरान वो एसप्लांडे वार्क स्थित इस स्मारक के दर्शन के लिए भी गए थे। कितने ताज्जुब की बात है कि इतनी बड़ी चूक पर किसी की नजर नहीं पड़ी। कितना बड़ा भारतीय प्रशासनिक अमला वहां गया होगा। फिर भी आज तक शब्द गलत ही लिखा है। क्या किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश के महान सपूत नेता जी सुभाष चंद्र बोस की निशानी सिंगापुर में भारतीय मान की प्रतीक उस जगह पर सही भाषा का प्रयोग किया जाए। जब नेता जी ने स्मारक बनवाया होगा तब तो शब्द सही ही लिखा रहा होगा। जब अगली पीढ़ी ने उसे फिर से बनवाया तो वहां गलत लिख दिया।

सिंगापुर जाने वालों से अपील

आम पर्यटक के लिए सिंगापुर का मतलब क्या है ? आधुनिकता, विकास, कॉस्मोपॉलिटन जीवनशैली, स्मार्ट सिटी, मौज , मस्ती, मरीना बे, क्लार्क क्वे, मरलॉयन, गार्डन बाई द बे, सिंगापुर फ्लायर, विश्व के सबसे अच्छे चिड़ियाघर में से एक घूमना, बर्ड सैंक्चुरी और सबसे शानदार सैंटोसा आईलैंड जिसमें सिलोसो बीच और यूनिवर्सल स्टूडियो के साथ मोनो रेल का आनंद। लेकिन यूनिवर्सल स्टूडियों से बड़ा स्टूडियो जहां देशभक्ति की असली पिक्चर बनी थी उसकी निशानी देखना कितनों के टूर प्लान में होता है नहीं पता। हर भारतीय जब सिंगापुर जाए तो उसे नेता जी के स्मारक जाकर नमन करना चाहिए। उसके बिना किसी भारतीय का सिंगापुर टूर पूरा नहीं हो सकता। पहले हमें उस स्थान को महत्व देना होगा उसके बाद वहां की सरकार उसे महत्व देगी।

Posted By: Chandramohan Mishra