'बुर्का पहनकर ही फेसबुक पर आना'
ऐसी ही एक युवा महिला ने इस कदम को एकदम चौंकाने वाला बताते हुए अपने फेसबुक पेज पर लिखा है, ''अगली बात वो ये कहेंगे कि अफगानिस्तान को दो हिस्सों में बांटने की जरूरत है, एक मर्दों के लिए और दूसरा महिलाओं के लिए.''
बीबीसी की फारसी सेवा के संवाददाता ताहिर कादिरी का कहना है कि ये युवा अफगान महिलाओं के उन संदेशों में से एक है जिनसे सोशल मीडिया साइट्स भरी पड़ी हैं।अफगानिस्तान की युवा महिलाओं ने ये कदम देश की शीर्ष मजहबी परिषद के उस आदेश के बाद उठाया है जिसमें कहा गया है कि स्कूलों में, काम के दौरान या रोजमर्रा के हालात में औरतों और मर्दों को एक-दूसरे में नहीं घुलना-मिलना चाहिए।अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने परिषद की इस अनुशंसा का जब अनुमोदन किया, देश का ब्लॉग जगत इसके खिलाफ सक्रिय हो गया। इतना ही नहीं, स्त्री-पुरुषों को अलग करने की बात कहने वाले मुल्लाओं के खिलाफ मुहिम के लिए नई वेबसाइट्स बनाई जा रही हैं।
हंसी-मजाक के बहानेमौलवियों की इस बात से कुछ लोगों में जबर्दस्त आक्रोश है। काबुल में रहने वाली एक लड़की ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है, ''सरकार का खर्च बड़ी तेजी से बढ़ने वाला है क्योंकि उन्हें महिलाओं के लिए एक खास संसद, अलग विश्वविद्यालय, बैंक और शॉपिंग मॉल्स बनाने होंगे। शायद उन्हें इस शहर को ही औरतों और मर्दों के लिए अलग-अलग हिस्सों में बांट देना चाहिए.''
लंदन में अफगानिस्तान की एक कामकाजी महिला महनाज अफजल ने लिखा है, ''खवातीन, तुम्हें पुरुष जोड़ीदार के बिना फेसबुक पर नजर नहीं आना चाहिए। हमने फेसबुक प्रशासकों से कहा है कि महिलाओं के लिए अलग प्रोफाइल बनाया जाए। तुम्हें फेसबुक पर 'लाइक' या 'पोक' करने की मंजूरी नहीं है.''पुरुष भी पीछे नहींऐसा नहीं है कि इस मुद्दे पर सिर्फ महिलाएं अपना विरोध दर्ज करा रही हैं। एक पुरुष ने ट्वीट किया है, ''क्या मैं अफगान लड़कियों से ये आग्रह कर सकता हूं कि वे मेरे पोस्ट पर तब तक टिप्पणी न करें, जब तक कि उन्हें अपने पिता, पति या उलेमा काउंसिल से मंजूरी न मिल जाए.''एक अन्य पुरुष ने लिखा है, ''लड़कियों को फेसबुक पर तभी आने दिया जाए जब उन्होंने बुर्का पहना हो.'' कई वेबसाइटों पर ऐसे कार्टून लगाए गए हैं जिनमें उलेमा काउंसिल की सिफारिश और राष्ट्रपति हामिद करजई की अनुशंसा का बड़े सलीके से मजाक उड़ाया गया है।ऐसे ही एक कार्टून में एक महिला को पारंपरिक आसमानी बुर्का पहने टीवी पर न्यूज पढ़ते दिखाया गया है। इस महिला का चेहरा पूरी तरह से ढका है।
काबुल की एक छात्र मुजगान अहमदी ने बीबीसी से कहा, ''युवा ये दिखाना चाहते हैं कि हम इन मुल्लाओं की बात नहीं मानते और हम उनकी परवाह नहीं करते.'' वो कहती हैं, ''ये महिलाओं के अधिकारों की एकदम अपमान है, ये हमारी निजता को कम करता है, हम उन्हें कानून पास नहीं करने देंगे.''अफगानिस्तान के कई युवाओं का मानना है कि मौलवियों की सिफारिश पर सरकार की अनुशंसा दरअसल राष्ट्रपति की तालिबान तक पहुंचने की कोशिश है।तालिबान के सत्ता में आने पर ईरान जाने पर विवश होने वाली महिला अधिकारों की हिमायती जाकिया नवा कहती हैं, ''इसका मतलब ये है कि सरकार अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे का मार्ग प्रशस्त कर रही है.''वे कहती हैं, ''मुझे वो बुरा दौर याद है जब तालिबान ने हमें घरों में कैदकर पढ़ाई-लिखाई से वंचित कर दिया था। महिलाओं के अधिकारों पर रोक लगाने का ये एक और तरीका है.''