बचत के लिए बाल मज़दूर चला रहे हैं अपना बैंक
बच्चों के लिए यहां की ज़िंदगी बहुत कठिन है और कालाबाज़ारी का पूरा जाल फैला है.बांग्लादेश में 'सेव दि चिल्ड्रेन' नामक संस्था के निदेशक बिरगिट लुंडबेक कहते हैं, ''झुग्गियों में बक्से के आकार के टीन से ढँके तंग घरों में लोग रहते हैं. यह जगह शोरगुल और गंदगी से भरी होती है और यहां सुविधाओं का अभाव होता है.''संस्था से जुड़े शम्सुल आलम बताते हैं, ''स्थानीय गिरोह आधिकारिक ज़मींदार की तरह पेश आते हैं और निवासियों पर नियंत्रण रखने के लिए बल प्रयोग करते हैं.'''शम्सुल के अनुसार, मज़दूर आबादी का एक बड़ा हिस्सा बच्चों का है क्योंकि उनसे काम लेना ज्यादा सस्ता है. वे संपन्न घरों में काम करते हैं और मोटरसाइकिल बनाने की दुकानों में काम करते हैं. इनकी मज़दूरी 20 टका से लेकर 120 टका तक होती है.
उनके लिए यहां कोई नियम क़ायदे नहीं हैं, काम के घंटे और वेतन का ढांचा नहीं है. छुट्टी नहीं मिलती, शिक्षा पाने की कोई उम्मीद नहीं होती और खेल या मनोरंजन सपना होता है."बचत का अधिकांश हिस्सा अनावश्यक रूप से खर्च हो जाया करता था. "-अनवर अख्तर (13), बैंक की एक उपभोक्ता
इन बाल मज़दूरों के पास बचत का कोई भी तरीक़ा नहीं होता. यदि वे अपने नियोक्ता से बचत के लिए कहते हैं तो वे अक्सर इस बचत को बंधुआ बनाए रखने का ढाल बना लेते हैं.ख़ुद के पास पैसे रखने में और बड़ा ख़तरा है क्योंकि बच्चे बेसुध होकर सोते हैं और पैसे चोरी होने का ख़तरा होता है.क़ानूनबांग्लादेश में एक क़ानून के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे ख़ुद का बचत खाता तब तक नहीं खोल सकते जब तक कोई वयस्क व्यक्ति सह हस्ताक्षरकर्ता के रूप में साथ नहीं होता."मैं यहां स्वयंसेवक के रूप में अकाउटैंट का काम देखता हूं. यहां काम करते हुए मुझे बैंकिंग प्रणाली के बारे में जानने समझने का मौका मिला."-नजमुल इस्लाम निलॉयलुंडबेक ने बताया कि, ''इस समस्या के समाधान के लिए संस्था ने 2007 में छायाब्रिखो नामक एक स्कीम की शुरुआत की. इसके तहत बच्चे अपनी बचत को यहां जमा करते हैं. बच्चे ही स्वयंसेवक के रूप में इसके स्टाफ़ हैं.''उनके अनुसार, ''बच्चे इसे सीखने के अवसर के रूप में ले रहे हैं और वे अपने दोस्तों की मदद कर रहे हैं. इस तरह से उन्हें अपने इस कार्य पर गर्व होता है.''अभीतक इस योजना के तहत कुल 750 अनाथ बच्चों के खाते खोले जा चुके हैं.
इसी तरह की अन्य स्कीमों के तहत पूरे देश में 13,000 खाते हैं.सरकार से मांग