Akshay Tritiya 2020 : वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया की संज्ञा दी गई है। यह पर्व पूर्वाह्न व्यापिनी में मनाया जाता है अथार्त 3 मुहूर्त से 6 मुहर्त के मध्य। इस बार दिनांक 26 अप्रैल 2020 रविवार को तृतीया तिथि सूर्योदय से मध्याह्न 1:23 बजे दोपहर तक रहेगी।

Akshay Tritiya 2020 Kab hai : पुराणों के अनुसार इसी दिन से सतयुग एवं त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था। विष्णु धर्मोतर पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एक भी अक्षय तृतीया के व्रत कर लेता है, वह सब तीर्थों का फल प्राप्त पा जाता है। भगवान श्री कृष्ण का कथन है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान, जप, तप, होम, स्वध्याय, पित्र, तर्पण और दान जो कुछ भी किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है।इसलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है।शास्त्रों के अनुसार बहुत से शुभ व पूजनीय कार्य इसी दिन आरम्भ किये जाते हैं जिनसे सुख,समृद्वि और सफलता की प्राप्ति होती है। इसलिए नये व्यवसाय, भूमि का क्रय, भवन, संस्था का उदघाट्न, विवाह, हवन आदि इस तिथि को किये जाते हैं। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।भगवान परशुराम का अवतरण भी इसी दिन होने के कारण उनकी जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।यदि ये व्रत सोमवार, रोहिणी, कृतिका नक्षत्र से युक्त हो, तो अधिक फलदायक माना जाता है। भगवान बद्रीनाथ धाम के पट(द्वार) भी इसी दिन खुलते हैं।

पूजन विधि-विधान

यह व्रत वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को रखा जाता है।इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु, लक्ष्मी,श्रीकृष्ण(वासुदेव) का पूजन किया जाता है।व्रती को इस दिन प्रातः कालीन कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए।विधि- विधानानुसार भगवान का पूजन तुलसीदल चढ़ाकर धूप- दीप, अक्षत, पुष्प आदि से करने के पश्चात भीगे हुए चने की दाल का भोग लगाएं।इसमें मिश्री और तुलसीदल भी मिला लें।फिर भक्तों में प्रसाद वितरित करें।भगवान की प्रिय वस्तुओं का दान अवश्य करें। इस दिन जौ के दान और सेवन का भी विधान है।

व्रत कथा

प्राचीन काल में किसी नगर में महोदय नामक एक बनिया रहता था, जो सत्यवादी, देव एवं ब्राह्मणों का पूजक तथा सदाचारी था।वह प्रायः दुखी और चिंतित रहा करता था क्योंकि उसका परिवार बहुत बड़ा और आमदनी कम थी। एक दिन उसने रोहिणी नक्षत्र में वैशाख शुक्ल पक्ष में तृतीया के माहात्म्य सुना कि इस तिथि को जो कुछ भी दान किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है यह जानकर उसने गंगा स्नान किया और पितृ एवं देवताओं का तर्पण किया फिर घर आकर देवी- देवताओं का विधिवत पूजन किया। ब्राह्मणों को दान- दक्षिणा के रूप में जौ, गेहूं, घड़ा, पंखा, सोना शक्ति अनुसार शुद्ध मन से प्रदान किये।यद्यपि उसकी पत्नी ने दान का विरोध भी किया लेकिन वह धर्म- कर्म से विमुख न हुआ।परिणाम यह हुआ की वह दूसरे जन्म में कुशावती पुरी नामक नगर का राजा बना और धन सम्पन्न हुआ।उसने सम्पन्नता के बल पर बड़े-बड़े यज्ञ पूरे किए, गौ दान, स्वर्ण दान दिए।अपनी इच्छानुसार भोगों को भोगा।अनेक दीन- दुखियों को धन देकर सन्तुष्ट किया। फिर भी उसका धन कभी समाप्त नहीं हुआ क्योंकि उसके पास का धन अक्षय भंडार था।अक्षय तृतीया को श्रद्धा पूर्वक दान का ही यह सब फल था।इसीलिये हिंदुओं में इस व्रत का बड़ा माहात्म्य है।

विशेष

यह पर्व दान प्रधान है।अतः इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्ता के लिए कलश, पंखा, छाता, चावल, दाल, नमक, घी,चीनी,साग,इमली,फल,वस्त्र,सत्तू,ककड़ी,खरबूजा और दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए।*

गौरी पूजा

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी व्रत की समाप्ति होती है।इसलिए यह पूजा भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही की जाती है।इस दिन श्रद्धा और विश्वास से पार्वतीजी का पूजन करना चाहिए तथा धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, पुष्प, गंध, तिल व अन्न भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से जीवन मे सुख- शांति व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

एष धर्मघटो दत्तो ब्रह्मविष्णुशिवात्मकः।

अस्य प्रदानातस्कल मम संतु मनोरथ:।।

- ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा

Posted By: Vandana Sharma