सूबे के आंगनबाड़ी केंद्रों में अब बच्चों को घटिया किस्म के खिलौने और दवाओं की आपूर्ति नहीं की जा सकेगी। यूं कहें कि पिछले एक दशक से इन केंद्रों में बंटने वाली प्री स्कूल किट और प्री मेडिकल किट में फर्जीवाड़ा करना अब आसान नहीं होगा। बाल विकास पुष्टाहार महकमे ने तमाम बदलावों के साथ इसकी सप्लाई का नया ई-टेंडर लाने की कवायद शुरू कर दी है। जल्द ही इसे अनुमति के लिए कैबिनेट के सामने पेश किया जाना है। नये टेंडर में इसकी सप्लाई की तमाम शर्तें बदल दी गयी है। ध्यान रहे कि यह दोनों किट सूबे के 1.89 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरित की जाती है।


निर्माण करने वाली कंपनी करेगी सप्लाईबाल विकास पुष्टाहार महकमे ने इन दोनों किट्स की सप्लाई में बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने के लिए अब खिलौने और दवाओं का निर्माण करने वाली कंपनी को ही काम सौंपने का फैसला लिया है। साथ ही पहली बार प्री स्कूल किट में खिलौनों के साथ खासतौर पर केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गयी किताबें भी दी जाएंगी। बेहद रोचक जानकारियों से भरी इन किताबों को पढऩे से बच्चों का ज्ञानार्जन होगा। केंद्र सरकार ने दोनों किट्स के दामों में भी करीब दो गुना का इजाफा किया है, जिससे इनकी गुणवत्ता में भी आमूलचूल परिवर्तन होना तय है। सप्लाई करने का मौका दिया जाएगा


खासतौर पर दवाओं की सप्लाई में फर्जीवाड़ा पकड़े जाने के बाद खास एहतियात बरती गयी है। अब जो कंपनी दवाओं की वास्तविक निर्माता होगी, उसे ही किट एसेंबल करके सप्लाई करने का मौका दिया जाएगा। मालूम हो कि इस किट में बच्चों को होने वाली मामूली बीमारियों की दवाएं, रुई, पट्टी, थर्मामीटर इत्यादि रहते हैं। जांच में खुली थी पोल

दरअसल पूर्ववर्ती सपा सरकार ने अपने अंतिम दौर में दोनों किट्स की सप्लाई का टेंडर जारी किया था। कई सालों से काम कर रही विनिश्मा टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और मनीषा पैकेज ने फिर यह काम हासिल कर लिया था, पर उसे वर्क ऑर्डर जारी नहीं हो सका था। वही योगी सरकार ने सूबे की कमान संभालते ही इसकी जांच शुरू करा दी। गाजियाबाद के डीएम को दोनों कंपनियों की पड़ताल करने को कहा गया। जांच में दोनों कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा अंजाम देने के प्रमाण मिले जिसके बाद कैबिनेट ने पूरी टेंडर प्रक्रिया को ही निरस्त कर दिया था। अब तमाम बदलावों के साथ इसे नये सिरे से जारी करने की कवायद की जा रही है। सामने आया था फर्जीवाड़ा* दवाओं का स्टोर गंदा पाया गया। टिन शेड के नीचे प्री मेडिकल किट बनती थी।* कंपनियों द्वारा दिए गये पते पर कोई औद्योगिक गतिविधि होने के प्रमाण नहीं मिले।* कंपनियों के ठिकाने पर कोई लेखा-जोखा नहीं मिला। कंपनी का बोर्ड भी नहीं था।* मौके पर तमाम एक्सपायर दवाएं पाई गयी। वे दवा खरीद का बिल भी नहीं दे सके।* स्टोर में धूल भरे बैग, खिलौने और किताबें मिली। ज्यादातर स्टॉक पुराना मिला।* ऐसा कोई कार्यालय नहीं पाया गया जहां कंपनियों से जुड़े अभिलेख हो।फैक्ट फाइल* 50 करोड़ से ज्यादा की दोनों किट हर साल होती हैं सप्लाई

* 1.89 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को बांटी जाती हैं
* 10 साल से दो कंपनियों की थी सप्लाई में मोनोपोली* 750 रुपये के बजाय अब 1500 रुपये प्रति किट का होगा भुगतान किटों की कीमत में भी इजाफाकई अहम बदलावों के साथ प्री स्कूल किट और प्री मेडिकल किट का नया ई-टेंडर जारी किया जाना है। पहली बार किताबें देने के साथ दोनों किटों की कीमत में भी इजाफा किया गया है। इस योजना में 60 फीसद पैसा केंद्र सरकार देती है लिहाजा इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट भेजा जाएगा। - अनीता मेश्राम, सचिव, बाल विकास पुष्टाहार विभाग

Posted By: Shweta Mishra