वैसे तो हम सभी मुकदमों की भारी तादात और समय की कमी से जूझते भारतीय उच्‍च न्‍यायालय के जजों की परेशानी काफी हद तक वाकिफ हैं लेकिन हाल में हुए एक अध्‍ययन ने अदालतों की स्‍थिति पर काफी चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इस अध्‍ययन में कहा गया है कि उच्‍च न्‍यायालय के जज को एक केस को सुनने के लिए औसतन पांच से छह मिनट ही मिलते हैं और लगभग इतने ही समय में उसे फैसला भी सुनाना होता है।


क्या कहते हैं आंकड़े भरतीय उच्च न्यायालय में काम करने वाले न्यायाधीश किन परिस्थितियों में काम करते हैं अगर आप ये सुनेंगे तो चौंक जायेंगे। एक अध्ययन के अनुसार ये सभी बेहद दवाब और काम के बोझ के साथ काम करते हैं। स्टडी में कहा गया है कि सबसे आराम से मामला सुनने वाली अदालत के पास भी एक केस को सुनने के लिए महज 15 से 16 मिनट का समय होता है। जबकि व्यस्ततम अदालतों में ये सुनवायी केवल ढाई मिनट की ही होती है। इस प्रकार एक केस पर अपना फैसला सुनाने के लिए जजों को बस पांच से छह मिनट ही मिलते हैं। ये अध्ययन बेंगलुरू की एक गैर सरकारी संस्था दक्ष ने करवाया था। कुछ अदालतों के उदाहरण
इस मामले में में कुछ उदाहरणों को सामने रखते हुए शोधकर्ताओं ने बताया जैसे कोलकाता उच्च नयायालय में जब जज अपने कार्य दिवस की शुरुआत करता है तो उसके पास साढ़े पांच घंटे में 163 मामलों को सुनने का दायित्व होता है। यानि उसके पास एक केस पर ख्सर्च करने के लिए सिर्फ दो मिनट होते हैं। कमोबेश इसी तरह की स्थिति पटना, हैदराबाद, झारखंड और राजस्थान के उच्च न्यायालयों में भी होती है जहां जजों के पास दो से तीन मिनट का समय प्रति केस होता है। जबकि इलाहाबाद, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में हर दिन न्यायाधीश एक मामले पर चार से छह मिनट दे पाते हैं।  व्यवस्था में हो बदलाव जनवरी 2015 के आंकड़ों को सामने रखते हुए शोध करने वालरी संस्था ने बताया कि देश के 21 उच्च न्यायालयों में इस दौरान प्रतिदिन 19 लाख नए केस आते थे और 95 लाख की सुनवाई होती थी। ऐसी स्थिति में पूरी तरह से अध्ययन करके मामलों की सुनवाई करना भला कैसे संभव है। शोध में ये भी बताया गया कि अप्रैल 2016 तक देश के 1.25 बिलियन लोगों के मामलों की सुनवाई करने के लिए हाई कोर्ट 594 और सर्वोच्च न्यायालय के 25 जजों को मिला कर कुल 619 लोगों की उच्च श्रेणी के न्यायिक व्यवस्था संभालने वाले जज मौजूद हैं जो कतई ना काफी हैं। अत जरूरी है कि न्याय व्यवस्था में आधारभूत परिवर्तन किए जायें ताकि जजों को केस को समझने, सुनने और फैसला देने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।

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Posted By: Molly Seth