मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की जनसभा में नेताओं की दो टूक

मुस्लिम महिलाओं ने मंच शेयर कर शरीयत के पक्ष में जाहिर किया रुख

ALLAHABAD: तीन तलाक पर यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की केंद्र सरकार की राह मुश्किल साबित होगी। हमीदिया मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज मैदान में जलसा-ए-तहफ्फुज शरीयत व पर्सनल लॉ में मुस्लिम नेताओं के रुख से यह बात स्पष्ट हो गयी। जलसे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों, समाज के बुद्धिजीवियों व महिलाओं ने एक सुर में सिविल कोड को शरीयत के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया। इन लोगों ने शरीयत के कानून को ही आखिरी कानून बताते हुए प्रस्ताव पारित किया कि मुसलमान सिविल कोड को किसी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। हालांकि कुछ वक्ताओं ने एक साथ तीन तलाक को इस्लाम में हराम बताया। कहा गया कि यह शरीयत के खिलाफ है। तीन तलाक की जगह एक तलाक ही सही है। जलसे में आए लोगों से एक फार्म भरवाया गया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में दखलअंदाजी का विरोध किया गया। हजारों पुरुषों के साथ ही महिलाओं ने भी फार्म भरा। जिसे केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।

इस्लाम का हर हुक्म मानना होगा

हिन्दुस्तान का मुसलमान यकसां सिविल कोड के खिलाफ है। आज कॉमन सिविल कोड की बात इसलिए उठ रही है, क्योंकि कौम के अंदर एत्तिहाद कायम नहीं रहा। हर मुसलमान को इस्लाम के हर हुक्म को मानना होगा।

डा। सर्वर मोहम्मद

1400 साल पहले अल्लाह ने जो आईन नाजिल किया, वह कायम रहेगा। इस्लाम ने औरतों को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इज्जत दी है। पूरे देश में तलाक के जहां 32 प्रतिशत मामले हैं। वहीं मुस्लिम समाज में तलाक के कुल मामले केवल 0.5 प्रतिशत ही है।

गुले शादाब

सदस्य, जमात-ए-इस्लामी हिन्द

जो कौमें जिंदा रहना चाहती हैं, उन्हें मरने का अंदाज सीखना चाहिए। हर मुल्क के अपने-अपने आईन हैं। हमारा आईन कुरान है। ये दीन-ए-मुकम्मल है, आखिरी फरमां है। शरिअत कानून ही आखिरी है। पूरे देश में तलाक को एक मुद्दा बनाया जा रहा है। जबकि इससे प्रभावित होने वाली औरतों की संख्या चंद हजार भी नहीं है।

मौलाना सैय्यद नासिर फाकरी

मुस्लिम महिला शायरा बानो द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल केस के आधार पर 2012 में ब्रायन राजपूत की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। जिसने 2015 में अपनी रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में सात-आठ प्रस्ताव शामिल थे, जिसे सरकार ने लागू करने के बजाय यूनिफार्म सिविल कोड का मामला खड़ा कर दिया। यूसीसी के नाम पर सिर्फ मुसलमानों को ही क्यों परेशान किया जा रहा है।

एडवोकेट फरमान नकवी

अपनी समस्याओं के जिम्मेदार हम खुद हैं। क्योंकि हमने इस्लाम को सही तौर पर गैर मुस्लिम भाईयों के सामने पेश नहीं किया। 40 प्रतिशत मुसलमान शराब पीने लगा है। कुरान व शरीयत दोनों ही इसकी इजाजत नहीं देता है। अगर समाज के लोग शराब के खिलाफ ही आवाज उठाएं और इसकी लत से परेशान हर धर्म-सम्प्रदाय के बच्चों का पीछा छुड़ाएं तो हर कौम का समर्थन मिलेगा।

एडवोकेट सरताज अहमद जिलानी

शरीयत में कोई भी आजाद नहीं है। शरीअत में फैलाव है। सप्ताह में एक मामला तलाक का जरूर सामने आता है। तलाक एक औरत का नहीं, परिवार तक जाता है। तलाक के 90 प्रतिशत मामले नशे में, 5 प्रतिशत गुस्से में और दो से तीन प्रतिशत मामले ही सोच-समझ कर घटित होते हैं। इस्लाम में तीन तलाक देना हराम है। हम शरीअत की नुमाइंदगी करते हैं। इसलिए तलाकनामा में लिखा जाना चाहिए, एक तलाक।

मौलाना मुस्तफा मदनी

नूर फाउण्डेशन

यकसां सिविल कोड को लागू करना मुस्लिम समाज के शरीअत पर उंगली उठाना है। जब शरीयत पर उंगली उठती है तो मुस्लिम शमशीर हो जाता है। मुसलमान को दहशतगर्द कहा गया, फिर लव जेहाद का नारा दिया गया, घर वापसी का मुद्दा उठा अब यकसां सिविल कोड का मामला उठाया गया है। यह मुसलमानों को बरगलाने की साजिश है। वोट की राजनीति है।

मौलाना मुनीर अहमद

हम अगर कानून मानेंगे तो अल्लाह का मानेंगे। शरीअत मानेंगे। अल्लाह की मर्जी के खिलाफ हम नहीं जाएंगे। धर्मनिरपेक्षता की बात कही जाती है, लेकिन पंथ निर्पेक्षता हावी है।

डा। अनीस अहमद

इस्लाम हमारी जिंदगी है, शरीयत जीवन का तरीका है और कुराने पाक आखिरी शरीअत है। यूनिफार्म सिविल कोड के जरिये शरीअत में बदलाव मंजूर नहीं है। सरकार यूसीसी कुरान को देख कर बनाए, क्योंकि दहेज और विधवा का विाह न होना जैसी समस्याएं हिन्दुओं में पाई जाती हैं।

रूखसाना निकहत लॉरी

सदस्य, पर्सनल लॉ बोर्ड

इस मुल्क में यकसां सिविल कोड कभी लागू नहीं हो सकता। क्योंकि हमारे दरमियान कोई मतभेद नहीं है। जो मतभेद मुसलमानों में है, वो इल्म की बुनियाद पर है।

तारिक अय्यूवी नदवी

अलीगढ़

तीन तलाक का तो कोई मुद्दा ही नहीं है, ये तो बस यूपी चुनाव का राजनीति स्टंट है। यूसीसी लाना सियासी मकसद को हासिल करने का प्रयास है। मुल्क में संविधान बड़ा है। सियासी फायदे के लिए एक तबके को टार्गेट किया जाता है। हम भी मानते हैं कि जो मुसलमां तीन तलाक देता है, वह जुल्म करता है। अगर मुस्लिम समाज के लोग बिगड़े न होते तो तमाशे नहीं होते। क्योंकि शरीअत में तीन तलाक की इजाजत ही नहीं है। तलाक दो या रख लो या फिर इज्जत से वापस कर लो।

मौलाना उबैद उल्लाह आजमी

पूर्व सांसद

Posted By: Inextlive