इस वर्ष अहोई अष्टमी 8 नवंबर को मनाई जा रही है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्रों के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत भी करवाचौथ की तरह होता है। आइए जानें क्या है पूजा मूहूर्त विधि कथा और इस व्रत से जुड़ा सबकुछ।

कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। इस साल अहोई अष्टमी रविवार आठ नवंबर को मनाई जा रही है। यह व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को किया जाता है। इसलिए इसे अहोई अष्टमी कहते हैं। मान्यता है कि यह व्रत रखने से संतान दीर्घायु होती है। अखंड सौभाग्य के व्रत करवा चौथ के बाद की अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत व पूजन किया जाता है।

पूजा-मूहूर्त
द्रिक पंचाग के अनुसार, आठ नवंबर को अहोई अष्टमी का पूजा मूहूर्त शाम 5 बजकर 31 मिनट से शुरु होगा, जो शाम 6 बजकर 50 मिनट तक चलेगा। मूहूर्त की अवधि 1 घंटा 19 मिनट है। तारों को देखने का समय शाम 5 बजकर 56 मिनट है। वहीं अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय का समय 11 बजकर 56 मिनट है। अष्टमी तिथि 8 नवंबर 2020 को शाम 7 बजकर 29 मिनट पर शुरु होगी जो 9 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक रहेगी।

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पूजन सामग्री
तेल से बने पदार्थ जैसे मट्ठी,सीरा,गुलगुले,पूए, चावल और साबुत उरद की दाल,मूली के साथ ही गेहूं अथवा मक्की के सात दाने हाथ मे लेकर,तेल का दिया जलाकर अहोई माता का पूजन करें।जल के पात्र को रखकर उस पर स्वास्तिक बनाएं।मिट्टी की हांडी व बर्तन में खाने वाला सामान डालकर पूजा करें।

व्रत पूजन विधि-विधान
इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं मंगल कामना के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान व ध्यान कर आहार लेती हैं व सारा दिन निराहार व्रत करती हैं।सब प्रकार की कच्ची रसोई बनाई जाती है।संध्या को दीवार में आठ कोष्ठक की एक पुतली लिखी जाती है उसी के समीप स्याहु(साही)के बच्चों की और सेई की आकृति बनाई जाती है।अहोई माता यानी पार्वती माँ के सामने एक पात्र में चावल भरकर रख दें। इसके साथ ही मूली,सिंघाड़ा व पानी फल रखें।माँ के सामने एक दीपक जला दें।एक लोटे में पानी रखें और उसके ऊपर करवाचौथ में इस्तेमाल किया गया करवा रखें।दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर में करते हैं।अब हाथ मे गेहूं या चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ें।इसके उपरांत माँ अहोई की आरती करें और पूजा खत्म होने के बाद उस चावल को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू में बाँध लें।शाम को अहोई माता की एक बार और पूजा करें और भोग चढ़ायें तथा लाल रंग के फूल चढ़ायें।शाम को भी अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ें और आरती करें।तारों को अर्ध्य दें। ध्यान रहे कि पानी सारा इस्तेमाल नहीं करना है। कुछ बचा लेना है ताकि दीवाली के दिन इसका इस्तेमाल किया जा सके।पूजा के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें।सभी को प्रसाद बाँट भोजन ग्रहण करें।इस दिन गन्ने की भी पूजा की जाती है।शाम को चंद्र दर्शन करके व तारे को अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है।

व्रत कथा
प्राचीनकाल मे एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएँ थीं।इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी।दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ और ननद मिट्टी लाने जंगल गई।साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु(साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी।मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया।स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहु की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक कर बिनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधबा ले।सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है।इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं।इसके बाद उसने पंडित को बुलाकर कारण पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सेवा से प्रसन्न सुरही उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का आशीर्वाद देती है।स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र बंधुओं से हरा भरा हो जाता है।

अहोई माता की आरती

॥ आरती अहोई माता की ॥
जय अहोई माता,जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावतहर विष्णु विधाता॥

जय अहोई माता...॥

ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता॥

जय अहोई माता...॥

माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावतनित मंगल पाता॥

जय अहोई माता...॥

तू ही पाताल बसंती,तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता॥

जय अहोई माता...॥

जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता॥

जय अहोई माता...॥

तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभवतुम बिन नहीं आता॥

जय अहोई माता...॥

शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकूकोई नहीं पाता॥

जय अहोई माता...॥

श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजेपाप उतर जाता॥

जय अहोई माता...॥
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा।
बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari