क्‍या भगवान के दर्शन भीड़ भरे किसी धार्मिक स्‍थान पर ही हो सकते हैं? क्‍या भगवान का आशीष पाने के लिए भक्‍त को किसी तीर्थ स्‍थल पर जाना जरूरी है? इन मामलों पर अकसर बहस होती रही है। इन सवालों के जवाब मे कई किस्‍से कहानियां भी हैं। महा शिवरात्रि के मौके पर ऐसी ही एक कहानी पेश है जिसमें भगवान शिव के भोलेपन की महिमा है आप भी पढ़ें और जानें भोले के मन में भक्‍तों को लेकर क्‍या है...


मंदिर की महिमा सुनी तो चल पड़ा जनम सुफल करने


महा शिवरात्रि का मौका था। गांव के लोग रात से ही एक सिद्ध मंदिर में जाने की तैयारी करने लगे। लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि इस मौके पर भगवान शिव के दर्शन हो जाएं तो रुके काम चल पड़ते हैं और बिगड़े काम सुधर जाते हैं। सबने आधी रात को ही गांव से बैलगाड़ी लेकर चलने की तैयारी कर ली थी। उस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते थे। सो कल महा शिवरात्रि पर भीड़ ज्यादा होगी इसलिए आधी रात से तैयारी जरूरी थी। सबकी अपनी-अपनी परेशानी थी। सब भोले का दर्शन करके अपने दुख दूर करना चाहते थे। गांव से 10 बैलगाड़ी जा रही थी। कालू लोहार भी जाना चाहता था लेकिन किसी बैलगाड़ी पर उसे जगह नहीं मिली। लेकिन उसने ठान लिया कि कुछ भी हो भगवान शिव के दर्शन तो करने ही हैं। हालांकि उसकी कोई मन्नत नहीं थी लेकिन वह भगवान के दर्शन से अपना जनम सुफल करना चाहता था। सो पैदल ही चल पड़ा।रबड़ का रास्ता जितना चलता उतनी दूरी बढ़ती

आधी रात से ही कालू चल रहा था। सुबह हो चली थी। रात में तो पता नहीं चला लेकिन जैसे-जैसे धूप तेज होती उसकी भूख-प्यास से थकान दोगुनी होती जाती। ऊपर से रास्ता जैसे रबड़ का हो जितना चलता ऐसा लगता जैसे दूरी और बढ़ जाती। भूख-प्यास से व्याकुल कालू के तलवे में छाले पड़ गए थे। खून रिसते पैरों में मिट्टी चिपक गई थी। पसीने से बेहाल हो गया था ऐसा लगता जैसे अभी गिर पड़ेगा। दोपहर मंदिर पहुंचा तो देखा भीड़ इतनी कि रात तक दर्शन हो जाएं तो बड़ी बात। लोग आते ही जा रहे थे। धक्का-मुक्की में बार-बार वह लाइन से बाहर हो जाता और उसे फिर से लाइन में लगना पड़ता। एक बार तो भीड़ की धक्का-मुक्की ने उसे आधे रास्ते लाइन से बाहर धकेल दिया। लाइन से बाहर होते ही वह गिर कर बेहोश हो गया। होश आया तो देखा लाइन पीछे और लंबी हो चुकी थी, थकान और प्यास तो थी ही अब उसकी हिम्मत भी जाती रही।निराश होकर बिना दर्शन मंदिर से लौटना पड़ा

उसने वहीं से लेटे-लेटे भगवान को दंडवत किया और भगवान से क्षमा मांग कर घर की ओर वापस लौट पड़ा। दिन था सो उसने शार्टकट रास्ता पकड़ लिया। यह रास्ता जंगल और खेतों से होते हुए जाता था। जंगल खत्म होने के बाद जहां से खेत शुरू होते थे वहां झाडि़यों में एक पुराना भगवान शिव का मंदिर था। वहां कोई नहीं जाता था। शांति देख कर वह मंदिर के फर्श पर लेट गया। थकान और प्यास से उसे तुरंत नींद आ गई। थोड़ी देर बाद ही उसका नाम लेकर कोई उसे पुकारने लगा। उठा तो देखा भगवान स्वयं उसे पुकार रहे थे। उठते ही वह भगवान के चरणों में दंडवत हो गया। उसने पूछा भगवान आप यहां? भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा हां मैं तो यहीं हूं, तुम यहां कैसे? उसने एक ही सांस में सारा किस्सा कह सुनाया। बोले आपके दर्शन नहीं पाए इसलिए निराश थका-मांदा यहां शांति देखकर लेट गया था। लेकिन आप यहां तो भक्त वहां किसके दर्शन कर रहे हैं? भगवान बोले अरे छोड़ो उनको, इतनी भीड़ में भला कौन रह सकता है?जहां शांति का निवास वहां भगवान का वास
न सांस ले सकता हूं न ध्यान लगा पाता हूं, तुम तो जानते ही हो मैं ठहरा योगी। यहां बड़ी शांति है इसलिए यहीं रहता हूं ध्यान में मगन। वहां लोग मेरी भक्ति नहीं मुझसे सौदा करने आते हैं। कोई कहता है ये कर दो, कोई कहता है वो कर दो। अरे मैं कैसे कर दूं? यदि सब मुझे ही करना होता तो तुम्हें कर्म करने का अधिकार क्यों देता? तुम कर्म करो फल मैं दूंगा। लेकिन सब मुझसे ही कर्म कराने को बोलते हैं। लोग मुझे ऑर्डर देने लगे हैं बस फर्क इतना है कि वह ऑर्डर रिक्वेस्ट मोड में होता है। रही बात तुम्हें दर्शन देने की, तो तुम्हारे मन में कोई इच्छा नहीं थी सिर्फ मेरा दर्शन करना चाहते थे तो मैंने तुम्हें दर्शन दे दिया। अब जब तुम मुझसे मिल लिए तो परंपरा के अनुसार मुझे तुम्हें कुछ वरदान देना होगा मांगो क्या चाहते हो। कालू बोला भगवान मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपके दर्शन चाहिए था मिल गया मैं मेरा जीवन कृतार्थ हो गया। मुझे जो चाहिए था वह तो आपने बिना मांगे ही दे दिया। तभी अचानक उसकी नींद खुल गई। देखा तो मंदिर में कहीं कोई नहीं था। बस एक पुराना टूटा-फूटा शिवलिंग था। लेकिन उसकी थकान दूर हो चुकी थी। उसके पैरों के घाव भर गए थे। वह अपने तन में एकदम ताजगी महसूस कर रहा था।

Posted By: Satyendra Kumar Singh