देश में भगवान राम के बाद अब परशुराम को लेकर राजनीति शुरु हो गई है। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियां जो चाल चल रही है। इसको लेकर अखाड़ा परिषद ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।

प्रयागराज (आईएएनएस)। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी), जो संतों की शीर्ष संस्था है ने राजनीतिक दलों द्वारा ब्राह्मणों को लुभाने के लिए परशुराम की प्रतिमा स्थापित करने के लिए की जा रही घोषणाओं का कड़ा विरोध किया है। परिषद ने कहा देवी-देवताओं को किसी भी जाति से जोड़ने का प्रयास गलत है।'एबीएपी' के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, "यह सनातन धर्म और हिंदू समाज को कमजोर करने की एक साजिश है। देवी-देवता सभी के लिए समान हैं और उन्हें किसी विशेष के साथ जोड़ने का कोई भी प्रयास उुचित नहीं है। महर्षि परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और वे केवल ब्राह्मण आइकन नहीं हैं।"

समाज को तोड़ने की कोशिश
महंत गिरी ने लोगों से अपील की कि वे उन ताकतों से प्रभावित न हों जो समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को एकजुट होना चाहिए और बलों का विरोध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज को विभाजित करना गलत है हमें सनातन धर्म की परंपराओं का संरक्षित करना होगा। अखाड़ा परिषद सनातन समाज को विभाजित करने वाली ताकतों का कड़ा विरोध करेगी और लोगों के बीच एक अभियान शुरू करेगी। सनातन धर्म ने अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल की है और 500 साल के संघर्ष के बाद अयोध्या में भगवान राम का एक भव्य मंदिर बनाया जा रहा है।

सपा और बसपा ने की ये घोषणा
महंत ने आगे कहा, 'ऐसा लगता है कि कुछ लोग इस विकास से खुश नहीं हैं और अपने राजनीतिक लाभ के लिए देवताओं को जाति की रेखाओं में विभाजित कर रहे हैं। हम हिंदू समाज को कमजोर करने की कोशिश कर रहे इन ताकतों को करारा जवाब देंगे। उन्होंने कहा कि यह याद किया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी ने 7 अगस्त को लखनऊ में परशुराम की 108 फुट ऊंची प्रतिमा लगाने की योजना की घोषणा की थी। कुछ दिनों बाद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी परशुराम की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित करेगी और ब्राह्मण आइकन के नाम पर एक आधुनिक अस्पताल और सामुदायिक केंद्र भी बनाएगी जब उनकी पार्टी सत्ता में आएगी।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari