-वेंटिलेटर पर रख बच्ची का हो रहा इलाज, सेहत में हो रहा है सुधार

JAMSHEDPUR: बुरुडीह स्थित मुरूप गांव निवासी बेहुला देवी को म् जून को प्रसव पीड़ा हुई। परिजन ऑटो से सात माह की गर्भवती महिला को हॉस्पिटल लेकर आ ही रहे थे कि रास्ते में प्रसव हो गया। इस दौरान बच्ची का आकार देखकर परिजन के होश उड़ गए। इस बच्ची का वजन मात्र भ्00 ग्राम था। बच्ची को जब बारीडीह स्थित मर्सी हॉस्पिटल लाया गया तो उसे देख डॉक्टर भी हैरान रह गए। बच्ची का वजन इतना कम था कि उसे बचा पाना डॉक्टर्स के लिए एक चुनौती बन गई। स्पेशल केयर के बाद क्ख् दिन की इस बच्ची की सेहत में सुधार हो रहा है। वजन भी अब बढ़कर भ्ब्0 ग्राम हो गया है। इसको लेकर डॉक्टर्स में भी उत्साह है।

इंक्यूबेटर पर चल रहा इलाज

बच्ची को जब अस्पताल में भर्ती कराया गया तब वह रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (आरडीएस) बीमारी से अधिक ग्रस्त थी। यह सांस संबंधी गंभीर बीमारी है। इसे देखते हुए बच्ची को वेटिंलेटर के साथ इंक्यूबेटर पर रखा गया है। बच्ची को अभी ट्यूब द्वारा मां की दूध पिलाया जा रहा है। डॉ। शुभोजित बनर्जी ने बताया कि सामान्य तौर पर बच्चे ब्0 हफ्ते में पैदा होते है। जिनका वजन करीब तीन किलो होता है, लेकिन इस बच्ची का वजन सिर्फ भ्00 ग्राम है जो ख्9 सप्ताह में पैदा हुई है। उन्होंने बताया कि फ्भ् हजार में से एक बच्चे का जन्म इस तरह होता है। इनकी मृत्यु दर ज्यादा है। करीब क्0 परसेंट बच्चे ही जी पाते हैं, बाकि दो दिनों के अंदर दम तोड़ देते हैं। डॉक्टर्स ने बताया कि आम तौर पर नवजात शिशुओं का वजन ढाई से साढ़े तीन किलोग्राम तक होता है। साढ़े तीन किलो के बच्चे को काफी सेहतमंद माना जाता है।

डॉक्टर भी आश्चर्यचकित

मर्सी अस्पताल के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ। शुभोजित बनर्जी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि पहली बार सातवें महीने में कोई बच्ची पैदा हुई हो, लेकिन अन्य बच्चों की तुलना में इसकी वजन और आकार काफी कम है। सातवें महीने में जन्मी बच्ची का वजन कम से कम क्.भ् किलो होना चाहिए। जन्म के समय एक किलो से कम वजन के बच्चे को हाई रिस्क वाला माना जाता है। बच्ची को विशेष देखरेख के लिए मर्सी अस्पताल की ओर से एक टीम गठित की गई है। इसमें शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ। शुभोजित बनर्जी, डॉ। रतन कुमार, डॉ। अमित कुमार, डॉ। प्रभा सहित सिस्टर शामिल हैं।

लो बर्थ वेट की हैं कई वजहें

मां को जल्दी दर्द उठना ही समय से पहले डिलीवरी होने का मुख्य कारण है। वहीं जच्चा को एनीमिया, कुपोषण, हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, भारी समान उठाना, खेत में काम करना, विटामीन की कमी के कारण भी समय से पूर्व बच्चे का जन्म होती है। इस तरह के नवजात को फेफड़े की बीमारी, दिमाग में खून बहना, शरीर में इंफेक्शन सहित अन्य बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

स्वस्थ हैं जच्चा-बच्चा

प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा दोनों ठीक है। हालांकि परिजन आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। मां घर पर ही है, जबकि बच्ची अस्पताल में भर्ती है। बच्ची की स्थिति में लगातार सुधार हो रही है। आम तौर पर महिलाओं का हीमोग्लोबिन प्रसव के समय साढ़े नौ ग्राम के आसपास होना चाहिए। इतने कम वजन के जच्चा-बच्चा को एनीमिया सहित अन्य बीमारियों का खतरा आगे भी रहता है। परिजनों ने बताया कि मां स्वस्थ है।

बच्ची का वजन देखकर डॉक्टर भी आश्चर्यचकित हैं। खास बात यह है कि ऑटो पर जन्मी भ्00 ग्राम की बच्ची की स्थिति में लगातार सुधार हो रही है। उसकी वजन ब्0 ग्राम बढ़ चुका है।

-डॉ। शुभोजित बनर्जी, शिशु रोग विशेषज्ञ, मर्सी हॉस्पिटल

Posted By: Inextlive