मोदी सरकार और भाजपा में सबसे विश्वसनीय और सबसे असरदार माने जाने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का जादू लगातार दूसरे विधानसभा चुनावों में नहीं चल सका और पार्टी को जबरदस्त हार का मुह देखना पड़ा। ऐसे में विपक्ष ने तो शाह पर निशाना साधना शुरू कर ही दिया है पार्टी के अंदर भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं।


कायम रहेगी बादशाहत अमित शाह की भाजपा के चाणक्य वाली भूमिका बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों बाद एक बार फिर विवादों के घेरे में है। पहले दिल्ली और अब बिहार में मतदाताओं के रवैये को सूंघ पाने में नाकामयाब रहे अमित शाह, ऐसे में उनके बयानों को हथियार बना कर विपक्ष तो पहले ही हमलावर है। अब उनकी अपनी पार्टी के भीतर से भी स्वर उठने लगे हैं। यहां ये भी याद रखना है कि आने वाले साल की जनवरी में शाह दूसरी बार अपने अध्यक्ष पद को बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहेंगे। जुमलेबाजी की शोहरत बनी मुसीबत


अपने तीखे जुमलों और अकड़ू रवैये के चलते अमित शाह पहले ही विपक्ष को अखरते रहे हैं। यही वजह है कि जेडीयू सांसद के सी त्यागी ने कहा है कि ये बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की एरोगेंस की हार है। उनके पठाखे वाले कमेंट का सोशल मीडिया पर भी मजाक उड़ा। पर अब मुश्किल ये है कि भाजपा में पार्टी के अंदर और सहयोगी दलों की ओर से भी शाह पर हमले होने लगे हैं। कहा जा रहा है कि अंदरूनी हल्कों में चर्चा है कि शाह का घमंड बिहार में बीजेपी को ले डूबा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने बिहार के नतीजों के बाद एक बयान में कहा है कि क्या अब बीजेपी में 'शाह पे चर्चा' चल रही है।  पिछले चुनावों से भी खराब रही चुनावी स्थिति पर भी सवाल

इस तरह से शाह के कटघरे में आने की वजह ये भी है कि इस बार बिहार में बीजेपी की पिछली बार से भी बुरी स्थिति हुई है। 2010 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं जो इस बार घटकर 60 ही रह गईं। ये सब तब हुआ जब अमित शाह ने चुनाव के एक महीने पहले से बिहार में डेरा जमा लिया था। हर रणनीति उनकी निगरानी में बन रही थी। वो हर दिन रैलियां कर रहे थे। स्ट ज्ञर प्रचारक माने जा रहे थे।  लेकिन इस के बावजूद एक बार फिर इसी साल दिल्ली विधानसभा चुनाव की तरह ही अमित शाह की स्ट्रैटिजी बिहार में भी बुरी तरह फेल हो गई। ऐसे में माना जा रहा है कि शाह का करिश्मा अब अपना असर खो रहा है। इसके साथ ही लगने लगा है कि शायद अगले साल आने वाले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों और उसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी अमित शाह का कद घट सकता है और चुनाव और फैसलों की कमान किसी दूसरे के हाथें में जा सकती है।

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Posted By: Molly Seth